सुन मेरे हमसफर 225

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     देवेश ने गुस्से में अपना फोन दीवार पर फेंक कर मारा जिसके कारण फोन कई टुकड़ों में बिखर गया। एक नाजुक सी कलाई देवेश के कंधे पर पड़ी और दूसरी कलाई ने वाइन की ग्लास देवेश के सामने की। देवेश उस ग्लास को अपने हाथ में लिया और एक ही घूंट में खत्म कर दिया। कमरे के दूसरे कोने से आवाज आई "इस तरह अपना गुस्सा फोन पर उतारने से कुछ नहीं होगा। मैंने कहा था ना इतना भरोसा मत करो उसे पर लेकिन तुम्हें तो कुछ ज्यादा ही भरोसा था। आ गई अकल ठिकाने?"


     देवेश ने बिना पलटे गुस्से में जवाब दिया "तुम तो कुछ बोल ही मत। इतने सालों में तुमने क्या उखाड़ लिया?"


      पीछे से हंसती हुई आवाज आई "मैंने क्या उखाड़ लिया क्या नहीं वह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन इतना जान लो तुम, ये लाइफ में बस पहली बार था यह जब मैं हारा था और तुम नौ पहली बार में ही पकड़े गए थे।"


    यह बात देवेश को बहुत बुरी लगी। उसने गुस्से में ग्लास को टेबल पर रखा और बोला "मैं हार नहीं मानने वाला, फिर चाहे प्यार से चाहे जबरदस्ती से।" पूरे कमरे में खामोशी छा गई।




*****





    अव्यांश ने आकर रेहान और लावण्या का वेलकम किया और उनके पैर छूकर कहा "आप लोग इस तरह खड़े क्यों है, चलिए चलकर बैठते हैं। मैं आप लोगों के लिए सीट अरेंज करता हूं।"


     रेहान सिंघानिया ने अव्यांश की तरफ सवालिया नजरों से देखा और भौंहे चमका कर सिद्धार्थ से इशारे में सवाल किया। सिद्धार्थ ने अव्यांश के कंधे पर हाथ रख और कहा "यह मेरा छोटा बेटा, मित्तल परिवार के छोटे साहिबजादे और अपनी दादी के लाडले, अव्यांश मित्तल।"


     रेहान ने एकदम से पूछा "यह सारांश का बेटा है?"


   सारांश ने भी मुस्कुरा कर कहा "बिल्कुल सही पकड़े हो, फाइनली।"


     यूं तो सारांश ने तारीफ की थी लेकिन इस तारीफ में भी थोड़ा सा ताना मिक्स था। रेहान भी कहां पीछे रहने वाले थे। वह बोले "बिल्कुल अपनी मां जैसा है। हूं बहू अपनी मां की शक्ल पाई है, तभी तो इतना स्मार्ट है। अच्छा हुआ तेरे पर नहीं गया।"


     अब उलझने की बारी सारांश और रेहान की थी। इससे पहले कि वह दोनों उलझे, सिद्धार्थ ने बीच में दोनों को रोका और कहा "अव्यांश! यह रेहान है, रेहान सिंघानिया। और यह लावण्या सिंघानिया। कुणाल का दोस्त है ना, कार्तिक! उसके चाचू है। रुद्र और रेहान दोनों ट्विंस है और यह दोनों इतने मिलते हैं कि इन्हें पहचाना मुश्किल है, अगर उनकी बीवी उनके साथ ना हो तो।"


    वहां खड़े सभी हंस पड़े। रेहान ने भी हंसते हुए कहा "इस वक्त अगर रुद्र होता तो एक ही लाइन कहता कि भाई हमसे ज्यादा लकी और कौन हो सकता है जो लोग हमें हमारी बीवियों से पहचानते हैं।"


     सिद्धार्थ को भी हंसी आ गई। उन्होंने कहा "रूद्र कितना ज्यादा बदल गया है इस बात का यकीन नहीं होता। वाकई वह अलग लेवल का बंदा है। हमेशा से ही मैंने उसे एक अलग ही एनर्जी में देखा है। उसने जो भी किया है खुलकर किया है, चाहे वह मौज मस्ती हो या फिर प्यार।"


     लावण्या भी उसका साथ देते हुए बोली "यह बात तो बिल्कुल सही कही आपने। रुद्र ने जो भी किया है दिल से किया है और खुद को भूल कर किया है। उसके जैसा कोई नहीं है।"


     रेहान थोड़ा सा नाराज होकर बोला "रुद्र कुछ भी करें सारी लड़कियां उसकी तारीफ क्यों करती है, यह बात ना मेरी आज तक समझ में नहीं आई। चाहे दादी हो या फिर मेरी अपनी बीवी या उसकी कोई भी गर्लफ्रेंड। मैंने किसी को नहीं देखा कि वह रुद्र के अगेंस्ट जाकर बात करें और वह हर किसी पर अपना जादू चला ही लेता है।" लावण्या ने हल्के हाथ से रेहान के कंधे पर मारा।


     अव्यांश ने एक बार फिर याद दिलाया, "आप लोग प्लीज बैठ जाइए। बड़े पापा! मैं तब तक बाकी गेस्ट को भी देख लेता हूं।" सिद्धार्थ ने भी उसकी बात पर सहमति जताई और रेहान और लावण्या को लेकर वहां से चले गए।




*****





     "अरे सुहानी......! सुनो तो सुहानी.......! सुहानी! अरे यार रुको, तुमसे कुछ बात करनी है।" कार्तिक सिंघानिया सुहानी के पीछे-पीछे भागता हुआ चला जा रहा था और उसे आवाज भी दे रहा था लेकिन सुहानी उसे पूरी तरह अनसुना कर उससे भी ज्यादा तेजी में वहां से निकलती जा रही थी। उसका बिल्कुल मन नहीं था कि वह कार्तिक से मिले या उससे बात करें।


    कार्तिक सिंघानिया के लिए उसके दिल में जो फिलिंग्स थी उसे वह जाहिर नहीं करने देना चाहती थी। इससे ज्यादा कुछ नहीं होता बस उसे तकलीफ ही होती। वही अव्यांश ने जब कार्तिक सिंघानिया को इस तरह सुहानी के पीछे जाते देखा तो उसे बहुत अजीब लगा। सुहानी जिस तरह कार्तिक सिंघानिया को इग्नोर कर रही थी यह बात अव्यांश से छुपाने वाली नहीं थी। लेकिन क्यों? यह भी एक सवाल था।


     अव्यांश के दिमाग में एक ही बात घूमी। 'कहीं सुहानी कार्तिक को तो...........?' फिर अपने आप को ही डांटते हुए बोला 'नहीं यार! दोनों दोस्त है, अच्छे दोस्त उससे ज्यादा कुछ नहीं। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो? हे भगवान! दोनों बहनों के बीच कहीं कोई प्रॉब्लम ना हो। एक तो वैसे ही कुणाल कुहू दी और शिवि दी के बीच में फंसा है। यहां कार्तिक सिंघानिया भी उसी हालत में ना पहुंच जाए। मुझे पूछना होगा।' 


     सुहानी अपनी तेज चाल से चलते हुए सीधे जाकर कुहू के कमरे में घुस गई और अंदर से दरवाजा लॉक कर दिया। कार्तिक सिंघानिया को सुहानी की यह हरकत बिल्कुल भी समझ नहीं आई। यह तो गनीमत थी कि वह सुहानी से कुछ दूरी पर था वरना थोड़ा और नजदीक होता तो वह दरवाजा सीधे उसके नाक पर लगता। उसने एक बार दरवाजे पर नॉक करने का सोचा लेकिन उसे यह सही नहीं लगा और वह वापस वहां से पलट कर जाने को हुआ तो उसके पैर वही ठिठक गए। उसके सामने अंशु खड़ा था।


     कार्तिक ने जब उसे देखा तो, थोड़ा तो घबराया क्योंकि इस वक्त वह उसकी ही बहन के पीछे चल रहा था और उससे बात करने की कोशिश कर रहा था। 'हे भगवान! कहीं इसे यह तो नहीं लग रहा कि मैं इसकी बहन को छेड़ रहा था? कहीं यह कुछ.......' 


    कार्तिक सिंघानिया के सोच को ब्रेक लगी जब अव्यांश ने कहा "तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है। मेरे साथ चल सकते हो?"

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