सुन मेरे हमसफर 224

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    अव्यांश ने सिद्धार्थ की आवाज सुनी तो उसने काया से कहा "जल्दी बता बात क्या है।"


    काया को समझ में नहीं आया कि वह आगे क्या पूछे। उसकी नजर भी आने वाले उन दो मेहमानों पर थी और अव्यांश की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी। उसने हकलाते हुए कहा "भाई वह मैं........ असल में..........."


      अव्यांश परेशान परेशान हो गया। सिद्धार्थ की आवाज सुनकर अव्यांश समझ गया था कि आने वाला मेहमान कोई खास है और उनके स्वागत के लिए अव्यांश का होना जरूरी था। लेकिन काया उसे रोक हुए थी और कुछ बोल भी नहीं रही थी। अव्यांश परेशान होकर बोला "देख कायू, अगर तुझे कोई बात नहीं करनी है तो मुझे जाने दे।"


    अव्यांश वापस जाने लगा तो काया ने फिर से उसका हाथ पकड़ लिया और बोली "लेकिन भाई! कुछ जरूरी था।"


    अव्यांश से समझाते हुए बोला "देख लल्ली! जो जरूरी है उसे कुछ देर के लिए पोस्टपोन कर दे या फिर तू किसी और से अपना काम करवा ले। फिलहाल मुझे निकलना है और अगर यह काम सिर्फ मैं कर सकता हूं तो फिर बाद में मिलना, ठीक है? ज्यादा टेंशन लेनी की जरूरत नहीं है। अभी मुझे जाना है।" अपने हाथ छुड़ाकर अव्यांश वहां से निकल गया। काया परेशान से वहीं खड़ी रही।


     आने वाले दो मेहमान और कोई नहीं बल्कि रेहान सिंघानिया और लावण्या सिंघानिया थे, कार्तिक के चाचू और चाची। सिद्धार्थ ने रेहान को गले लगाया और कहा "बहुत टाइम के बाद। वैसे, तुम दोनों एक साथ? मुझे जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम और लावण्या दोनों एक साथ हो।"


    रेहान सिंघानिया ने लावण्या की तरफ देखा और कहा "उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी लेकिन किस्मत में जो होना होता है वह होकर रहता है। वैसे हमें पता ही नहीं चला, कि तेरी एक बेटी है और तू अब उसकी शादी करवा रहा है? हमें तो लगा था तेरे नाती पोते की शादी हो रही होगी। आई मीन उम्र तो इतनी हो गई है ना तेरी?"


     सिद्धार्थ ने नाराजगी से रेहान की तरफ देखा तो लावण्या ने धीरे से रेहान को कमर में मुक्का मारा और उसे मजाक ना करने को इशारा किया लेकिन रेहान ने उसे पूरी तरह इग्नोर कर दिया और कहा "मैं सच कह रहा हूं। अब देख लो ना, हमारे बच्चे फिलहाल न्यूजीलैंड में सेटल है और हमारा बेटा खुद एक बेटे का बाप है। इसी हिसाब से तो अगले कुछ सालों में इसने अपने नाती पोते की शादी करनी चाहिए थी।"


       सिद्धार्थ का मजाक बने और वहां सारांश ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। उन्होंने भी पीछे से बड़े प्यार से अपने भाई के कंधे पर हाथ रखा और रेहान से कहा "यह बात तो बिल्कुल सही कही आपने। यही बात मैं भी इनको समझाते रहता था। क्या करे, उम्र हो चली है। वैसे भी यह बात उनके समझ में आती नहीं थी। हमारे कहने पर चलते तो..........."


     सिद्धार्थ ने बीच में रोका "तो तेरी भाभी नहीं मिलती।" फिर उन्होंने रेहान से कहा "साले तू ऐसे बोल रहा है जैसे मैं तुझसे उम्र में बड़ा हूं। हम दोनों लगभग एक ही उम्र के हैं और मेरा बेटा तेरे बेटे से बड़ा है। खबरदार मेरी उम्र को लेकर कोई भी तानाकशी की तो! और किस पोते पोते की धमकी दे रहा है तू?"


      दोनों के बीच बात बढ़ते देख श्यामा और लावण्या ने बीच बचाव करना चाहा तो सारांश ने दोनों को रोकते हुए कहा "अरे रहने दो आप लोग। इन दोनों के झगड़े में पड़ोगे तो फिर अपना ही दिमाग खराब होगा। ये इनका हमेशा का है। अभी तो रुद्र नहीं है यहां पर। वह होता तो और बवाल मचता। आप लोग चलो मेरे साथ।" सारांश ने श्यामा और लावण्या के कंधे पर हाथ रखा और वहां से लेकर चले गए।


      इधर रेहान और सिद्धार्थ दोनों आपस में उलझे हुए थे। तो इधर कार्तिक सिंघानिया परेशान था। इधर-उधर नजर दौड़ते हुए उसकी आंखें सुहानी पर जा टिकी जो एक साइड खड़ी थी। उसके पास यहां से उठने का अच्छा खासा मौका था इसलिए उसने बहाने से उठने की कोशिश की लेकिन कुणाल ने बुरी तरह धमकाते हुए उसे वापस अपनी जगह बैठा दिया।


     'कहां फंस गया यार!' कार्तिक ने मन में बोला तो कुणाल ने मुस्कुरा कर कहा "मैं फंस रहा हूं, तो सोचा थोड़ी तकलीफ मैं तुझे भी दे दूं। आखिर तू दोस्त है मेरा। चाहे खुशी हो या गम दोस्त हमेशा बराबर के हिस्सेदार होते हैं।" कुणाल ने मुस्कुरा कर कार्तिक सिंघानिया की तरफ देखा तो कार्तिक सिंघानिया ने भी ऐसी शकल बनाई जैसे अभी वह कुणाल का मुंह तोड़ देगा। अब वो क्या करें? 


    ऐन मौके पर उसे अपने चाचू की आवाज सुनाई दी तो उसने कुणाल से कहा "चाचू आए हैं, मैं उनसे मिलकर आता हूं।"


     कुणाल ने एक बार फिर कार्तिक सिंघानिया का हाथ पकड़ा और कहा "अपने चाचा से तू रोज मिलता है। मेरे पास बैठेगा तो वो कुछ कहेंगे नहीं।"


      लेकिन इस बार कार्तिक नहीं रुकने वाला था। उसने कहा "जरूरी है भाई! वह ऋषि ना मेरा फोन नहीं उठा रहा ना कोई मैसेज का रिप्लाई कर रहा है। पापा के फोन पर कॉल किया लेकिन उनका फोन नहीं लगा। मम्मी का फोन भी पापा के पास ही रहता है, जाहिर सी बात है। और उन दोनों के आने की खबर मुझे नहीं है तो चाचू को जरूर पता होगी। इस बार मुझे मत रोक, जरूरी है।" कार्तिक सिंघानिया कुणाल को बोलने का मौका दिए बिना ही वहां से उठकर किसी तीर की तरह निकला। कुणाल गुस्से में उसे देखता रह गया।


     कार्तिक सिंघानिया अपने इस बहाने पर बहुत खुश था। अपने चाचू से तो वह रोज ही मिलता था, कुणाल की यह बात बिल्कुल सही थी। रही बात उसके मम्मी पापा की तो आज सुबह ही उनसे उसकी बात हुई थी। कुछ और जानने सुनने को था नहीं इसलिए वह सीधे सुहानी के पास पहुंचा और उसके कंधे पर टैप किया।


      सुहानी जो अपने फोन में लगी थी, वह एकदम से चौक कर पीछे पलटी तो अपने सामने कार्तिक को खड़ा पाया। कार्तिक को देखकर सुहानी के होठों पर मुस्कान तो आई लेकिन अगले ही पल वह मुस्कान गायब हो गई और वह वापस पलट कर वहां से चली गई। कार्तिक सिंघानिया सोचता रह गया कि आखिर सुहानी को हुआ क्या।

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