सुन मेरे हमसफर 10

 SMH 10






    अव्यांश, मिश्रा जी के साथ बारात का स्वागत करने दरवाजे पर पहुंचा। दरवाजे पर पहुंच कर भी सारे बाराती नाचने में व्यस्त थे। अव्यांश यह सब देखकर काफी इंजॉय कर रहा था, लेकिन उसकी आंखों में कुछ खटका। उसका ध्यान दूल्हे की तरफ गया जो किसी को देखकर मुस्कुराए जा रहा था। वो चौंक गया जब उसने देखा, दूल्हे ने किसी को फ्लाइंग किस दिया। यह देखकर ही अव्यांश की नजर उस तरफ गई।


     बालकनी में दुल्हन अपने पूरे श्रृंगार में खड़ी थी और बेहद ज्यादा खुश लग रही थी। लेकिन अव्यांश के चेहरे की सारी खुशी गायब हो गई। दिल ने जैसे धड़कने से इंकार कर दिया। वह अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पा रहा था। उसके होंठ धीरे से हिले "निशी? लेकिन वो यहां कैसे हो सकती है? जरूर ये कोई मेरा वहम है।" 


    अव्यांश ने अपनी आंखें मली और फिर से दुल्हन को देखा। उसके बगल में खड़ी लड़की, यानी उसकी दोस्त को देख अब शक की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रही। ये वही लड़की थी जो निशि को अपने साथ लेकर गई थी। फिर भी एक हल्की सी उम्मीद उसके मन में जगी। हो सकता है दुल्हन कोई और हो, ये सोचकर अव्यांश ने अपना फोन निकाला और शादी का कार्ड जो मिश्रा जी ने भेजा था उसे देखने लगा।


     कार्ड पर दुल्हन का नाम देखा तो रही सही हल्की सी उम्मीद भी खत्म हो गई। "निशिता मिश्रा!" अव्यांश का दिल टुकड़ों में बिखर गया। उसने अपने दिल पर हाथ रखा और खुद से बोला "इतनी तकलीफ क्यों हो रही है तुझे? बस एक बार यह तो मिला है तू उससे, फिर क्यों?" 


   सारे बाराती जब नाच नाच कर थक गए तब जाकर सब शांत हुए और एक-एक कर जनवासे में जाना शुरू कर दिया। मिश्रा जी के भाई के बेटे ने दूल्हे को घोड़ी से उतारा और मिश्रा जी की वाइफ ने अपने होने वाले दामाद का स्वागत किया। 


   अव्यांश वहां और नहीं रुकना चाहता था। एक अजीब सी घबराहट उसे हो रही थी। बारात के जनवासे में पहुंचते ही उसने मिश्रा जी के आगे हाथ जोड़ा और बोला "मिश्रा जी! मैं चलता हूं।"


     मिश्रा जी हैरान होकर बोले "अरे बेटा! अभी कुछ देर पहले ही तो आए हो। और कुछ नहीं तो, कम से कम वरमाला की रस्म ही देख लो। अभी तो तुमने खाना भी नहीं खाया है।"


     अव्यांश ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोला "मिश्रा जी! आपने मुझे बुलाया, मुझे इतना अपनापन दिया उसके लिए बहुत-बहुत थैंक यू। लेकिन फिलहाल मुझे जाना होगा। यह मत पूछिएगा क्यों, लेकिन मुझे जाना होगा। प्लीज! मैं अभी आपको अपनी सिचुएशन नहीं समझा सकता क्योंकि मुझे खुद कुछ भी समझ नहीं आ रहा।"


     उसको इतना रेस्टलेस देख मिश्रा जी ने भी उसे रोकना सही नहीं समझा। लेकिन वह दिल से चाहते थे कि अव्यांश यहां उनके साथ रहे। अव्यांश जाते जाते बोला "मुझे माफ कर दीजिएगा मिश्रा जी। मैं जानता हूं आपको यहां इस तरह छोड़कर जा रहा हूं। मुझे आपके साथ होना चाहिए था। लेकिन अगर मेरी मजबूरी ना होती तो मैं पूरी शादी में यहां मौजूद होता।"


    मिश्रा जी भी अव्यांश को लेकर थोड़े परेशान हो गए। लेकिन इस वक्त उन्हें सबसे पहले अपनी बेटी के ससुराल वालों का ध्यान रखना था, इसलिए उन्होंने अव्यांश को रोका नहीं।



       वरमाला की रस्म के लिए दुल्हन की मां जब दुल्हन को लेने जाने को हुई तो मिश्रा जी ने उन्हें रोका और बोले "अपनी बिटिया को हम खुद लेकर आएंगे।" मिश्राइन जी ने बाप बेटी के बीच आना सही नहीं समझा। 


    मिश्रा जी निशी के कमरे में गए और उसके सर पर हाथ रख कर बोलो "चले! सब नीचे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।"


   निशी, उनके पीछे देखते हुए बोली "वैसे पापा! आपका फेवरेट एंप्लॉय नजर नहीं आ रहा! अभ्यांश! आपने कहा था आने वाला है। नीचे है क्या?"


     मिश्रा जी न में सिर हिलाते हुए बोले "वो आया भी और चला भी गया। पता नही, अचानक से उसे क्या हो गया था!"


     निशी, जो अव्यांश से मिलने के लिए काफी एक्साइटेड थी, यह सुनकर थोड़ी मायूस हो गई। फिर वापस से नार्मल होकर बोली "कोई बात नहीं पापा। हम फिर कभी मिल लेंगे। अब चले?"


    निशि अपने पिता का हाथ पकड़े कमरे से बाहर निकली और धीरे-धीरे जनवासे की तरफ बढ़ने लगी। सामने स्टेज पर खड़ा देवेश उसे मुस्कुरा कर देखे जा रहा था। ये उन दोनों की लव मैरिज थी। निशी ने खुद देवेश को अपने जीवनसाथी के रूप में चुना था। 4 सालों का रिश्ता अब पूरे समाज के सामने अपनी मंजिल को पाने जा रहा था।


     निशी बेहद खुश थी। मिश्रा जी अपनी बेटी को लेकर स्टेज की तरफ बढ़ रहे थे, लेकिन निशी को झटका सा लगा और एकदम से उन दोनों के कदम रुक गए। निशि को भी कुछ समझ नहीं आया आखिर हुआ क्या! 


    किसी ने उसका हाथ पकड़ रखा था, वह भी मजबूती से। उसकी पकड़ अपने आप में बहुत कुछ कह रही थी। निशि ने अपना हाथ छुड़ाना चाहा तो उस शख्स ने बड़े गंदे लहजे में बोला "ऐसे कैसे छोड़ दूं जानेमन?"


     निशि ने नजर उठाकर देखा तो यह और कोई नहीं बल्कि अंश की हरकत थी। उसे अपनी शादी में देखकर निशि पूरी तरह अवाक रह गई। 'यह गुंडा मवाली यहां क्या कर रहा है?'


    निशी अभी सोच ही रही थी कि मिश्रा जी बोले "अंश! बेटा क्या कर रहे हो आप? हाथ छोड़ो, सब देख रहे हैं!"


   अंश बड़ी बेशर्मी से बोला "छोड़ दूंगा बुड्ढे! इतनी जल्दी भी क्या है। पहले कल रात का हिसाब तो पूरा हो जाए।"


    अंश को देखकर निशि वैसे ही घबराई हुई थी। उसके एक लाइन ने निशी की जान निचोड़ कर रख दी हो। उसने अपनी हाथ छुड़ाने की भरपूर कोशिश की लेकिन अंश के सामने वो कमजोर रह गई। 


    देवेश उतर कर आया और अंश का कॉलर पकड़कर बोला "छोड़ दे उसे वरना, तेरा अंजाम बहुत बुरा होगा।"


     अंश हंसता हुआ बोला "मेरे अंजाम की बाद में सोचना। पहले अपनी फिक्र कर। क्योंकि यहां मुझे हाथ लगाने वाला कोई नहीं है लेकिन इतना सोच ले, तेरी इस हरकत से तुझे कितना नुकसान होगा? तू जानता नहीं मैं कौन हूं! अभी यहीं खड़े खड़े मैं तेरी औकात दिखा सकता हूं। तुझे तेरे पूरे खानदान समेत खरीद सकता हूं।"


     देवेश ने चारों तरफ नजर दौड़ाई। सभी चुपचाप खड़े थे। यहां तक कि मिश्रा जी की आंखों में भी बेबसी नजर आ रही थी। अंश के चेहरे पर जो भाव थे, उसे देख देवेश को इतना तो अंदाजा लग गया था कि वह कोई छोटा मोटा इंसान नहीं है। देवेश खुद भी इतनी बड़ी शख्सियत नहीं था कि किसी से पंगा ले सके। उसने अंश का कॉलर छोड़ा और पूछा "क्या चाहते हो तुम? इस तरह मेरी होने वाली पत्नी का हाथ पकड़ने का क्या मतलब?"


     अंश मुस्कुराया और बोला "अब आया ना असली औकात पर! देख भाई, मुझे ना तुझ से मतलब है और ना ही एस जगह चल रहे किसी तमाशे से और ना ही तेरी होने वाली पत्नी से कोई लेना देना है। मेरा इंटरेस्ट सिर्फ यह लड़की है।" अंश ने निशि की तरफ उंगली दिखाई और फिर बड़ी बेशर्मी से उसे सर से पैर तक देखता हुआ बोला "कल रात..........! कल रात को काफी कुछ बाकी रह गया था। तुम्हें ऐसे मुझे छोड़कर नहीं आना चाहिए था बेबी। एक काम करते है, पहले हम कल रात का अधूरा काम पूरा करते हैं, उसके बाद तुम्हें जिस से शादी करनी है, कर लेना। मैं नहीं रोकूंगा। प्रॉमिस!!"


     निशा ने गुस्से में अपना दूसरा हाथ अंश के गाल पर छाप दिए। अंश ने गुस्से में निशि के बाल पकड़ लिए जिससे निशि दर्द से कराह उठी। मिश्रा जी अंश के आगे हाथ जोड़कर घुटने के बल बैठकर गिड़गिड़ाते हुए बोले, "ये क्या कर रहे हो तुम बेटा? मैने बरसों तुम्हारे पापा की नौकरी की है। कमसे कम इसका तो लिहाज रखो। लड़की है वो, एक लड़की की इज्जत बड़ी नाजुक सी चीज होती है जो जरा जरा सा से टूट जाती है और फिर कभी नहीं जुड़ती। छोड़ दो उसे प्लीज!"


    लेकिन अंश पर किसी भी बात का असर नहीं हुआ। उसे वही करना था जो उसके मन में था। निशि ने कल जो उसे दो थप्पड़ मारे थे, उसका हिसाब उसे चुकाना ही था। उसने मिश्रा जी को अवॉइड किया और निशि को लेकर वहां से जाने लगा तो मिश्रा जी ने अंश के पैर पकड़ लिए।


     अंश ने लात मारकर मिश्रा जी को खुद से दूर धकेला और बोला "मैं कौन सा हमेशा के लिए तेरी बेटी को लेकर जा रहा हूं बुड्ढे! बस आज रात की बात है, कल शाम तक इसे तेरे घर भेज दूंगा, अगर मेरा दिल किया तो! फिर करते रहना ये सारा ताम झाम!" अंश हंसता हुआ वहां से जाने को मुड़ा लेकिन उसी वक्त किसी ने एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रशीद कर दिया।


     अंश का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था। उसने बिना देखे अपने उल्टे हाथ से सामने वाले पर वार कर दिया। एक आवाज उस शांत पड़े माहौल में गूंज उठी "अवनी..........!"


     सामने खड़े शख्स को देख मिश्रा जी के आंखों में उम्मीद की चमक नजर आई। वो खड़े हुए और हाथ जोड़कर बोले, "सारांश सर! मदद कीजिए हमारी।"


     सारांश और अवनी! ये दो नाम सुनकर अंश को जैसे लकवा मार गया। उसकी हिम्मत नही हो रही थी कि वो नजर उठाकर किसी को देखे। फिर भी उसने अपनी पूरी हिम्मत जुटाई और देखा तो सारांश उससे कुछ दूरी पर खड़ा चेहरे पर शॉकिंग एक्सप्रेशन लिए उसे ही देख रहा था, और अवनी! उसे किसी ने संभाल रखा था। वो और कोई नहीं, बल्कि अव्यांश था।


     जाने को तो अव्यांश वहां से निकल चुका था लेकिन बाद में उसे एहसास हुआ कि निशि के लिए जो गिफ्ट वो लेकर आया था, वह उसके पास ही रह गया था। बस उसी को लौटाने वो आया था जब उसने अंश को अवनी और निशि के साथ मिसबिहेव करते देखा। बहुत कोशिश की उसने खुदको शांत रखने की लेकिन अब और नही! अव्यांश की मुट्ठिया गुस्से में कस गई।


(हम्म! तो अब क्या सारांश के सामने दोनो की लड़ाई होगी? या बीच का कोई रास्ता निकलेगा?)



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