सुन मेरे हमसफर 223

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     दरवाजे पर कुणाल और उसकी पूरी फैमिली खड़ी थी। कुणाल अपने एक हाथ में स्टिक लिए वहां मौजूद था। उसके साथ में उसका दोस्त कार्तिक सिंघानिया खड़ा था। काव्या और कार्तिक दोनों मिलकर अपनी बेटी के होने वाले ससुराल वालों का स्वागत करने में लगे थे।


    कुणाल, तिलक कराने के बाद अंदर आया तो बाकी सब भी एक-एक कर तिलक लगवा कर अंदर आते गए। कार्तिक सिंघानिया कुणाल के साथ ही था। सच कहूं तो यह कार्तिक सिंघानिया की मजबूरी थी। कुणाल ने उसे बुरी तरह अपने साथ रहने पर मजबूर कर दिया था। न जाने उसे किस बात का डर था और किस चीज की यह घबराहट थी जो कुणाल उसे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था।


    अंदर आते हुए कार्तिक सिंघानिया ने झुंझलाकर कुणाल से पूछा "अब किस बात का डर है तुझे? ना तो तू ड्राइव कर रहा है और ना ही तेरा एक्सीडेंट होने वाला है। सच कहूं तो अब तक तुझे अपनी हड्डियां तुड़वाने का एक्सपीरियंस अच्छा खासा हो गया होगा। बस टांगे बची थी, वह कसर भी पूरी हो गई। अब तो मेरा हाथ छोड़ दे मेरे भाई! यहां तेरे ससुराल वाले है जो तुझे अपने कंधे पर बिठा कर रखेंगे। तुझे मेरी जरूरत नहीं होगी।"


     कुणाल उसे अपने साथ बैठाते हुए बोला "चुपचाप मेरे साथ रह वरना तेरी खैर नहीं। मुझे एक्सीडेंट से डर नहीं लगता और यह बात तू अब तक समझ गया होगा। टांगे टूटी नहीं है मेरी, बिल्कुल ठीक हूं मैं बस थोड़ी सी चोट है। तुझे अपने साथ इसलिए रखा है मैंने ताकि वह शिवि...........!


      शिवि का नाम लेते ही कुणाल थोड़ा सा घबरा गया और बोला "शिवि से मुझे डर लगता है यार! सीधे मुंह कभी बात नहीं करती और जब भी बोलती है तो लगता है जैसे मुझे खड़े-खड़े निगल जाएगी। ऐसी लड़की से मैं प्यार की उम्मीद भी कैसे कर सकता हूं!"


     कार्तिक सिंघानिया अपने चारों तरफ देखते हुए बोला "कहीं नजर तो नहीं आ रही वह। लेकिन एक बात बता, तू ऐसे घबरा रहा है जैसे वो तेरी बीवी हो। आई मीन कोई इंसान अपनी बीवी से इतना नहीं रहता जितना तू अपनी साली से डर रहा है।"


     कुणाल ने कार्तिक सिंघानिया को गुस्से में घूरकर देखा तो कार्तिक सिंघानिया अपनी बात संभालते हुए बोला "देख मैं जानता हूं तेरे दिल में उसके लिए फिलिंग्स है लेकिन रिश्ते में तो वह तेरी साली ही लगेगी ना! और तेरे ऐसे घबराने से कुछ होगा नहीं। तू अभी ससुराल में है और तेरी वह खतरनाक आइटम तुझे कुछ चिढ़ाने की कोशिश भी नहीं करेगी। वैसे वह है कहां, कहीं दिख नहीं रही?"


     कुणाल उसे ताना देते हुए बोला "मैं सुबह से तेरे साथ ही हूं। अस्पताल से सुबह-सुबह डिस्चार्ज करवा दिया उसने और एक बार मेरी शक्ल तक देखने नहीं आई। बस कल तक की बात है कल उससे मेरा रिश्ता हमेशा के लिए बदल जाएगा। और जिस एहसास को मैं अपने दिल में दवाई जी रहा हूं उसे एहसास को मुझे अपने अंदर दफन करना होगा। मैं किसी के साथ नाइंसाफी नहीं कर सकता लेकिन तकलीफ इस बात की भी है कि मैं शायद ही कुहू अपना पाऊं। क्या मेरा फैसला सही है या फिर मुझे कुहू की बात ना मानते हुए इस रिश्ते से इनकार कर देना चाहिए? या फिर वक्त के साथ मैं भी बदल जाऊंगा?"


      कार्तिक सिंघानिया सामने की तरफ देख रहा था। उसने कुणाल का मजाक बनाते हुए कहा "इतने टाइम में तू यह बात नहीं समझ पाया तो तुझसे बड़ा बेवकूफ और कोई नहीं है। अब टाइम नहीं बचा और टाइम निकल जाने के बाद अच्छे से अच्छी दवाई भी किसी बीमार को ठीक नहीं कर सकती। किसी और का दिल टूटे उससे अच्छा तू इस सबसे समझौता कर ले। वैसे तेरी लाइफ में यही लिखा है। अभी जैसे तूने ही कहा, वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। वक्त हर घाव पर मरहम लगा देता है और कुहू तो तेरी अच्छी दोस्त है। एक अच्छी दोस्त एक अच्छी लाइफ पार्टनर भी हो सकती है। तू ज्यादा स्ट्रेस मत ले और खुश रहने की कोशिश कर।" कुणाल क्या ही कर सकता था जबरदस्ती उसने अपने चेहरे पर एक मुस्कान ओढ़ी और वहां शांति से बैठ गया।


       काया और सुहानी दूर से ही कार्तिक पर नजर बनाए हुए थी। काया ने दरवाज़े की तरफ देखा लेकिन उसे कहीं भी कार्तिक के मम्मी पापा नजर नहीं आए। वैसे तो वह कभी रुद्र और शरण्या से मिली नहीं थी लेकिन वहां मौजूद कोई भी उसे कार्तिक की फैमिली दिख नहीं रही थी।


     अव्यांश निशी से बचते हुए अपना फोन कान से लगाए जा रहा था। काया को न जाने क्या सूझा, उसने एकदम से अव्यांश के कॉलर को पीछे से पकड़ा और उसे रोकते हुए बोली "भाई.......!"


     अव्यांश पीछे गिरने को हुआ लेकिन जल्दी ही उसने खुद को संभाल लिया और काया पर झुंझलाकर बोला "क्या हरकत है ये? मैं कुछ करने जा रहा हूं! तुझे पता है मुझे 1 मिनट की फुर्सत नहीं है और तू मुझे इस तरह रोक रही है! एटलीस्ट एक आवाज लगा देती मैं रुक जाता।"


     अव्यांश को इतना परेशान देख काया ने जल्दी से अपने दोनों कान पकड़े और बोली "सॉरी! एक्चुअली मुझे कुछ और नहीं सुझा। मुझे तुमसे कुछ पूछना था।"


     अव्यांश को भी लगा कि उसने काया पर बेवजह ही गुस्सा कर दिया है। उसने मुस्कुरा कर काया के चेहरे को हल्के हाथों से छुआ और पूछा "क्या हुआ, इतनी परेशान क्यों लग रही है?"


     काया ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन वहीं पर सुहानी खड़ी थी और उसके सामने वह अपनी एक्साइटमेंट दिखाना नहीं चाहती थी। उसने अव्यांश का हाथ पकड़ा और एक साइड ले गई। अव्यांश परेशान होकर बोला "तू मुझे यहां क्यों लेकर आई है, इस कोने में? ऐसी क्या बात है? किसी की चुगली तो नहीं करनी है? किसी का किडनैप तो नहीं करना है? हे भगवान! कहीं तू किसी का मर्डर करने का तो नहीं सोच रही है?"


     काया गुस्से में बोली "मर्डर करना है, वह भी अपने हाथों से इसलिए तो तुम्हें कोने में लेकर आई हूं। यहां कोई देखेगा भी नहीं और किसी को पता भी नहीं चला कि मैंने तुम्हारा खून कर दिया है।"


    अव्यांश की हंसी छूट गई। उसने दीवार से टेक लगा लिया और हाथ बांधकर बोला "बता क्या बात है?"


     तभी काया कानों में सिद्धार्थ की आवाज गूंजी "ओए बेवकूफ, गधे, उल्लू के पट्ठे! फुर्सत मिल गई तुझे?"


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