सुन मेरे हमसफर 12

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    अवनी को ऐसे अंश के लिए परेशान होता देख अव्यांश नाराज हो गया और अंश को दो-चार किक और जमा दिया। फिर अवनी के सामने खड़ा होकर बोला "क्यों नहीं? मैंने तो ऐसी कोई हरकत नहीं की थी, फिर भी आपने मुझे पनिशमेंट दी तो फिर इसे पनिशमेंट क्यों ना मिले? इतनी घटिया हरकत करने के बाद कोई इंसान जिंदा रह भी कैसे सकता है?"


      अवनी उसे शांत करते हुए बोली "इसे इसके किए की सजा जरूर मिलेगी। कानून देगा इसको इसकी सजा।"


     अव्यांश गुस्से में बोला "कानून? आपका कानून कहां था जब इसने आप पर हाथ उठाया था? तब कहां था जब इसने निशि को गलत तरीके से पकड़ा था, उसे गंदी नजर से देख रहा था? जब तक आप फोन नहीं करोगे ना, आप का कानून नहीं आएगा। और हर बार कानून के भरोसे हम नहीं रह सकते। आई एम सॉरी मॉम! लेकिन मैं उन बेटों में से नहीं हूं जो अपनी मां के साथ गलत होता हुआ देख सके। आपकी तरफ कोई नजर उठाकर देखें तो आपका यह बेटा उसकी आंखें निकाल लेगा, इसने तो आप पर हाथ उठाया है। जिंदा गाड़ दूंगा में इसे!"


     अव्यांश की धमकी सुनकर अंश ने अवनी के पैर पकड़ लिया और बोला "मुझे माफ कर दीजिए! मुझे बचा लीजिए वरना यह मुझे मार डालेगा।"


     पुलिस की गाड़ी वहां पहुंची और कमिश्नर साहब खुद वहां सारांश के सामने आकर खड़े हो गए। अव्यांश ने एक बार फिर अंश को बालों से पकड़ा और बोला "अब तुझे पता चलेगा मेरी मां पर हाथ उठाने का क्या अंजाम होता है! उनकी आंखों में तेरी वजह से आंसू आए, तुझे भी अगर खून के आंसू ना रुलाया तो मैं भी अव्यांश मित्तल नहीं।"


    अंश, जिसकी हालत खराब थी, उसे अव्यांश की बातों से झटका लगा। बड़ी हिम्मत करके उसने पूछा "क... कौन हो तुम?" अव्यांश प्यार से मुस्कुरा दिया।


     अवनी उठ खड़ी हुई और अंश को हिकारत भरी नजरों से देख कर बोली "ले जाइए इसे और इसकी ऐसी खातिरदारी कीजिए कि आइंदा कभी ये किसी लड़की की तरफ आंख उठाकर देखने से भी डरे।" कमिश्नर साहब ने अपने साथ आए पुलिस वालों को इशारा किया और अंश को अरेस्ट करने को कहा।


     पुलिस वाले आगे आए और अंश को हथकड़ी पहना कर ले जाने लगे तो अव्यांश ने उन्हें रोका। अंश की हालत वैसे ही बहुत खराब थी। वो सीधा खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। अव्यांश उसके सामने आकर तन कर खड़ा हुआ और बोला "दूसरों की पहचान चुराकर जीते जीते तुम अपनी असली औकात भूल गए। यू नो व्हाट अंश! नाम एक होने से सरनेम एक नहीं हो जाते। ना ही संस्कार एक से होते हैं। तुम्हें पता है, तुम्हारा यह झूठ कभी इस तरह सामने नहीं आता अगर तुमने जरा सा भी सिया मित्तल के संस्कार दिखाएं होते। झूठ ही सही लेकिन लोगों को यह यकीन होता कि तुम वाकई सिया मित्तल के पोते हो। तुमने पूछा ना, मैं कौन हूं? तो सुनो। मिस्टर फेक अंश मित्तल! आई एम द रियल अंश सारांश मित्तल।"


      अंश की आंखें हैरानी से फैल गई। उसने कुछ कहना चाहा "तुम........ तुम अंश....... लेकिन अव्यांश........!"


     अव्यांश उसका कॉलर ठीक करता हुआ बोला "अंश नहीं, अव्यांश मित्तल। अंश मुझे घर पर बुलाते हैं, तुम जैसे कमीने नहीं।"


    अंश ने एक नजर अव्यांश को देखा, फिर अवनी को। इससे पहले उसने अवनी को देखा नहीं था, और अव्यांश के किसी बात पर भरोसा ना करने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। अव्यांश बिल्कुल अपनी मां की तरह दिखता था। उसके चेहरे के काफी सारे फीचर्स उसे अपनी मां से मिले थे और कुछ अपने पिता सारांश से। इसीलिए अवनी का चेहरा उसे जाना पहचाना लग रहा था।


    मिश्रा जी भी शॉक्ड थे। जिस लड़के को उन्होंने काम सिखाया था, जिसकी छोटी छोटी गलतियों पर भी डांटने से वह कभी नहीं हिचकते थे, और जिससे प्यार से कई सारे काम करवाए थे, वो कोई मामूली एम्पलाई नहीं बल्कि उनका बॉस था। उन्होंने कभी अव्यांश के चेहरे की तरफ ध्यान ही नहीं दिया था। अवनी से भी मिले उन्हें काफी अरसा हो चुका था। बस उन्हें अव्यांश अपना सा लगता था इसलिए वह अव्यांश से काफी फ्रेंडली थे।


 सारांश आगे आया और अव्यांश के कंधे पर हाथ रख कर बोला, "वैसे ये है कौन, जिसने इतना बड़ा तमाशा किया?"


     अव्यांश ने तिरस्कार भरी नजर अंश पर डाली और सर से पैर तक देखता हुआ बोला "आप के सबसे पुराने एंप्लॉयी, मिस्टर ढोलकिया, ये उन्हीं का बेटा है।"


     सारांश को अपने किसी एंप्लॉय से ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी कि वह अपने बेटे को उसका बेटा बता कर ऐसे ऑफिस में धौंस जमाए और अव्यांश का नाम खराब करे। उसने अपना फोन निकाला और एक मैसे टाइप कर किसी को भेज दिया। इसका साफ मतलब था कि अब न सिर्फ अंश, बल्कि उसके पिता भी बहुत बड़ी मुश्किल में पड़ने वाले थे। 


     पुलिस अंश को अपने साथ ले गई और वहां चल रहा सारा तमाशा एकदम से शांत हो गया। पूरे माहौल में किसी मरघट से शांति छाई हुई थी। अव्यांश को कुछ ध्यान आया और उसने पलट कर जनवासे में खड़े सारे लोगों को देखा। उसकी नजर निशी पर गई जो अभी भी अपनी मां की गोद में सर रख कर रो रही थी। उसे निशी की यह हालत देखकर बहुत बुरा लगा। उसने कड़कती आवाज में कहा "यहा जो कुछ भी हुआ है, वह अगर यहां से बाहर ना जाए यही सबके लिए बेहतर होगा।" 


    सभी चुपचाप उसकी बात सुन रहे थे लेकिन देवेश के पिता आगे आए और देवेश का हाथ पकड़ कर अपने साथ ले जाने लगे। "चल यहां से! बहुत हो गया तमाशा। अब हमें अपना और तमाशा नहीं बनवाना।"


    मिश्रा जी भागते हुए आए और विनती करते हुए बोले "ये आप क्या कर रहे हैं समधी जी? शादी का मुहूर्त निकला जा रहा है, आप लोग कहां जाने की बात करते हैं?"


     देवेश के पापा बोले "समधी नहीं है हम आपके। अच्छा हुआ जो यह रिश्ता होने से पहले ही हमारे सामने आपकी बेटी की असलियत आ गई। अरे हम तो पहले ही रिश्ते के खिलाफ थे। सिर्फ अपने बेटे की वजह से हमने हा की थी। लेकिन आपकी बेटी इतनी बदचलन निकलेगी, सोचा नहीं था।"


     देवेश चुपचाप अपना सर झुकाए खड़ा था, जैसे अपने पिता के सारे इल्जाम को वह सही मानता हो। मिश्रा जी ने अपनी बेटी की तरफ देखा और बोले "समधी जी, ऐसी बात मत कहिए। आपने देखा ना, वह लड़का खुद कितना बड़ा फ्रॉड था! ऐसे कैसे आप किसी अजनबी की बातों पर भरोसा करके ये रिश्ता तोड़ सकते हैं? मेरी बेटी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी, अगर यह बारात बिना शादी के वापस लौट गई तो। लोगों मेरी बेटी को जीने नहीं देंगे।" मिश्रा जी लगभग रो पड़े।


      लेकिन देवेश के पापा पर इस सब का कोई असर नहीं हुआ। वो तंज कसते हुए बोले "यह तो आपको पहले सोचना चाहिए था। आपकी बेटी कल रात कहां थी, किसके साथ थी, और क्या कर रही थी? एक सवाल का जवाब दीजिए, वह लड़का जो भी था, वह कल रात की बात क्यों कर रहा था? है कोई जवाब आपके पास? कैसे मान लूं कि आपकी बेटी पवित्र है!"


     निशी पर इतना घटिया इल्जाम लगते देख अव्यांश का खून खौल उठा। वो जवाब देने के लिए आगे बढ़ने को हुआ लेकिन सारांश ने उसे रोक दिया। यह उनका फैमिली मैटर था और किसी बाहर वाले का इस बीच में दखल देने से बात बिगड़ सकती थी। अव्यांश को ना चाहते हुए भी पीछे हटना पड़ा। उसकी नजर बस निशि पर टिकी हुई थी।


     मिश्रा जी अपनी बेटी के चरित्र पर उसकी उंगली बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने देवेश के पिता का कॉलर पकड़ लिया "हिम्मत कैसे हुई आपकी, मेरी बेटी के बारे में ऐसी घटिया बात कहने की? मेरी बेटी पर उंगली उठाने की हिम्मत भी मत करना आप! कोई एहसान नहीं किया है आपने इस रिश्ते के लिए हां कह कर। अच्छी खासी मोटी रकम वसूली है आपने मुझसे। आप जैसे भिखारी इंसान को मैं मेरी बेटी के बारे में कुछ भी कहने का हक नहीं देता।"


    मिश्रा जी के भाई और परिवार के अन्य सदस्य ने दोनो के बीच सुलह करवाने की कोशिश की लेकिन देवेश के पिता अड़ गए। उन्होंने अपने बेटे का हाथ पकड़ा और उसे लेकर बाहर निकलने लगे। देवेश ने मुड़कर निशी की तरफ देखा। जिस निशि की आंखों में उसे अपने लिए प्यार नजर आता था, आज वहीं निशि उसे नफरत से देख रही थी और मानो कह रही हो कि तुम भी बाकियों की तरह निकले।


     एक-एक कर सारे बाराती वापस लौट गए। मिश्रा जी ने अपना सर पकड़ लिया और वहीं जमीन पर गिर पड़े। अवनी ने सारांश उसका हाथ पकड़ा और बोली "आपको मिश्रा जी को संभालना चाहिए। एक बेटी के बाप के लिए ये वक्त बहुत मुश्किल होता है। आप भी एक बेटी के बाप हो।"


     सारांश भी मिश्रा जी की मनोदशा समझ रहा था। आज जो निशि के साथ हुआ, वो सुहानी के साथ इमैजिन भी नही कर सकता। सारांश आगे बढ़ा और मिश्रा जी के कंधे पर हाथ रखा। "मिश्रा जी, उठिए। मैं जानता हूं आप बात मुश्किल वक्त से गुजर रहे हैं लेकिन आपको अभी अपने परिवार को संभालना है। कुछ भी सोचने से पहले एक बार आप अपनी बेटी की तरफ देखिए। उसे आपकी हिम्मत और साथ की बेहद जरूरत है।"


     मिश्रा जी होश में आए और उन्होंने अपनी बेटी की तरफ देखा। अपनी बच्ची को इस तरह रोते देख, उनका दिल पसीज गया लेकिन अंश की बातें और देवेश के पिता का ताना। इन दोनों ने मिश्रा जी को अपनी ही बेटी पर गुस्सा करने को मजबूर कर दिया। वह उठे और निशी की तरफ बढ़े।


    "कल रात कहां थी तुम? वह लड़का क्यों कल रात के बारे में बात कर रहा था?"


     निशि क्या बताती? सबसे छुपकर वह कल रात पार्टी के लिए गई थी। और अंश के साथ जो उसके लड़ाई हुई, इस बारे में वो कैसे किसको समझाएं।" निशी से जवाब ना पाकर मिश्रा जी का पारा गर्म हो गया और जिस लाडली से उन्होंने कभी ऊंची आवाज में बात नहीं की थी, उस बेटी पर उन्होंने हाथ उठा दिया।



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