सुन मेरे हमसफर 13

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    खाना खाकर सोनू अपने कमरे में गई और नाइट सूट एक बैग में रखकर सीधे कुहू के पास जाने के लिए निकल गई। काया दरवाजे पर खड़ी उसका इंतजार कर रही थी, सोनू को देखते हुए उसके गले आ लगी और बोली "हैप्पी बर्थडे दी!"


     सोनू मायूस की आवाज में बोली "थैंक यू।"


     उसकी आवाज सुनकर काव्या किचन से बाहर आई और बोली "क्या हो गया, आज हमारी सोनू इतनी उदास क्यों है?"


     सोनू आगे आई और काव्या के गले लग कर बोली "कुछ नहीं मासी। आपकी प्यारी बहन, अब मुझ पर ध्यान ही नहीं देती तो सोच रही हूं, पेरेंट्स बदल लूं। ऐसा कोई ऑफर मिलेगा क्या?"


     काव्या ने सोनू के सर पर हल्के से मारा और बोली "पागल लड़की! क्या बकवास किए जा रही है? तुझे दुनिया के बेस्ट पेरेंट्स मिले है।"


    काया, सोनू और काव्या को अलग कर बोली "खबरदार! ऐसा कुछ सोचना भी मत। मेरी मम्मी सिर्फ मेरी है, और वह दुनिया के बेस्ट है।"


     सोनू ने काया को धीरे से धक्का दिया और काव्या को अपनी तरफ खींच कर बोली "वही तो मैं कह रही हूं! मेरी मम्मी बेस्ट है।" दोनों बहनों में लड़ाई हो गई कि काव्य किसकी मम्मी है।


    कार्तिक, जो दोनों बहनों की लड़ाई देख रहा था, वो धानी के पास गया और बोला "मां, याद है! कभी मैं और सारांश भी बड़ी मां के लिए ऐसे ही लड़ा करते थे।"


    धानी भी पुराने दिनों को याद करते हुए बोली "हा। वो वक्त एक बार फिर लौट कर आया है। तुम दोनों का बचपन मुझे एक बार फिर देखने को मिल रहा है। इससे ज्यादा खूबसूरत बात और क्या सकती है! लेकिन यह भी तो देखो, बेचारी काव्या की क्या हालत हो रही है! जाकर हेल्प करो।" धानी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और अपने कमरे में चली गई।


     कार्तिक ने बच्चो की खींचतान का मजे लेते हुए काव्या की तरफ देखा भी नहीं था। वाकई दो बहनों के बीच काव्या पेंडुलम बनी हुई थी। काव्या ने हार कर कार्तिक से हेल्प मांगी। कार्तिक वहां आया और दोनों बहनों को अलग करता हुआ बोला "क्या बचपना है यह सब? तुम दोनों बहने हो। सोनू बेटा, आपको जन्मदिन की ढेर सारी बधाई। और काया, कम से कम आज के दिन तो आप अपनी बहन से लड़ाई ना ही करो तो बेहतर है। अंशु नहीं है यहां पर। आज के दिन यह हक सिर्फ उसका है।"


     कुहू अपने कमरे से बाहर निकली और दोनों को डांट लगाती हुई बोली "तब से इंतजार कर रही हूं मैं तुम दोनों का लेकिन यहां तुम्हें लड़ने से फुर्सत मिले तब तो! चलो मेरे साथ।"


     सोनू और काया भागते हुए कुहू से भी पहले उसके कमरे में जा घुसी और बिस्तर पर फैल कर लेट गई। कुहू अपने कमरे में आई और उन दोनों को इस तरह अपना बिस्तर कब्जा किए देख बोली "तुम दोनों उठो यहां से। ये मेरा कमरा है और यह मेरा बेड है।"


     सोनू जल्दी से उठी और शरारत से बोली "हां जानती हूं आपका कमरा है और आपका बिस्तर भी। लेकिन कब तक? कुछ दिनों बाद तो आप शादी करके निकल जाओगी, फिर तो यहां हम दोनों का ही कब्जा होगा तो हम अभी से ही प्रैक्टिस कर रहे हैं।"


    कुहू ने सोफे पर से कुशन उठाया और दोनों को मारने लगी। उन दोनों ने भी बिस्तर से तकिया उठाया और अपना बचाव करते हुए तीनों पिलो फाइट में लग गई। लेकिन कुहू सबसे बड़ी थी और वह दोनों पर भारी पड़ रही थी। काया को बचने का और कोई तरीका नजर नहीं आया तो वह कुहू से बोली "अरे कुहू दी! यह सब बात बाद में, पहले यह तो बताओ, कल आप क्या पहनने वाले हो?"


     सोनू चौक गई और बोली "कल? मतलब कुछ है क्या?"


    कुहू उसे अजीब तरह से देखने लगी तो काया उसके सर पर चपत लगा कर बोली "पागल! कल कुहू दी की सगाई है, भूल गई क्या?"


     सोनू वाकई में भूल गई थी। आज उसका बर्थडे था और ना अंशु था ना ही सारांश और अवनी। ऐसे में उसे कुछ याद ही नहीं रहा।


    कुहू जल्दी से अपने अलमारी की तरफ गई और अंदर से एक बैग निकाल कर उनके सामने रख दिया। सोनू और काया दोनों एक्साइटमेंट में जल्दी-जल्दी बैग खोलकर अंदर से ड्रेस निकाला तो दोनों की आंखें चौंधिया गई। हल्के नीले रंग का वह गाउन जिसे काफी खूबसूरती से काव्या ने खुद डिजाइन किया था। सोनू और काया दोनों एक साथ चिल्लाई, "वाह दी! आप यह वाला ड्रेस पहनोगे कल?"


    कुहू दोनों हाथ बांधकर तन कर खड़ी हो गई। यह उसका जवाब था। कुहू वाकई अपने और कुणाल के रिश्ते के लिए काफी एक्साइटेड थी। काया ने एकदम से सवाल किया "दी! आपने बताया नहीं, जीजू ने आपको प्रपोज कब किया था?"


    कुहू के चेहरे का सारा रंग फीका पड़ गया। उसके चेहरे पर एक उदासी आ गई। वह दोनों ड्रेस को देखने में ही इतनी मग्न थी की यह बात नोटिस ही नहीं की। कुहू का कोई जवाब ना मिलते देख सोनू ने ही सवाल किया "अरे पहले यह तो बताइए कि आप दोनों में से पहले प्रपोज किसने किया था?" इस बार भी कुहू की तरफ से जब कोई जवाब नहीं मिला तो उन दोनों ने ड्रेस साइड में रखा और कुहू की तरफ देखा तो उसके चेहरे पर जो खामोशी फैली थी उसे देख वह दोनों एक दूसरे का चेहरा देखने लगी।


    सोनू बिस्तर से उतर कर आई और कुहू का चेहरा छू कर बोली "क्या हुआ दी? अभी-अभी जो चेहरा गुलाब की तरह खिला हुआ था, ऐसे मुरझा क्यों गया ?"


   काया भी उसके पास आई और बोली "हां दी! आप क्यों इतने उदास लग रहे हो? आपने बताया नहीं, आप दोनों में से पहले प्रपोज किसने किया?"


     कुहू जाकर बिस्तर पर बैठ गई और बुझे मन से बोली "किसीने नहीं।" दोनों बहने चौक पड़ी और एक साथ बोली "किसी ने नहीं मतलब?"


    कुहू बिस्तर पर लेट कर बोली "अभी तक जो कुछ भी हुआ है, सिर्फ घरवालों की तरफ से हुआ है। ना उसने मुझसे कभी कुछ कहा और ना ही मुझे कुछ कहने का मौका मिला। मैंने सोचा, अगर वह नहीं कहता तो मैं ही अपने दिल की बात कह दूं। लेकिन आज मैंने उससे बात करने की कितनी कोशिश की। उसने एक बार मुझे कॉल बैक किया और मेरी बात पूरी सुने बिना ही फोन रख दिया। उसके बाद से कई बार कॉल किया है मैंने लेकिन वह है कि कॉल रिसीव नहीं कर रहा। कर भी रहा है तो बिजी हूं कहकर फोन रख दे रहा है। पता नहीं क्या चल रहा है उसके दिमाग में।"


     काया अपनी बहन को ऐसे उदास नहीं देख पाई। उसने कुहू का गाउन फोल्ड कर वापस बैग में डाला और सोनू को पकड़ा दिया। सोनू ने उस बैग को उसके सही जगह पर रखा और दोनों आकर कुहू के अगल-बगल लेट गई।


    कुहू का मूड ठीक करने के लिए सोनू ने अपना फोन निकाला और शिविका को फोन लगा दिया। शिवि भी अभी सोने ही जाने वाली थी। जब उसने कुहू के उदासी की वजह जानी तो बोली "कोई बात नहीं दी, होता है ऐसा। जरूर वह ऑफिस के काम में बिजी होगा, वरना हमारी प्यारी सी दी को कोई इनकार कर दे, ऐसा हो ही नहीं सकता। आप देखना, वो भागता हुआ आएगा और आपसे अपने प्यार का इजहार करेगा। थोड़ा सा वक्त दीजिए उसे।"





      निशि की आंखों में एक बार फिर आंसू आ गए। वो चाह कर भी कुछ ना कह पाई और सर झुका कर रोने लगी। अव्यांश से और देखा नहीं गया। वो मिश्रा जी के पास आया और उन्हें समझाते हुए बोला "ये आप क्या कर रहे हैं? इस तरह अपने बच्चे पर कोई हाथ उठाता है क्या? माना मैं आपसे छोटा हूं, ज्यादा समझ नहीं है मुझे लेकिन इतना तो मैं दावे से कह सकता हूं कि निशि से ऐसी कोई हरकत नहीं कर सकती जिसके लिए कोई उस पर उंगली उठाए। उसमें आपके संस्कार है। आपको अपनी बेटी पर भरोसा होना चाहिए लेकिन आप एक ऐसे इंसान की बातों पर भरोसा कर रहे हैं जिसकी अपनी कोई पहचान नहीं। जो दूसरों की पहचान लेकर इतने वक्त तक सब को धोखा देता रहा, जिसकी नियत में खोट है, जिसके संस्कारों में खोट है, आप ऐसे इंसान पर भरोसा करके अपनी ही बेटी, अपने संस्कार पर हाथ उठा रहे हैं?"


    सारांश ने अवनी की तरफ गर्व से देखा मानो तो कह रहा हो, "देखो! मेरा बेटा बिगड़ा नहीं है।"


    अवनी उनके पास आई और मिश्रा जी से बोली "मिश्रा जी! अंशु ठीक कर रहा है। जिस इंसान का खुद का कोई करैक्टर नहीं उसकी वजह से आप अपनी बेटी को उस गुनाह की सजा नहीं दे सकते जो उसने किया ही नहीं।"


     अवनी ने निशि की मां की तरफ देखा और बोली "बहन जी! आप निशि को यहां से लेकर जाइए। इस वक्त उसे ऐसे माहौल से दूर रखिए और उसे अकेले मत छोड़िएगा।" निशि की मां उसे वहां से ले कर चली गई।


   उसके जाने के बाद अव्यांश बोला "मिश्रा जी! आपकी बेटी ने ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे आपका सर झुके। जो बकवास हो कर रहा था मुझे नहीं पता वह किस बेसिस पर कर रहा था लेकिन इतना जान लीजिए, वहां मैं भी मौजूद था। ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसके कारण आपको शर्मिंदा होना पड़े।" अव्यांश ने कह तो दिया था लेकिन वाकई उसे भी नहीं पता था कि वहां हुआ क्या था।


    मिश्रा जी ने अपना सर पकड़ लिया और वही मंडप के पास सीढ़ियों पर बैठ गए। "कौन गलत है कौन सही, इसका फैसला तो होता रहेगा लेकिन इस सब में मेरी बच्ची की खुशियों का गला घोट दिया गया। मेरी बच्ची अब इस सब में से कैसे बाहर निकलेगी? आज यहां जो सारे लोग खड़े होकर तमाशा देख रहे हैं, यही लोग मेरी बच्ची का जीना मुश्किल कर देंगे। आखिर किस बात की सजा मिली उसे? ऐसी क्या गलती की थी हमने जो यह दिन देखना पड़ा?"


    मिश्रा जी के भाई आगे आए और बोले "भाई साहब! आपको भी इस तरह बर्ताव नहीं करना चाहिए था। अरे अपने होने वाले समधी का कलर कौन पकड़ता है? लड़के वाले वैसे ही तुनक मिजाजी होते हैं। आप लड़की वाले हैं आपको झुक कर रहना चाहिए था।"


     अवनी को गुस्सा आ गया और वह मिश्रा जी के भाई को डांटते हुए बोली "ये आप कैसी बात कर रहे हैं भाई साहब? बेटी वाले है इसका मतलब यह नहीं कि उनका कोई आत्मसम्मान नहीं है! लड़की वाले हैं तो झुक कर रहना है, ये प्रथा हमारे समाज में तो नहीं थी कभी! जब तक हम इस बात को अपने सर पर लेकर ढोते रहेंगे, तब तक लड़की वालों को दबाता रहेगा यह समाज। बात अगर झुकने की है तो लड़के वालों को झुकना चाहिए। और इतनी देर से आप क्या कर रहे थे? कहां थे आप जब यह सारा तमाशा हो रहा था?" 


     मिश्रा जी इस सब से थक चुके थे। वो उठे और पूरे मेहमान के सामने हाथ जोड़कर बोले "यहां कोई शादी नहीं होतने वाली। आप लोग जा सकते हैं।" और वहां से चले गए।


    एक बेटी के बाप की ऐसी हालत देख सारांश का दिल पसीज गया। उसने अवनी हाथ पकड़ा बोला "मुझे तुम्हारी हेल्प चाहिए।



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