सुन मेरे हमसफर 63

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    पार्टी वेन्यू से निकलते हुए मिश्रा जी ने मित्तल परिवार के आगे हाथ जोड़ लिए और कहा "अब हमें अनुमति दीजिए।"


      सारांश ने हैरान होकर कहा, "मिश्रा जी! रात के 1:00 बज रहे हैं। अभी हम आप आपको कैसे अनुमति दे सकते है? आप हमारे साथ हमारे घर चल रहे हैं। इस बारे में हम कल बात करेंगे।"


     मिश्रा जी इस तरह अपनी बेटी के घर जाने में थोड़ा झिझक रहे थे। उन्होंने रेनू जी की तरफ देखा। कंचन जी उन दोनों की झिझक को बहुत बखूबी समझ रही थी। उन्होंने अखिल जी को इशारा किया। अखिल जी बोले "अगर आपको अपनी बेटी के घर रुकने पर झिझक महसूस हो रही है तो आप हमारे साथ चल सकते हैं। उम्र और रिश्ते, दोनो में हम आपके पिता समान है। आप हमारी बात टाल नहीं सकते।"


     अवनी ने रेनू जी के कंधे पर हाथ रखा और बोली "पापा बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। आज जो झिझक आपको हो रही है, उस हालात से पापा पहले ही गुजर चुके हैं। इसलिए बेहतर समझ रहे हैं। जब आपकी बेटी और हमारी बेटी में कोई फर्क नहीं है तो मेरा मौका और आपका मायका में भी कोई फर्क नहीं होना चाहिए।"


    अब जबकि अखिल जी ने आदेश ही दे दिया था तो इससे इनकार करने का सवाल ही नहीं उठता था। मिश्रा जी को उनके साथ उनके घर जाना पड़ा। बाकी सब मित्तल हाउस के लिए निकल पड़े। निर्वाण भी उनके साथ ही था।




*****



    निशी को ऐसे खामोश देख अव्यांश ने उसका मजाक बनाते हुए कहा "ऐसे क्या देख रही हो? कहीं तुम्हें मुझसे प्यार तो नहीं हो गया?"


     निशी ने हड़बड़ा कर इधर-उधर देखने लगी। अव्यांश हंसते हुए बोला "तुम्हारे साथ डबल पार्टी। क्योंकि तुम मेरी दोस्त भी हो और मेरी पत्नी भी। ऐसे में दोनों के साथ पार्टी तो बनती है। बोलो क्या ख्याल है?"


     निशी ने अव्यांश की तरफ देखा तो अव्यांश ने बीयर का एक कैन निशी के हाथ में पकड़ा दिया और बोला "जिस तरह से तुम मुझे देख रही थी ना, उस तरह से मत देखना वरना वाकई तुम्हें मुझसे प्यार हो जाएगा। फिर मेरा दिल कंट्रोल से बाहर हो जाएगा। उसके बाद तुम मुझे ब्लेम मत करना।"


      निशी नजरे चुरा कर बोली "कुछ ज्यादा ही नहीं सोचते हो तुम अपने बारे में! तुम में ऐसा क्या है जो मैं तुम्हें पसंद करूंगी?"


    अव्यांश मुस्कुरा कर उसके थोड़े और करीब आया और धीरे से कान में बोला "वह तो तुम्हें धीरे-धीरे पता चल ही जाएगा। वह क्या है ना, मेरा चार्म ही कुछ ऐसा है कि लड़कियां खिंची चली आती है मुझ तक।"


    अव्यांश के सांसे निशी के गर्दन से टकरा रही थी जो निशी को थोड़ा असहज करने के लिए काफी थी। उसने घबराहट में आंखें मूंद ली। मौके का फायदा उठाकर अव्यांश थोड़ा सा झुका और निशी की पतली सी गर्दन को छूम लिया। निशी अंदर तक कांप गई। उसे पता ही नहीं चला कब उसने अव्यांश की शर्ट पकड़ ली। "द......…!"


    अव्यांश ने एकदम से निशी के मुंह पर हाथ रख दिया। वो जो कुछ भी कहने वाली थी, अव्यांश बहुत अच्छे से समझ गया था और वह यह सुनना नहीं चाहता था। अव्यांश निशी से अलग हुआ और सीधे होकर बैठ गया, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। उसके चेहरे पर एक्सप्रेशन बिल्कुल शांत थे लेकिन उसके दिल में जो दर्द उठा था, उसे सिर्फ वो ही महसूस कर सकता था।


    निशी भी एकदम से होश में आई और सिचुएशन को समझ उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि इस वक्त अव्यांश के साथ होते हुए वो किसी और का नाम सोच भी कैसे सकती थी! इस वक्त अव्यांश को कितना बुरा लग रहा होगा, अव्यांश इस सब के बाद वह किस तरह की रिएक्ट करेगा, यह सोच कर कि उसकी जान जा रही थी।


      "अव्यांश........!" निशी ने धीरे से अव्यांश को पुकारा। लेकिन अव्यांश ने उसे अनसुना कर दिया। इस वक्त उसे खुद को कंट्रोल करने की बहुत ज्यादा जरूरत थी। इसके लिए जरूरी था कि वह निशी को कुछ देर के लिए अवॉइड करें। निशी धीरे से बोली "गलत मत समझना मुझे। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। मैं..........."


    निशी और आगे कुछ कहती, उससे पहले अव्यांश अपनी बीयर की कैन उठाई और उसे खोलते हुए बोला "तुम्हें आता है ना इसे कैसे खोलते हैं? ऑफ कोर्स तुम्हें तो पता ही होगा! देखते हैं इसे पहले कौन खत्म करता है!"


   निशी समझ रही थी कि अव्यांश इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। फिर भी उसे अपनी सफाई देनी ही थी। "अव्यांश हमारी शादी से पहले मैं 4 साल किसी के साथ रिलेशनशिप में थी लेकिन मैंने कभी आज तक अपनी हद पर नहीं की।"


     अव्यांश ने एक बार फिर सब कुछ अनसुना किया और बोला "मैंने तुमसे कुछ पूछा? नहीं ना! तो फिर सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम्हारे मन में कोई गिल्ट नहीं है तो फिर इस बारे में कुछ कहना बेकार होगा।"



*****




अवनी फ्रेश होकर बाथरूम से बाहर निकली तो देखा सारांश सोने की तैयारी कर रहा था। वो जाकर आईने के सामने बैठ गई और अपने बाल सुखाने लगी। सारांश ने बिना उसकी तरफ देखे कहा, "कितनी बार कहा है, रात को बाल गीले मत किया करो। पूरी तरह सूख नहीं पाए तो सर्दी लग जाएगी।"


    अवनी ने उसे पूरी तरह इग्नोर किया और टॉवेल से अपना बाल सुखाने लगी। सारांश उठकर अवनी के पास आया और हेयर ड्रायर सॉकेट में लगा कर उसका टेंपरेचर सेट करने लगा। अवनी ने एक बार भी सारांश की तरफ नहीं देखा और अपने बाल यूं ही सूखाती रही। लेकिन उसके होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट थी। शादी के इतने साल गुजर जाने के बाद भी सारांश बिल्कुल नहीं बदला था। 


   अवनी जानबूझकर रात को अपने सर पर पानी डाल लेती थी ताकि सारांश ऐसे ही हर रोज उसके बाल सूखाएं। सारांश अपने काम में लगा हुआ था। उसने बिना अवनी की तरफ देखे कहा, "ज्यादा मुस्कुराने की जरूरत नहीं है। सब जानता हूं मैं तुम्हारे इरादे।"


     अवनी उठी और बालों को इस तरह से झटका दिया जिससे उसके बाद सीधे सारांश के चेहरे से टकराए। सारांश मुस्कुरा दिया। अवनी उसके पास आई और उसके गले में बाहें डाल कर बोली "अच्छा! जरा तो मैं भी तो जानू, क्या है मेरे इरादे?"


     अवनी की ये रोमांटिक आवाज सुनकर सारांश ने उसको कमर से थाम लिया और अपने और करीब खींच कर बोला "यह जो तुम रोज-रोज मुझे तुम्हारे बाल सुखाने पड़ते हैं, यह बिल्कुल मत समझना कि तुम्हारी चलाकी मैं समझता नहीं हूं।"


     अवनी शिकायत भरे लहजे में बोली "आप आजकल इतने ज्यादा बिजी रहने लगे हो कि मुझे ऐसे ऐसे बहाने ढूंढने पड़ते हैं आपको अपने पास बुलाने का। आप मुझ पर ध्यान देना शुरू करिए तो मैं ऐसी कोई हरकत नहीं करूंगी।"


   सारांश उसे उसी की चाल में फंसाते हुए बोला "तुम भी कहां मेरी सुनती हो! कब से कह रहा था। और बच्चों की भी यही फरमाइश है, लेकिन तुम तो ऐसे जिद पर अड़ गई हो कि.....!"


     अवनी सारांश को हल्के से धक्का दिया और खुदसे दूर करने लगी। लेकिन सारांश ने अवनी पर से अपनी पकड़ छूटने नहीं थी। उसने एक हाथ से अवनी के पेट को छुआ और कहा, "उस वक्त को बहुत मिस करता हूं। सच में बहुत खूबसूरत दिन थे वह, जब तुम मुझे परेशान करती थी और चैन से सोने नहीं देती थी।"


    अवनी ने अपने पेट पर से सारांश का हाथ हटाया और बोली "दादा बनने की उम्र हो गई है आपकी। इस उम्र में यह सब? थोड़ा तो शर्म कीजिए!"


   सारांश इस पर थोड़ा रोमांटिक होकर बोला "उम्र चाहे जो भी हो, चाहे जितनी भी प्रमोशन हो जाए, लेकिन रहेंगे तो हम आपके पति और जब बीवी साथ में हो तो इंसान को रोमांस का कीड़ा ना काटे, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। सबसे पहले अपनी बीवी को खुश करना मेरा काम है। हां! अंशु ने अगर हमें दादा-दादी बना दिया तो फिर सोने पर सुहागा।"


     अवनी शरमा गई। सारांश ने उसे आईने के सामने बैठाया और धीरे-धीरे उसके बाल सुखाने लगा। अवनी के जेहन में समर्थ और चौहान घूम रहे थे। उससे रहा नहीं गया और बोल पड़ी "मिस्टर एंड मिसेज चौहान आज भी वैसे ही है बहुत ही हंबल। समर्थ को सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। लेकिन समर्थ है कि उनके प्यार को समझना ही नहीं चाहता। सगे नानू है वह। इस उम्र में उन्हें उसकी जरूरत है, लेकिन........!"


    सारांश अवनी के बाल सूखाते हुए बोला "समर्थ समझदार है। लेकिन बात जहां अपनों की आती है, तो हमारी सारी समझदारी धरी की धरी रह जाती है। वो अपने नानू नानी से इस तरह बिहेव नहीं करना चाहता। वह भी उनसे उतना ही प्यार करता है, लेकिन सबसे ज्यादा प्यार वो अपने डैड से करता है। जो भी नाराजगी है, सिर्फ और सिर्फ भैया की वजह से है। एक बात उसके दिल में जो बचपन में ही चुभ गई सो अब तक निकल नहीं पाई है। समर्थ ने अपनी आंखों से अपने डैड को गोली लगते देखा था, उन्हें खून से लथपथ देखा था। कैसे भूल जाए वह? हमने उस वक्त इतना ध्यान नहीं दिया। अगर दिया होता तो ऐसी नौबत ना आती।"


      अवनी सारांश की बात सुन भी रही थी और समझ भी रही थी। सारांश ने उसके बाल पूरी तरह सूखा दिया और उन्हें जुड़े में बांध दिया। अवनी एकाएक बोली "निहारिका ने शादी नहीं की। वो अपने करियर में लगी रही। उसका तो समझ में आता है लेकिन विविध! वहां क्यों नहीं आता? उसके मां पापा को उसकी जरूरत है, यह बात उसे समझनी चाहिए।"


     विविध का नाम सुनकर सारांश के हाथ रुक गए। इस बारे में वह कोई बात नहीं करना चाहता था और विविध का नाम तो सुनना भी नहीं चाहता था, खासकर अवनी के मुंह से। "रात बहुत ज्यादा हो गई अवनी! चल कर सो जाओ। दूसरों के बारे में सोच कर अपनी नींद खराब करोगी तो तबीयत बिगड़ जाएगी। फिर वह लोग देखने नहीं आएंगे जिनको लेकर तुम परेशान हो रही हो। हमें बाहर वालों से कोई मतलब नहीं होना चाहिए। जल्दी आओ।"


     सारांश बिना मुड़े अवनी को वहीं छोड़ बेड पर चला गया।



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