सुन मेरे हमसफर 205

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    कुणाल के ऑफिस से निकलकर अंशु सीधे हॉस्पिटल के लिए निकला। रास्ते में काव्या ने उसे कॉल किया और पूछा "अंशु कहां है तू?"


     अंशु ने बिना कुछ सोचे समझे कहा "मासी मैं हॉस्पिटल जा रहा हूं । मुझे कुणाल से कुछ काम था।"


     काव्या जल्दी से बोली "अभी अस्पताल पहुंचा नहीं है ना! तो एक काम कर, यहां आजा।"


     अंशु के दिमाग में भी कुछ और चल रहा था। उसने कहा "मासी मैं एक बार हॉस्पिटल से हो आता हूं उसके बाद आपसे मिलता हूं कुछ जरूरी काम था कुणाल से।"


   काव्या समझाते हुए बोली "मैं भी तो वही कह रही हूं। हॉस्पिटल जा रहा है तो पहले यहां आजा मुझे कोई काम है। कुणाल के लिए मैंने शेरवानी तैयार की थी। एक बार भी उसने ट्राई नहीं किया है। उसके फिटिंग वगैरा चेक करवानी थी। इसीलिए तू आ और आकर लेकर जा।"


     अंशु के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। लेकिन बिना कुछ और सोच ने फोन काट दिया। अंशु लगभग हॉस्पिटल के पास पहुंच ही चुका था उसने गाड़ी यू टर्न ली और काव्या के बुटीक चला गया।





    सुहानी को रोना आ रहा था इसलिए वो छत पर चली आई लेकिन छत पर आकर उसने काया और ऋषभ के बीच की बात सुनी। काया ने फोन काट दिया था और जिस तरह फोन काटने से पहले वह ऋषभ से लड़ रही थी उससे सुहानी को और ज्यादा बुरा लग रहा था। 'मतलब चुपके-चुपके दोनों के बीच इतना कुछ चल रहा था और मैं बेवकूफ बनी रही। मेरी बहन होकर तू मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हैं एट लिस्ट मुझे सारा सच तो बता ही सकती थी तू।'


     काया नीचे जाने के लिए जैसे ही पलटी उसने अपने पीछे सुहानी को देखा तो थोड़ा चौंक गई। वह जानती थी सोनू इस बात के लिए उसे जरूर सुनाएगी। वह कुछ कहती उससे पहले ही काया का फोन बजा। ऋषभ उसे कॉल कर रहा था। काया ने फोन काट दिया यह सोचकर कि चाहे तुम जो भी सोचो जो भी करो।


     काया सुहानी से बोली "सॉरी सोनू! मैं जानती हूं मुझे तुझे इस बारे में बता देना चाहिए था लेकिन........."


    काया का फोन फिर बजा। इस बार भी ऋषभ ही उसे फोन कर रहा था। सुहानी ने देखा तो यह वही बदतमीज इंसान का कॉल था जिसका कॉल दो दिन पहले भी आया था। काया फोन काटती उससे पहले सुहानी बोली "बात कर ले पहले, उसके बाद हम बात करते हैं।" 

 

    सुहानी की आवाज से उसकी नाराज की साफ जाहिर हो रही थी इसलिए काया ने फोन उठाया और बोली "मिस्टर सिंघानिया! आपको जो भी बात करनी है अब आमने-सामने आकर बात करिए, फोन पर हमारी कोई बात नहीं होगी।" दूसरी तरफ से ऋषभ कुछ कह पाता उससे पहले ही काया ने फोन रख दिया।


     सुहानी से सीधे से सवाल किया "कब से चल रहा है ये सब?"


    काया ने बस अपना सर झुका लिया और धीरे से बोली "सच कहूं तो मुझे भी नहीं पता ये सब कब से चल रहा है। कब वह जबरदस्ती मेरी लाइफ में घुस आया मुझे खुद नहीं पता।"


    सुहानी ने हैरान होकर पूछा "जबरदस्ती? तू कहना क्या चाह रही है?"


     काया परेशान होकर बोली "तुझे याद है होलिका दहन के दिन मैंने वह साड़ी पहनी थी। तूने पूछा था कि यह किसने दिया। मैं तो उस वक्त भी स्योर नहीं थी। पता नहीं कब कैसे वो मेरी जिंदगी में आया। सच कहूं तो मैं कब उसे पसंद करने लगी मुझे पता ही नहीं चला और यह सब कुछ उसने जबर्दस्ती करवाया। मुझसे मेरी फर्स्ट किस भी चुरा ली उसने। तू बता, इसमें मेरी क्या गलती?"


    सुहानी तो यहां रोने आई थी लेकिन यह सब कुछ सुनकर अब उसकी रुलाई अब और नहीं रुक रही थी। काया के सामने वह कैसे रोती! अपनी बहन की खुशियों के आगे और किसी भी तरह का प्रॉब्लम नहीं क्रिएट करना चाहती थी। लेकिन उससे रुका नहीं गया और वह काया को छोड़ वहां से तुरंत भाग गई।


    काया उसकी तरफ पीठ किए खड़ी थी। उसे पता ही नहीं चला कब सुहानी का वहां से चली गई। अपनी आप बीती सुना कर काया ने जैसे ही पीछे पलट कर देगा, वहां कोई नहीं था। काया को कुछ भी समझ में नहीं आया। उसने सुहानी को ढूंढने के लिए छत पर ही इधर उधर नजर दौड़ाई, और उसे आवाज भी लगाई लेकिन सुहानी वहां होती तो मिलती। तभी काया की दादी ने उसे आवाज लगाई, "काया! कहां है तू? कुहू की मेहंदी तैयार हुई है या नही?"


     और काया "आई दादी!" कह कर वहां से भाग गई।



 


      अंशु कुणाल की शादी की शेरवानी लेकर हॉस्पिटल पहुंचा। उसकी चाल से यह बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वह कुणाल से सीधे मुंह बात करने वाला है। उसके एक हाथ में कुणाल का लैपटॉप और दूसरे हाथ में उसकी शेरवानी थी। अंशु ने लात मार कर कमरे का दरवाजा खोला और अंदर दाखिल हुआ।


      उसके इस तरह आने से कुणाल पहले तो डर गया लेकिन फिर राहत की सांस लेकर बोला "यार तुम? इस तरह कौन आता है, वो भी हॉस्पिटल में? डरा दिया था तुमने मुझे।"


   अंशु धीरे से मुस्कुरा कर बोला "डर? ये भी कोई डरना है! डरना क्या होता है यह तो तुमने आज तक समझ ही नहीं।"


     कुणाल को अंशु की बातें समझ नहीं आई लेकिन इतना जरूर समझ में आया कि कुछ तो गड़बड़ है। अंशु की बॉडी लैंग्वेज उसे कहीं से भी पॉजिटिव नजर नहीं आ रही थी। उसने सवालिया निगाहों से अंशु को देखा और पूछा "क्या हुआ अंशु, कोई प्रॉब्लम है क्या?"


    अंशु ने धीमे से जवाब दिया "ये बात तो मुझे तुमसे पूछनी चाहिए कि आखिर तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है?"


    कुणाल कुछ समझ पाता, तब तक अंशु ने अपने हाथ में पड़ा दोनों समान सामने टेबल पर रखा। कुणाल की नजर जैसे ही अपने लैपटॉप पर गई उसकी आंखें हारने से फैल गई। उसने अंशु की तरफ देखा और जो गुस्से में उसे ही घूर रहा था। उसने अपनी बात एक्सप्लेन करने की कोशिश की। "तुम गलत समझ रहे हो। एक बार मेरी बात सुन लो उसके बाद तुम........?"


     उससे पहले ही अंशु ने एक जोरदार पंच कुणाल के जबड़े पर मारा।

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