सुन मेरे हमसफर 288

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अव्यांश छत पर से सीधे नीचे उतर कर आया और मिश्रा जी के कमरे में गया। वहां मिश्रा जी और निशि की मां, दोनों ही अपने सामान पैक करने में लगे हुए थे। अव्यांश ने आकर उन दोनों के पैर छुए और कहा "मैं आप दोनों से बहुत नाराज हूं।"


रेनू जी ने अव्यांश के गाल को छुआ और पूछा "ऐसा क्या कर दिया हमने जो आप हमसे इतना नाराज है?"


 अव्यांश ने भी अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा "मैंने कहा था कुछ दिन रुक जाइए यहां पर लेकिन नहीं आप लोगों को तो जाना है। क्या यह आपका घर नहीं है? क्या मैं आपका अपना नहीं हूं?"


 रेनू जी ने बड़े प्यार से कहा "रुकने को तो हम रुक जाए लेकिन वहां भी तो जरूरी है। निशि के चाचा के घर में भी शादी है वहां भी तो जाना है। रिश्तेदारों के बीच आपसी रिश्ते चाहे जैसे भी हो रिश्तेदारी निभानी पड़ती है इसलिए हम फिर कभी आ जाएंगे।"


 अव्यांश ने कुछ सोचते हुए कहा "अब अगर निशि के चाचा जी के घर में शादी है तो फिर निशि का जाना भी तो जरूरी होगा। शादी के बाद वह किसी से मिली नहीं है। जब भी बेंगलुरु गई है, वापस बिना किसी से मिले चली आई है। आई थिंक ये उसके लिए बेहतर मौका होगा हर किसी से मिलने का।"


 मिश्रा जी ने रेनू जी की तरफ देखा और कहा "लेकिन बेटा! ऐसे निशि का यहां से जाना सही नहीं होगा।"


 अव्यांश ने सवाल किया "इसमें सही गलत की बात कहां से आ गई? उसके कजिन की शादी है उसका जाना तो बनता है। और वैसे भी इस बारे में मैं घर में सब से बात कर लूंगा, आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। निशि जाएगी और जरूर जाएगी। घर में कोई भी ऑब्जेक्ट नहीं करेगा। फिलहाल आप लोग निशि को अपने साथ ले जाने की तैयारी कीजिए।"


निशी भागते हुए अव्यांश को रोकने आई थी लेकिन इतनी देर में अव्यांश ने सारी बातें कर ली। अब निशी चाह कर भी अपने मां पापा के सामने बहाना नहीं बन सकती थी क्योंकि उसने खुद भी उसे शादी में शामिल होने की इच्छा जताई थी। मिश्रा जी ने पूछा "अव्यांश! बेटा आप भी हमारे साथ चलते हो तो हमें अच्छा लगता।"


 अव्यांश ने मिश्रा जी का हाथ पकड़ा और बड़े प्यार से मना करते हुए कहा "अच्छा तो मुझे भी लगता लेकिन कुछ जिम्मेदारियां यहां पर भी तो मेरी बनती है। अभी एक बहन की शादी हुई है और दूसरी के लिए खड़ा होना है फिर तीसरी की सगाई भी तो होनी है और चौथी के लिए लड़का देखना है।"


 निशि की मां को याद आया "अरे हां! काया की सगाई होनी है ना? कब का मुहूर्त निकाला है?"


 अव्यांश ने मुस्कुराकर कहा "अरे मां वह 15 दिन के बाद जब नवरात्रि शुरू होगी ना, उसी में, नए साल के मौके पर।"


 मिश्रा जी ने खुश होकर कहा "यह बढ़िया है। नए साल के मौके पर शुभ कार्य।"


 काया की सगाई के बारे में सुनकर निशि हैरान रह गई। उसके मुंह से निकला "काया की शादी तय हो गई है, कब?"


 निशी की बात सुनकर मिश्रा जी और रेनू जी दोनों ही एक दूसरे की तरफ देखने लगे। दोनों ने एक साथ पूछा "तुझे नहीं पता इस बारे में?"


अपनी बेटी के चेहरे पर आए एक्सप्रेशन को देखकर दोनों ही समझ गए। रेनू जी ने नाराज होकर कहा "तू कहां रह रही है आजकल कि तुझे यह बात तक नहीं पता? हम सबको पता है, हमारे सामने यह रिश्ता तय हुआ और यह बात आज की नहीं है, संगीत वाले दिन ही सब कुछ सही हुआ था और तुझे अभी तक इस बारे में कोई खबर नहीं है। निशी तू इस घर की बहू है।"


 निशि को डांट पड़ती देख अव्यांश ने उसे डिफेंड करते हुए कहा "अरे कोई बात नहीं मां! मेरे दिमाग से निकल गया था। जिस टाइम यह सब फिक्स हुआ था उस टाइम निशि का एक्सीडेंट हो गया था। वह बेचारी तो हॉस्पिटल में थी। मैं ही नहीं बता पाया। फिर अगले दिन शादी के चक्कर में यह बात ही दिमाग से निकल गई। आप लोग अपनी पैकिंग करो निशी भी तब तक अपना सारा सामान समेट लेगी। मेरा मतलब अपनी जरूरत का सारा सामान समेट लेगी।"



 शुभ को नींद नहीं आ रही थी। वह ऐसे ही बाहर जाने के लिए निकला था जब उसने अव्यांश की सारी बातें सुनी थी। निशि के बेंगलुरु जाने की बात सुनकर शुभ थोड़ा परेशान हो गया। अव्यांश गेस्ट रूम से बाहर निकाल कर मेन गेट की तरफ बढ़ने को हुआ तो शुभ ने उसे रोकते हुए कहा "निशी यहां से जा रही है क्या?"


 अव्यांश ने कंफ्यूज होकर कहा "हां वह अपने मम्मी पापा के साथ जा रही है। क्यों कुछ प्रॉब्लम है?"


 शुभ परेशान हो गया था और उसकी परेशानी उसके चेहरे पर भी नजर आ रही थी। फिर भी शुभ ने बात बदलते हुए कहा "नहीं मैं क्यों परेशान होने लगा! मैं तो बस यह कह रहा था कि अभी अभी घर की बेटी की विदाई हुई है और एकदम से बहू भी चली जाएगी तो घर काफी सूना सूना लगेगा। तुझे नहीं लगता कि इस टाइम उसे तेरे पास होना चाहिए! आई मीन जिस तरह घर वाले तुझसे नाराज है और तेरे पापा से भी, ऐसे में ना तेरे मनाने का कोई फायदा होगा ना तेरे पापा का। निशी रहती तो वह घर वालों को मना सकती थी।"


 अव्यांश ने फिकी मुस्कान के साथ कहा "अब उसकी जरूरत नहीं है। आई मीन, घर वाले हैं मेरे, बहुत अच्छे से जानता हूं मैं उन्हें। थोड़ी देर नाराज रहेंगे अपनी नाराजगी जाहिर करेंगे। कान पड़कर माफी मांग लूंगा तो माफ कर देंगे। हां मैंने जो किया वह गलत था लेकिन इतना भी गलत नहीं था कि.... कुछ नहीं होगा चाचू आप परेशान मत होइए। शिवि दी के लिए मुझे जो करना था वह मैंने किया अब कुहू दी के लिए करना है। उनके लिए एक अच्छा सा पार्टनर ढूंढना है। फिलहाल मुझे बाहर जाना है, आपको कुछ और कहना है?"


अव्यांश के इस तुकबंदी पर शुभ ने भी "वाह वाह! वाह वाह!!" कह दिया। दोनों ही हंस पड़े। अव्यांश बाहर निकल गया और शुभ वहीं रह गया। अव्यांश के जाने के बाद शुभ के चेहरे पर परेशानी की लकीर फिर वापस आ गई लेकिन वह निशि को रोके कैसे? लावण्या ने जिस तरह का प्लान बनाया था उसके लिए निशि का यहां रुकना ज्यादा जरूरी था। इसके लिए घर वालों से बात करनी थी। वह सीधे सिया के कमरे में गया।



 अव्यांश अपनी बात कह कर बाहर तो निकल गया लेकिन निशी परेशान खड़ी रही। मिश्रा जी ने उसे जाकर जल्दी से पैकिंग करने को कहा तो वह कमरे में आ गई लेकिन कमरे में जाकर उसका बिल्कुल भी मन नहीं हो रहा था कि वह अपना सामान पैक करें। अव्यांश ने साफ कह दिया था कि आज इस घर में उसका आखिरी दिन है और बस यही बात निशि को परेशान कर रही थी। उसे नहीं जाना था इस घर से। नहीं जाना था अव्यांश की जिंदगी से। कुछ सब कुछ भूल कर एक नई शुरुआत चाहती थी। अब तक उसे अव्यांश की बदमाशियां की आदत पड़ चुकी थी लेकिन पिछले कुछ दिनों में जिस तरह अव्यांश शांत हो गया था वह निशि को खटक रहा था।


 निशि ने अपनी अलमारी खोली लेकिन कपड़े देखकर उसका बिल्कुल भी मन नहीं हुआ कि वह उन्हें निकाल कर बैग में डालें। फिर भी एक दो कपड़े उसने बाहर निकले तो उसके अंदर रखा उसके घर के पेपर्स उसके साथ ही बाहर निकल आए। उन पेपर्स को देखकर निशी एक बार फिर परेशान हो गई। वो यहां से जाए या ना जाए, अव्यांश के साथ इस रिश्ते में रहे या ना रहे, एक बार फिर यह सवाल सर उठाने लगा था। निशी ने उन पेपर्स को अलमारी के हवाले किया और बालकनी में चली आई।


 ठंडी बहती पछुआ हवा निशि के चेहरे से टकराकर उसे सुकून दे गई लेकिन आंखों ने जो देखा एक बार फिर उसका मन बेचैन हो गया।


 अव्यांश अपनी गाड़ी से बाहर जाने के लिए निकला था लेकिन उसी टाइम प्रेरणा अपनी ओपन जिप लेकर वहां चली आई और अव्यांश की गाड़ी के ठीक सामने लगा दिया। उन दोनों के बीच किसी बात को लेकर कहा सुनी हुई शायद रास्ता देने को लेकर। दोनों को लड़ते देख निशी के मन को थोड़ी तसल्ली हुई लेकिन यह ज्यादा वक्त तक नहीं रहा। अव्यांश अपनी गाड़ी से निकाला और जाकर प्रेरणा की गाड़ी में बैठ गया। प्रेरणा ने भी अपनी जीप स्टार्ट की और वहां से दोनों ही निकल गए।



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