सुन मेरे हमसफर 11

 SMH 11





मित्तल निवास में,


      डाइनिंग टेबल पर खाना लग चुका था। सारे अपने अपने कमरे में थे। श्यामा ने सबको आवाज लगाई और सिया को बुलाने उनके कमरे में गई। सिया उस वक्त कोई किताब पढ़ रही थी। उन्होंने अपने हाथ में पकड़ा किताब साइड में रखा और पूछा "सारांश और अवनी सही से पहुंच गए?"


     श्यामा बोली, "हां मां! और अवनी तो अंशु से मिलने के लिए इतनी बेताब थी कि पूछो मत।"


    सिया ने गहरी सांस ली और बोली, "समझ सकती हूं मैं उसकी हालत। मैने भी बरसों अपने बच्चे की रह देखी है। वो तो तुम आ गई वरना आज भी मैं वैसी ही होती।"


    श्यामा घुटने के बल बैठी और सिया का हाथ थामकर बोली, "हर दिन एक जैसा नहीं होता है मां! मैं भी तो अंधेरी दुनिया से निकलने की कोशिश कर रही थी। तब सिद्धार्थ ने मेरा हाथ थामा था और आप सबने मिलकर मुझे उजाले में खींचा था। अगर आप लोग नही होते तो मैं भी पता नहीं कहां होती और जो खुशियां आज अपने दामन में समेटे हुए हूं, उन खुशियों के बारे में सोचना भी दुभर होता।"


     सिया ने प्यार से श्यामा के सिर पर हाथ फेरा और बोली, "जो भी होता है वो अच्छे के लिए ही होता है। तुम दोनो को साथ होना था इसीलिए हर मुश्किल से लड़कर दोनों साथ आए। यह घर अब घर लगता है वरना गिनती के हम तीन लोग थे। मैं, सारांश और जानकी......."


     जानकी का नाम आते ही सिया थोड़ा उदास हो गई। बचपन से दोनों सहेलियां साथ पली बढ़ी और पिछले कुछ सालों से वो दोनो एक दूसरे से दूर थे। श्यामा ने दिलासा देते हुए कहा "मां! जानकी मासी अपने बेटे के साथ खुश है। जिस प्यार की चाहत उन्हें हमेशा से थी, वो उन्हें मिल रहा है। शुभ, मासी को अपनी मां मानने लगा है, इससे बड़ी बात उनके लिए और क्या हो सकती है! और फिर आप ही तो चाहती थी ना, दोनों मां बेटे एक हो जाए! हालातों की वजह से शुभ हमारे साथ नहीं रह सकता था। जो कुछ भी उसने किया उसके बाद तो वाकई सबके बीच रहना उसके लिए भी मुश्किल होता। आप ही कहते हो ना, खुश रहना ज्यादा जरूरी है चाहे पास रहकर हो या दूर रह कर। और मासी दूर कितनी है? एक फोन कॉल की ही तो दूरी है!"


    श्यामा का इतना कहना था कि सिया का फोन बज उठा। जानकी मासी का नंबर देखकर ही सिया खुश हो गई और कॉल रिसीव किया। श्यामा, कहां तो सिया को बुलाने आई थी लेकिन उन्हें उनकी सहेली के साथ छोड़कर वापस डाइनिंग एरिया में चली आई जहां सिद्धार्थ और सोनू मौजूद थे।


    समर्थ शाम के पीछे से आता हुआ बोला "दादी कहां है?"


    श्यामा ने एक-एक कर सबका प्लेट लगाना शुरू किया और बोली "तुम्हारे लिए एक लड़की देखी है, उसी के घर वालों से बात कर रही हैं।" 


   बैठते हुए समर्थ शॉक्ड रह गया। उसने सिद्धार्थ की तरफ देखा और बोला "डैड! क्या हो रहा है यह सब? मैंने क्लीयरली कहा था, मुझे नहीं करनी शादी, फिर क्यों?"


    सिद्धार्थ श्यामा की साइड लेता हुआ बोला "30 पार कर चुके हो। अब नहीं करनी तो क्या बुढ़ापे में करनी है? मां अगर तुम्हारे लिए कोई लड़की देख रही है तो उसमें गलत क्या है? कौन सा बाल ब्रह्मचारी बनकर पूरी जिंदगी तुम्हें हिमालय में तपस्या करनी है? कोई रीजन हो तो बताओ। अगर यह सब किसी खास के लिए है तो मिलवाओ उससे। हम भी तो जाने, हमारे बेटे की पसंद कैसी है।"


     समर्थ चिढ़ गया। "कोई नहीं है। मुझे नहीं करनी शादी मतलब, नहीं करनी। कोई समझता क्यों नहीं मेरी बात? मेरी शादी के अलावा भी डिस्कस करने को बहुत सारी बातें हैं, बहुत सारी टॉपिक्स है। हम उसके बारे में बात कर सकते हैं।"


     सिद्धार्थ ने एक भौंह ऊपर चढ़ाई और पूछा "रियली? क्या मैं जान सकता हूं, और ऐसे कितने मुद्दे हैं जिसके बारे में हम बात कर सकते हैं, तुम्हारी शादी के अलावा? वक्त रहते शादी हो जाए तो लाइफ में कोई प्रॉब्लम नहीं आती। अब अगर तुम्हें लगता है कि मेरे नक्शे कदम पर चल कर तुम्हारी लाइफ सेटल हो जाएगी तो मैं पहले ही बता दे रहा हूं, मैं लकी था इसका मतलब ये नहीं कि तुम भी लकी होंगे।"


     समर्थ का चेहरा लटक गया। उसे ऐसे देख श्यामा की हंसी छूट गई। साथ ही सभी हस पड़े।


    




    सारांश को देखकर मिश्रा जी को एक उम्मीद जागी। वो भागते हुए सारांश के पास आए और हाथ जोड़कर बोले "सारांश सर! देखिए ना, आपका बेटा मेरी बेटी को.......!" मिश्रा जी आपकी बात पूरी नहीं कर पाए और रो पड़े।


     वही सारांश का नाम सुनकर जैसे अंश के शरीर में खून ही बाकी नहीं रहा हो। डर से वह पूरी तरह पीला पड़ चुका था। अवनी को संभाले हुए अव्यांश के चेहरे पर घबराहट और चिंता साफ नजर आ रही थी उसने अवनी को सीधा खड़ा किया और उसे सर से पैर तक देखता हुआ बोला "आप ठीक हो?" अवनी ने बस अपनी गर्दन हिला दी। 


    सारांश को ऐसे किसी भी हादसे की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी, सो वक्त पर वो कुछ रिजेक्ट नहीं कर पाया। लेकिन राहत की बात यह थी कि अवनी ठीक थी। वह भागते हुए अवनी के पास पहुंचा और उसे संभाला। अवनी खुद भी डर गई थी इसलिए वह भी सारांश के सीने से लग गई।


     मिश्रा जी ने एक बार फिर सारांश का ध्यान वहां चल रहे तमाशे की तरफ खींचा। "सारांश सर! अपने बेटे को समझाइए, वो जो कर रहा है उससे मेरी बेटी की जिंदगी बर्बाद हो सकती है।"


     सारांश ने अंश की तरफ देखा जो अभी भी निशि का हाथ पकड़े खड़ा था। सारांश सख्त लहजे में बोला "मैं मेरे बेटे को बहुत अच्छे से जानता हूं। वो ऐसी कोई हरकत नहीं करेगा जो गलत हो। उसे अच्छे बुरे की पहचान है, बहुत अच्छे से हैं।"


     अव्यांश का पूरा ध्यान अवनी पर था, जब उसने मिश्रा जी और सारांश की बात सुनी। अव्यांश ने नजर उठाकर सारांश की तरफ देखा और फिर अंश की तरफ। उसकी मुट्ठी गुस्से में कस गई, चेहरा लाल पड़ गया और कदम अंश की तरफ बढ़ चले। अंश ने हमेशा से ही अव्यांश को लड़ने के लिए उकसाया था, लेकिन कभी भी अव्यांश ने पलट कर ऐसा कोई जवाब नहीं दिया था जिससे दोनों के बीच लड़ाई हो। उसके हर हरकत का जवाब अव्यांश ने अपने काम से दिया था। लेकिन आज...... आज कुछ और बात थी।


     अव्यांश की आंखों में जो नफरत और गुस्से की आग थी, उसे देख कर अंश के पैर कांपने लगे। उसके सामने जो खड़ा था, वो उसे जानता तक नहीं था। यह कोई और ही था। अव्यांश का रौद्र रूप देखकर अंश के हाथ से निशि का हाथ छूट गया। मौका मिलते ही निशि अपने मां के पास भागी और उनके आंचल में जाकर छुप गई। अंश ने अपने बचाव के लिए इधर-उधर देखना शुरू किया लेकिन आज उसे बचाने वाला कोई नहीं था। अव्यांश उस पर टूट पड़ा।


    अव्यांश का यह रौद्र रूप देखकर वहां मौजूद किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि वह अंश को बचाने की कोशिश भी करें। जो दो लड़कियां अंश के साथ आई थी, वह भी भीड़ का फायदा उठाकर वहां से भाग चुकी थी। अव्यांश ने जरा सी भी रहम नहीं दिखाई। अब तक का उसके अंदर का गुब्बार आ बाहर आने को था।


     अंश की हालत देखकर मिश्रा जी बोले "सर रोकिए उसे! आपका बेटा है वह। बच्चे गलतियां करते हैं तो हम बड़ों का काम है उसे सुधारना।"


    अवनी बोली "गलतियों को सुधारा जा सकता है मिश्रा जी, गुनाहों को नहीं। गुनाहों की सजा होती है।"


    मिश्रा जी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर अपने बेटे को ऐसे दर्द में देख उन्हें तकलीफ क्यों नहीं हो रही! वह कुछ कहते, उससे पहले सारांश बड़े बेफिक्र अंदाज में बोला "मिश्रा जी! कब से खड़े हैं हम यहां पर। जरा कुर्सी वगैरह तो लगवाइए!"


     वहां मौजूद सभी सारांश के इस अंदाज से हैरान रह गए। उनके सामने उनका बेटा मार खा रहा था और उन्हें जैसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। मिश्रा जी के भी पास अपने सामने खड़े विशेष अतिथि का स्वागत करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। उन्होंने किसी को आवाज लगाई और सारांश और अवनी के लिए बैठने का इंतजाम करवाया।


    सारांश और अपनी दोनों बड़े आराम से बैठे थे और अव्यांश अंश को बुरी तरह मारे जा रहा था। सभी खड़े होकर वहां तमाशा देख रहे थे। शायद उनका यही काम था। अव्यांश का जब दिल भर गया तब उसने अंश को उठाया और निशी के पैरों में डाल दिया। अंश बेसुध सा पड़ा हुआ था। अव्यांश ने बालों से पकड़कर अंश का चेहरा ऊपर किया और बोला "मेरी नजर में, जो लड़कियों की इज्जत नहीं करता उन्हें जीने का भी हक नहीं होता। अगर जिंदा रहना चाहता है, माफी मांग इससे।"


     निशी अभ्यांश को देखती रह गई। अंश ने निशि के पैर पकड़ लिए और बोला "मुझे माफ कर दो। मुझ से गलती हो गई, मुझे माफ कर दो। मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा। इससे कहो मुझे छोड़ दे।" निशी को समझ नहीं आया कि आखिर वह कहें तो क्या कहें।


    अव्यांश अंश को वैसे ही बालों से पकड़कर घसीटते हुए दूसरी तरफ लेकर आया और अवनी के सामने घुटने के बल बैठा कर बोला "इनसे तो तू नाक रगड़ कर माफी मांग।"


     अंश नजरे उठाकर अवनी को देखने लगा। ये चोट की वजह से था या शराब का असर, लेकिन अवनी का चेहरा उसे थोड़ा जाना पहचाना लग रहा था। उसने आंखे पूरी तरह खोलकर देखने की कोशिश की। अव्यांश ने उसे चुपचाप अवनी को घूरता हुआ पाया तो उसके सर पर एक जोर की किक मारी, जिससे वह पूरा ही जमीन पर लेट गया। अवनी जोर से चिल्लाई "अंशु नहीं...........!"




Link


सुन मेरे हमसफर 12




सुन मेरे हमसफर 10





    

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274