सुन मेरे हमसफर 307

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अव्यांश गुस्से में फैक्ट्री से बाहर निकाल था और काफी स्पीड में गाड़ी चला रहा था, जब उसे उसके पापा का कॉल आया। अव्यांश ने एकदम से गाड़ी साइड में रोकी और फोन रिसीव करके कहा "हेलो डैड! सब ठीक है?"

 सारांश अव्यांश की आवाज में गुस्सा साफ महसूस कर पा रहे थे। उन्होंने पूछा "क्या हुआ बेटा, कोई प्रॉब्लम है?"

 अव्यांश ने इनकार करते हुए कहा "हां सब ठीक है।"

सारांश ने कहा, " अंशु! खुद पर कंट्रोल रखो। गुस्सा करना सेहत के लिए भी अच्छा नहीं होता और हमारी लाइफ के लिए भी। बनते काम बिगड़ जाते हैं इसलिए अपने गुस्से को कंट्रोल में रखना सीखो।"

 अव्यांश ने दो-तीन बार गहरी गहरी सांसे ले और खुद को शांत करता हुआ बोला "वो गई क्या? आपने भेज दिया उसे?"

 सारांश से झूठ नहीं बोला। उन्होंने कहा "हां ए गई वापस। अभी एक कम करो, घर जाओ और आराम करो।"

 अव्यांश ने पूछा "आपने यह कहने के लिए मुझे फोन किया था?"

सारांश ने कहा, " हां तो और क्या कहूंगा! अंधेरा घूर आया है, ऐसे में बाहर घूम रहे हो और गुस्से में भी हो। अगर जो कहीं किसी से लड़ाई हो गई तो पता नहीं तुम उसके साथ क्या ही करोगे। उस बेचारे को तो भगवान ही बचाए। इसलिए कह रहा हूं अपने मन को शांत करो और अपने फार्म हाउस पर जाओ, जाकर आराम करो।"

अव्यांश ने पूछा, " मैं कहीं बाहर हूं इस बारे में आपको किसने बताया?"

 सारांश चुप रह गए। वो समझ गए कि उनके बेटे को शक हो रहा है और उनकी यह चुप्पी अव्यांश को उसका जवाब दे गई। अव्यांश ने थोड़ा गुस्से में सवाल किया "आपने उसे मेरे पास भेजा है ना? क्यों?"

सारांश ने उसे समझाते हुए कहा "देख अंशु! ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तू सोच रहा है। जो कुछ भी हो रहा है वह सिर्फ तेरी गलतफहमी के कारण हो रहा है। एक बार तो उससे बात तो कर, एक बार उसे समझने की कोशिश तो कर। जब तक तुम दोनों एक साथ बैठकर बात नहीं करोगे तब तक प्रॉब्लम का सॉल्यूशन कैसे निकलेगा? तुझे लगता है कि वह तुझे छोड़कर गई, उसे लगता है कि तूने उसे छोड़ा। न तू अलग होना चाहता है उससे और ना वह तुझसे अलग होना चाहती है तो फिर प्रॉब्लम क्या है? तन्वी की कंडीशन को लेकर रखकर तू निशि को ब्लेम कर रहा है तो इससे मुझे प्रॉब्लम है। खबरदार जो इसका ब्लेम तूने उस पर डालने की कोशिश की तो! देवेश से उसका कोई लेना देना नहीं है। चुपचाप अपने फार्म हाउस जा और शांत दिमाग से उससे बात करना, वो तेरा इंतजार कर रही है। हेलो अंशु! तू सुन रहा है ना?"

दूसरी तरफ से कोई जवाब न पाकर सारांश को लगा शायद फोन कट गया है लेकिन फोन अभी भी चालू था। लेकिन वह आगे कुछ कह पाते, अव्यांश ने फोन काट दिया।

 अवनी ने पूछा "क्या लगता है आपको, क्या करेगा वह?"

 सारांश ने अपना सर हिलाते हुए कहा "मुझे नहीं पता। लेकिन वह समझ गया कि निशी उसका इंतजार कर रही है। लेकिन मैं भी उसे समझा दिया है कि वह निशी से गुस्से में बात ना करें। देखते हैं आगे क्या होता है।"

अव्यांश को देवेश कि कहीं एक-एक बात याद रह रही थी। उसने गुस्से में जोर से स्टीयरिंग व्हील पर हाथ मारा और कहा "इस बार मैं तुम्हें मेरे इमोशंस के साथ खेलने नहीं दूंगा। इस बार मैं तुम्हारी कोई भी चाल कामयाब नहीं होने दूंगा। कितने अच्छे से तुमने मेरे घर वालों को अपनी बातों के जाल में फसाया है ना! लेकिन मुझ पर तुम्हारा कोई भी चाल कामयाब नहीं होगा। और यह वादा है तुमसे, जो सोचकर तुम आई हो वह कभी पूरा नहीं होगा। ठीक है, मैं शांत दिमाग से ही तुमसे बात करूंगा, बिल्कुल भी गुस्सा नहीं करूंगा। मिस निशी मिश्रा! मैं आ रहा हूं।"

निशि बैठे-बैठे थक गई थी। वह बार-बार अपनी घड़ी की तरफ देख रही थी लेकिन अव्यांश के आने की कोई खबर नहीं थी। उसने मन बहलाने के लिए चारों तरफ देखना शुरू किया। घर के आगे में पूरा गार्डन बना हुआ था जिसमें कई तरह के फूल थे। कई फूल तो ऐसे थे जिन्हें उसने कभी देखा तक नहीं था। भले ही रात हो चुकी थी लेकिन वहां की लाइटिंग बिल्कुल सही थी।

 निशि उन फूलों को देखकर अपना मन बहला ही रही थी कि एकदम से अव्यांश की गाड़ी उसके सामने आकर कुछ ऐसे रुकी कि डर के मारे निशी चीख निकल गई। उसने डर से अपने दोनों हाथों से अपनी आंखें बंद कर ली। अव्यांश इतनी स्पीड में आया था कि अगर वह टाइम पर ब्रेक नहीं लगता तो उसकी गाड़ी निशि को हिट कर चुकी होती।

बड़ी मुश्किल से निशि ने अपने दोनों हाथ नीचे किया और आंखें खोल कर सामने गाड़ी में बैठे उस इंसान की तरफ देखा जो उसे ही देख रहा था। अव्यांश के चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था। वह गाड़ी से उतरा और निशि को अनदेखा करके आगे बढ़ गया। निशि को होश में आने में थोड़ा सा टाइम लगा लेकिन जब उसे लगा कि अव्यांश उसे छोड़कर आगे बढ़ गया है तो वह भी उसके पीछे दौड़ी।

" अव्यांश......! अव्यांश मुझे तुमसे कुछ बात करनी है..!!"

 लेकिन आंसू इतनी तेजी में था कि अंदर जाते ही उसने दरवाजा निशि के मुंह पर बंद कर दिया। निशी ने उसे मनाने की कोशिश की और कहा " अव्यांश प्लीज दरवाजा खोलो? मुझे तुमसे कुछ बहुत जरूरी बात करनी है, प्लीज!! तुम ऐसे मुझे इग्नोर करने नहीं कर सकते।"

अव्यांश जितना निशी की आवाज सुन रहा था, उतना ही उसका पारा गर्म होता जा रहा था। उसने जाकर किचन में सबसे पहले अपने लिए एक बर्तन में दूध रखकर चूल्हे पर चढ़ाया और कप में कॉफी मिक्स करने लगा। निशी अभी भी दरवाजे पर खड़ी उससे बात करने के लिए मिन्नतें कर रही थी।

निशी से बात करने की बजाय अव्यांश ने अपना फोन निकाला और समर्थ को फोन किया। समर्थ अभी हॉस्पिटल में ही था। उसने अव्यांश का कॉल रिसीव किया और पूछा "क्या चल रहा है वहां?"

 अव्यांश ने कहा "डॉन'ट वरी भाई, काम हो जाएगा। बस वो अपना मुंह खोल दे फिर उसके ठिकाने पर पहुंचने में हमें टाइम नहीं लगेगा। आप बस तन्वी का ख्याल रखो। अभी कैसी है वो?"

 समर्थ ने बिस्तर पर पड़ी तन्वी की तरफ देखा और कहा "अभी भी ट्रॉमा में है। अभी कुछ दिन इसी तरह रखना होगा उसके बाद यहां से निकाल कर उसकी काउंसलिंग करवानी होगी। अंशु! उन लोगों को छोड़ना मत।"

 अव्यांश ने कहा "डॉन'ट वरी भाई, हम उसे नहीं छोड़ेंगे। आप अपना ध्यान रखना।"

 समर्थ के कान में निशि की आवाज पड़ी। उसने पूछा "कौन है तेरे साथ?"

 अव्यांश ने दरवाजे की तरफ देखा और कहा "कोई नहीं भाई, कोई रैंडम होगा। घर पर तो मैं अकेला ही हूं। दरवाजे पर कोई है शायद, मैं देखता हूं। अपना ध्यान रखना।"

 निशी अभी भी दरवाजे पर दस्तक दिए जा रही थी और चूल्हे पर रखा दूध उबल चुका था। अव्यांश ने अपने दोनों हथेली किचन स्लैब पर रखकर खुद को धीरे-धीरे शांत किया और जाकर दरवाजा खोल दिया।

 निशि घबराहट में बुरी तरह से कांप रही थी। अव्यांश ने उसे अंदर आने का इशारा किया और वापस किचन में चला गया।

 अव्यांश गुस्सा नहीं करेगा, ये कहना मुश्किल है। लेकिन सारांश ने तो कहा कि निशि पर गुस्सा मत होना तो फिर अव्यांश कैसे अपना गुस्सा निकालेगा? कभी कभी चुप्पी शोर से ज्यादा खतरनाक होती है।





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