सुन मेरे हमसफर 304

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सुबह के 9:00 बजे दरवाजे पर हुई दस्तक से निशि की आंख खुली। उसने उठ कर देखा तो सामने सुहानी खड़ी थी लेकिन उसके चेहरे पर पहले जैसी मुस्कान नहीं थी। उसके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं थे। निशि एकदम से हड़बड़ा कर उठी और घड़ी की तरफ देखकर कहा “सॉरी मैं लेट हो गई। तुमने मुझे पहले क्यों नहीं जगाया।“

 सुहानी ने सपाट लहजे में कहा “उसकी जरूरत नहीं थी। फ्रेश होकर आ जाओ, दादी नाश्ते के लिए इंतजार कर रही है।“ निशि ने सुहानी से अव्यांश के बारे में पूछना चाहा लेकिन सुहानी फौरन वहां से निकल गई।

निशी समझ गई की सुहानी भी उससे नाराज है। वह बिस्तर से उतरी और बाथरूम की तरफ जाने लगी। फिर एकदम से उसे याद आया कि उसने टॉवल लिया ही नहीं है। निशी ने जाकर अपनी अलमारी खोलने की बजाय अव्यांश की अलमारी खोली, गलती से या जानबूझकर शायद यह तो वह खुद भी नहीं जानती थी। अंदर से अव्यांश के परफ्यूम की खुशबू आकर सीधे निशी के नाक से टकराई जिसे महसूस कर निशी ने अपनी आंखें बंद कर ली। आज यह खुशबू से इतनी अच्छी लग रही थी कि अगर अव्यांश होता तो वह भाग कर उसके गले लग जाती।

निशी ने अव्यांश की एक शर्ट निकाली और उसे अपने चेहरे के करीब किया। उस धुले हुए शर्ट से भी अव्यांश की खुशबू नहीं गई थी। निशि ऐसे मुस्कुराई जैसे अव्यांश उसके सामने खड़ा हो बिल्कुल प्यार में पागल। “चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हें खुद से दूर नहीं जाने दूंगी। तुम चाहे जहां भी छुपे हो, मैं तुम्हें ढूंढ ले आऊंगी। कब तक भागोगे मुझसे!”

 निशि को ध्यान आया कि नीचे दादी नाश्ते पर उसका इंतजार कर रही थी। उसने जल्दी से अव्यांश के शर्ट को वापस हैंगर में लगाया और अलमारी बंद करने को हुई लेकिन उसके हाथ रुक गए। उसे लगा शायद उसने कुछ गलत देखा है। निशि ने एक झटके से अव्यांश के सारे शर्ट को किनारे किया तो अलमारी में पीछे दीवार से लगा उसे अपने और अव्यांश की शादी की तस्वीर नजर आई। “यह तस्वीर तो मॉम ने हटवा दी थी। फिर यह यहां क्या कर रही है?”

 निशी ने पहले तो उस तस्वीर को बड़े ध्यान से देखा और उस वक्त को याद करने लगी। अव्यांश के होठों पर जो मुस्कुराहट थी वह उसकी नेचुरल स्माइल थी, लेकिन निशि जबरदस्ती मुस्कुरा रही थी, इतना कुछ जो हुआ था। तो निशि अपने आप को रोक नहीं पाई और उसने उस फोटो फ्रेम को बाहर निकाला जिससे अव्यांश के कुछ कपड़े और कुछ सामान अलमारी से बाहर गिर गए। निशी ने अपने सर पर हाथ रख लिया ‘हे भगवान! एक तो वैसे ही मैंने इसकी अलमारी को हाथ लगाया है। अगर इसको पता चल गया कि इसके कपड़े नीचे गिर गए थे तो पता नहीं क्या ही करेगा।‘

निशि ने तस्वीर को साइड में रखा और अलमारी से गिरे कपड़ों को एक-एक कर तह लगाते हुए उन्हें वापस अलमारी के अंदर डालने लगी। लेकिन उसकी नजर एक बॉक्स पर जाकर ठहर गई। यह छोटा सा बॉक्स था और काफी खूबसूरत भी था। लेकिन उसकी खूबसूरती ने निशि का ध्यान नहीं खींचा, बल्कि इसके अंदर से जो एक पतली सी चीज बाहर निकली थी उसने निशी का ध्यान अपनी ओर खींचा।

 निशी ने उस डब्बे को खोला और जो चेन उसमें से लटक रही थी उसे बाहर निकाला तो वह हैरान रह गई। “ यह यहां कैसे? और यह अव्यांश के पास कैसे हैं?”

यह वही ब्रेसलेट था जो कभी निशि का हुआ करता था। निशी को याद आया, उसका यह ब्रेसलेट उसकी शादी से एक दिन पहले गुम हो गया था। उसका लकी चार्म, जिसे वह पागलों की तरह ढूंढ रही थी और जिसे ढूंढने के चक्कर में उसने उस घटिया इंसान से पंगे ले लिए थे। जिसने उसकी शादी में आकर इतना बड़ा हंगामा किया था। लेकिन उस यह समझ नहीं आ रहा था कि उसका यह ब्रेसलेट अव्यांश के पास आया कैसे?

डाइनिंग टेबल पर सारे लोग इकट्ठा थे सिवाए अव्यांश और समर्थ के। सुहानी जिस तरह चुपचाप जाकर बैठ गई थी और जितना अवनी का मूड ऑफ था, सारांश ने एक प्लेट में नाश्ता और एक गिलास में जूस लिया और वहां से उठ गए। अवनी ने पूछा “अब आप हमारे साथ नाश्ता भी नहीं करेंगे?”

 सारांश ने जवाब दिया “नाश्ता तो मैं यही करूंगा लेकिन अभी मैं यह निशि के लिए लेकर जा रहा हूं। मैं नहीं चाहता कि वह यहां नीचे आए और इस सब तनाव में शामिल हो। अवनी! कम से कम हम ऐसा तो नहीं कर सकते कि उसे इग्नोर करें। घर आए मेहमान को भी हम पूरी इज्जत देते हैं वह तो फिर भी इस घर की बहू है। अपनी परेशानियों के कारण हम उसके साथ गलत व्यवहार नहीं कर सकते। उसे वापस जाना भी होगा।“

 अवनी ने कुछ कहना चाहा लेकिन सिया सामने बैठी थी इसलिए वह चुप रह गई और सारांश नाश्ता लेकर खुद अपनी बहू को देने गए।

कमरे में दरवाजे पर दस्तक देकर जब सारांश अव्यांश के कमरे में दाखिल हुए तो उन्होंने देखा, निशि वहीं जमीन पर बैठी हुई थी और अपने हाथ में कुछ देख रही थी। सारांश ने आवाज़ लगाई “निशि बेटा, नाश्ता कर लो।“

 निशि जल्दी से उठ खड़ी हुई और कहा, “डैड! मैं आ ही रही थी। आपने क्यों तकलीफ की।“

सारांश ने नाश्ता और जूस टेबल पर रखा और कहा “घर के सदस्य के लिए कुछ करने से हमें खुशी ही मिलती है और तुम कोई पराई नहीं हो।“

 निशी को यह जानकर अच्छा लगा कि कम से कम अव्यांश के पापा तो उसके साथ अच्छे से बिहेव कर रहे हैं। वह मुस्कुरा दी। सारांश ने आगे बढ़कर उसके सर पर हाथ फेरा और वहां से जाने लगे लेकिन उनकी नजर निशि के हाथ पर गई। निशि ने उस ब्रेसलेट को दिखा कर कहा “यह मेरा गिर गया था तो बस इसी को ढूंढ रही थी।“

सारांश ने उस ब्रेसलेट को अपने हाथ में लिया और उसे उलट पलट कर देखते हुए कहा “यह तुम्हारे पास था?”

 निशी चौक गई। उसने पूछा “मतलब? यह मेरा ही है, बचपन से मेरा।“

 सारांश ने हंसते हुए कहा “तो तुम्हारा है और वो भी बचपन से? लेकिन यह अंशु की पसंद है।“

 निशि और भी ज्यादा हैरान रह गई। उसने पूछा, “ऐसा कैसे हो सकता है डैड, यह तो मैं बचपन से पहनती आई हूं।“

 सारांश ने भी हंस कर कहा “हां ठीक है, लेकिन इस ब्रेसलेट को पसंद करने वाला अंशु था। एक्चुअली मैं यह अवनी के लिए ले रहा था। जब मिश्रा जी ने हमें अपनी बेटी के बर्थडे पर आने का निमंत्रण दिया था, हम लोग उस टाइम बेंगलुरु में ही थे। अंशु और सोनू दोनों ही हमारे साथ थे। सोनू को दूसरा कुछ पसंद आया था लेकिन अंशु तो इसे छोड़ने को तैयार ही नहीं था तो अवनी ने कहा कि इसको उसकी बीवी के लिए लेंगे। अंशु छोटा था, वह इस मजाक का मतलब नहीं समझा। लेकिन जब हम वापस लौटे थे तब ये हमारे पास नहीं था। हमने पूछा भी तो उसने कोई जवाब नही दिया था। हमे लगा शायद को गई। फिर बात आई गई हो गई। उस टाइम शायद तुम पांच या छह साल की रही होगी। आज पता चला।“

निशी को अभी भी सारांश की बातों पर यकीन नहीं हो पा रहा था।


क्रमशः


रक्षित ने एक वॉइस मैसेज भेजा "हैप्पी बर्थडे माय लव! सॉरी मैं लेट हो गया। माफ कर दो। कान पड़कर सॉरी कह रहा हूं। थोड़ा बिजी हो गया था, थोड़ा परेशान था इसलिए दिमाग से उतर गया वरना मैं तुम्हारा बर्थडे भूल जाऊं ऐसा हो नहीं सकता। इसलिए जल्दी से मुझे कॉल करो और अनब्लॉक करो। बाय! मैं तुम्हारे कॉल का इंतजार कर रहा हूं।"

रक्षित ने फोन अपने पॉकेट में डाला और वहां से पलट कर आगे जाने को हुआ लेकिन आपने ठीक पीछे खड़ी सूची से वह जा टकराया। "मैंने तुम्हें गाड़ी में बैठने को कहा था तो तुम यहां क्या कर रही हो?"

सूची ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा "सॉरी मैंने तुम्हें डिस्टर्ब कर दिया।"

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