सुन मेरे हमसफर 210

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     काया अपना फोन लेकर अपने कमरे में आई और जल्दी से दरवाजा बंद किया। ऐसा करते हुए उसका दिल जोरो से धड़क रहा था। उसके हाथ में फोन था और वह एक नंबर डायल करना चाहती थी। बहुत मुश्किल से धड़कते दिल के साथ उसने वो नंबर डायल किया लेकिन यह क्या? फोन नंबर तो आउट ऑफ रिच बता रहा था।


   "ऐसा कैसे हो सकता है? वह तो इंडिया में ही है। भले मुझसे झूठ बोला या कुछ भी। फिर अचानक से उसका नंबर आउट ऑफ रिच कैसे हो सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे पीठ पीछे वह किसी और के साथ............! हो भी सकता है। उसके कैरेक्टर का कोई भरोसा नहीं है। एक बार और ट्राई करू?" 


     सोचते हुए काया ने एक बार फिर ऋषभ का नंबर डायल किया लेकिन कॉल कनेक्ट या डिस्कनेक्ट होने से पहले ही उसके फोन पर ऋषभ का नंबर चमकने लगा। काया के हाथ से फोन गिरते गिरते बचा। उसने एक हाथ से अपना फोन संभाला और दूसरा हाथ अपने सीने पर रख कर बोली "यह कोई साइको है क्या? इसे कैसे पता कि मैं इसे फोन कर रही हूं? इसका तो नंबर नहीं लग रहा था। इसको हर बार पता कैसे चल जाता है कि मैं इसे याद कर रही हूं? कहीं इसने मेरे घर में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा रखा है या फिर कोई सेंसर?"


     काया का फोन बजे जा रहा था। इससे पहले की कट जाए और ऋषभ फिर से उससे इस बात का बदला ले, उसने जल्दी से फोन उठाया और बोली "क्या है? मुझे इतना परेशान करना कब बंद करोगे तुम?"


      दूसरी तरफ से ऋषभ की हंसी सुनाई दी। उसने हंसते हुए कहा "इतनी नाराजगी? लगता है मुझे याद कर रही थी, है ना?"


   काया ने फोन कान से हटाकर पहले तो स्क्रीन पर फ्लैश हो रहा है उस बदतमीज इंसान का नाम घूर कर देखा और फिर वापस कान से लगा कर बोली "मैं तुम्हें क्यों याद करूंगी? तुम शायद भूल रहे हो, मेरे घर में शादी है मेरी बहन की शादी। और हम सब लोग उसी में बिजी हैं। तुम्हें याद करने का टाइम किसके पास है!"


    ऋषभ की हंसी अभी भी बंद नहीं हुई। उसने शरारत से कहा "अच्छा! जहां तक मुझे पता है इस वक्त तुम्हारे घर में तुम्हारी बहन की मेहंदी की रस्म चल रही है और सब लोग नाचने गाने में व्यस्त हैं। मेरा फोन काटने से ऐन पहले तुमने फोन उठाया और बैकग्राउंड में कहीं कोई म्यूजिक भी नहीं बज रहा। ना ही सबके बीच से भगाने के लिए तुम्हारी सांस फूल रही है। इसका मतलब मेरा फोन रिसीव करने के लिए तुम सबसे दूर नहीं गई बल्कि मुझे याद कर रही थी और मुझे कॉल करने की सोच रही थी, है ना? कह दो मैं गलत हूं।"


     काया घबरा गई और उसने गुस्से में ऋषभ पर झुंझलाते हुए कहा "तुम अपने आप को कुछ ज्यादा ही स्मार्ट नहीं समझते हो? और सच-सच बताओ, तुमने मेरे घर में कोई स्पाई कैमरा या कुछ तो ऐसा लगा है, है ना? जिससे तुम मेरी हर मूवमेंट को मॉनिटर कर सको।"


      ऋषभ कुछ नहीं बोला, बस मुस्कुरा दिया। यानी उसका शक बिल्कुल सही था। काया उसे ही याद कर रही थी। उसने बड़े प्यार से पूछा "अब बताओ, मुझे क्यों याद कर रही थी? अपनी मेहंदी में मेरा नाम लिखवाना है तो तुम बेझिझक लिखवा सकती हो। इसमें पूछने की जरूरत नहीं है। वैसे तुमने पूछने के लिए फोन किया था या बताने के लिए?"


    काया ने भी बिना सोचे समझे जवाब दिया "पूछने के लिए फोन कर रही थी तुम्हें कि क्या नाम लिखूं, ऋषभ या कार्तिक?"


       कार्तिक का नाम सुनते ही ऋषभ की फोन पर पकड़ कस गई। जो ऋषभ अब तक मुस्कुरा कर बात कर रहा था उसकी आवाज में एक अलग ही तल्खी आ गई और उसने सख्त आवाज में काया से कहा "अपने नाम के साथ सिर्फ ऋषभ का नाम जोड़ना। किसी और का नाम जोड़ने की इजाजत नहीं है तुम्हें।"


     काया को उसकी आवाज में आई बेरुखी बहुत अजीब लगी। फिर भी उसने भी नाराजगी से कहा "तुम्हें स्प्लिट पर्सनैलिटी डिसऑर्डर है क्या? या फिर तुम एक साथ दो पहचान लेकर घूमते हो? एक बात बताओ, तुम नॉर्मल इंसान हो या फिर कहीं के एजेंट? मैं अब तक तुम्हें समझ नहीं पाई हूं।"


      ऋषभ ने उसके किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया और कहा "मैं ऋषभ हूं और तुम्हें इसके अलावा कोई और नाम याद रखने की जरूरत नहीं है। कल संगीत है ना? कल मैं वापस आ रहा हूं मेरा इंतजार करना।"


     काया सोच में पड़ गई। वापस आ रहा हूं? लेकिन यह तो यही है! इससे पहले कि वह कुछ पूछ पाती ऋषभ फोन काट चुका था। उसी वक्त सुहानी ने कमरे के बाहर दस्तक दी। "काया कहां है तू? चल नीचे सब बुला रहे हैं तुझे। मेहंदी नहीं लगवानी क्या?" काया ने फोन जल्दी से अपने कपड़े में छुपाया और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गई।





    कुहू थोड़ी ही देर बाद अपने कमरे से वापस आई तो देखा शिवि के हाथ में बड़ी प्यारी सी मेहंदी रची थी। शिवि भी अपनी मेहंदी को दिखाकर बोली, "हो गई तसल्ली? आपके कहने पर मैंने मेहंदी लगवा ली है अब इससे ज्यादा मेरे से नहीं होगा।"


     लेकिन कुहू मेहंदी वाली पर नाराज होकर बोली "बस इतनी सी मेहंदी? इतने से क्या होगा? पूरे हाथ में लगाओ।"


     शिवि चौक गई। "पूरे हाथ में मेहंदी? यह सरासर अत्याचार है मुझ पर। और यह अत्याचार अकेले मुझ पर क्यों?"


     कुहू ने मुस्कुरा कहा "ये अत्याचार सिर्फ तुझ पर नहीं, सब पर होगा। काया निशी और सोनू के हाथ में भी पूरी मेहंदी लगेगी जैसे मेरी लगने वाली है। तुम सब की मेहंदी हो जाएगी उसके बाद मेरी मेहंदी रचेगी, आराम से। कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा।"


     काया ने सुना तो मन ही मन खुश हो गई लेकिन उसे शरमाते देख सुहानी का दिल बुझ गया। घर वाले भी खुश थे कि आज शिवि बुरी फंसी। हर बार वह बचकर निकल जाती थी लेकिन इस बार नहीं। अचानक ही चित्रा का ध्यान कुहू के चेहरे पर गया तो वह पूछ बैठी "कुहू! तेरा ये काजल क्यों फैल गया? कितनी मेहनत से मेकअप किया था तेरा।"


     कुहू ने जल्दी से अपने काजल को समेटने के लिए हाथ आगे किया। सबकी नजर कुहू पर चली गई।

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