सुन मेरे हमसफर 207

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     कुहू अपने पीछे चित्रा को भगा रही थी और पूरे घर में उधम मचा रही थी। ना कुहू थक रही थी और न हीं चित्रा। लेकिन चित्रा को देखकर कुहू समझ गई कि खुद को अभी भी यंग दिखने के चक्कर में उसकी चित्रा मॉम की हालत खराब हो रही है, इसलिए वो जाकर सोफे पर बैठ गई और आराम से लेट कर हांफते हुए बोली "मानना पड़ेगा। अभी भी आप हमसे ज्यादा एनर्जेटिक हो।"


     चित्रा की भी हालत खराब हो गई थी। फिर भी वह अपनी नाक ऊंची कर बोली "आगे से पंगा मत लेना।" सभी हंस पड़े।


  काव्या बोली "बहुत हो गया तुम लोगों का बचपना। मैं चाय बना कर लाती हूं, उसके बाद कुहू! तुम्हारी मेहंदी की रस्म है।"


    चित्रा उसे रोकते हुए बोली "अरे काव्या! चाय मैं बना दूंगी, तुम जाकर देखो ढोलक वाली आई या नहीं।"


      काया अपनी धुन में नीचे उतर रही थी। चित्रा ने उसकी कान पकड़ी और बोली "कहां से आ रही है सवारी? इस वक्त तुम्हें सबको बुलाने जाना था। अरे 5 सुहागने मिलकर गीत गुंजन करती है तब तो लगता है कि घर में शादी का माहौल है। एक तो इतनी जल्दबाजी में तुम लोग शादी कर रहे हो ना, कहीं से कोई रौनक लगी नहीं रही है।"


   अव्यांश मन ही मां बोला 'रौनक लगेगी भी कैसे जब दुल्हन की जिंदगी में रौनक नहीं आने वाली। क्यों कर रहे हो आप दी यह सब? क्या कुणाल का कहना सही है? क्या यह सब आप जानबूझकर कर रहे हो?' 


    मेहंदी की रस्म का नाम सुनकर कुहू बोली "मैं तैयार होकर आती हूं।" 


   कुहू अपने कमरे की तरफ जाने को हुई तो काव्या उसे आवाज देते हुए बोली "अरे पागल पहले चाय तो पी ले, उसके बाद जाना।"


    लेकिन कुहू रुकी नहीं और बोली "मैं पहले तैयार होकर आती हूं उसके बाद।"


    कुहू को इस तरह भागते देखा काव्या अपने सर पर हाथ रख कर बोली "यह लड़की अभी ऐसी है तो फिर शादी के बाद इसका क्या होगा? ससुराल में भी क्या ऐसे ही उछल कूद मचाएगी?"

 

     धानी उसे समझाते हुए बोली "जाने दो ना! ससुराल में वह खुद समझ जाएगी। अभी जब तक उधम मचा रही है मचा लेने दो उसे। अपना बचपन जी लेने दो।"


     चित्रा इधर-उधर देखते हुए काया से बोली "हां लेकिन सुहानी कहां है? वो तेरे साथ नही है क्या?"


     काया इधर-उधर देखते हुए बोली "पता नहीं मॉम! मैं छत पर थी तो वह थोड़ी देर के लिए आई थी लेकिन अचानक ही कहीं गायब हो गई। उसके बाद से तो मैं भी नहीं देखा।"


  चित्रा टाइम देखकर बोली "ठीक है छोड़ ये सब और जा निकल बाहर।"


     काया को और क्या चाहिए था। चित्रा की डांट से बचने का मौका मिल गया था। वह कहां रुकती। इसलिए वह भाग गई। अचानक धानी की नजर अव्यांश पर गई तो उन्होंने कहा "अंशु! तू कब आया?"


     अव्यांश ने जाकर धानी को पीछे से गले लगाया और बोला "बस अभी थोड़ी देर पहले दादी, जब कुहू दी चित्रा बुआ को परेशान कर रही थी और चित्रा बुआ की उम्र हो गई है ना इसलिए उन्होंने हार मान ली।"


    चित्रा कैसे अपनी उम्र को लेकर ऐसा सुन सकती थी! उसने नाराजगी से कहा "अंशु! तू कुछ ज्यादा नहीं बोल रहा? मैं थकी नहीं थी।"


   अव्यांश भी उन्हें मनाते हुए बोला "मैं आपकी बात थोड़ी कर रहा हूं, मैं तो कुछ दी की बात कर रहा हूं।" चित्रा चुप हो गई।


     अव्यांश बोला "मैं एक बार कुहू दी से मिलकर आता हूं। आज उनसे ठीक से मिला नहीं।"


      चित्रा भी झूठी नाराजगी दिखा कर बोली "जाकर मिल ले। दो दिन की मेहमान है बस, तीसरे दिन तो ससुराल चली जाएगी।" अव्यांश कुछ नहीं बोला और चुपचाप उठकर वहां से चला गया।




    कुहू तो तैयार रही थी। उसने कपड़े चेंज कर लिए थे और उसे हल्का टच अप करना था। कुहू आईने के सामने ही खड़ी थी। उसकी नजर अपने पीछे अव्यांश पर गई तो उसने मुड़कर देखा और बोली "कहां था तू? कहीं दिख ही नहीं रहा था।"


    अव्यांश अपनी मजबूरी बताते हुए बोला "कुछ नहीं दी! वह बस ऑफिस का काम था, थोड़ा सा अर्जेंट था इसलिए जाना पड़ा।"


     कुहू शिकायत करते हुए बोली "मेरी तो समझ में नहीं आता तुम लोगों को अपने काम से इतना प्यार क्यों है? आई मीन शिवि को देख ले उसको अपने हॉस्पिटल से फुर्सत नहीं मिलती। खुद से ज्यादा उसे अस्पताल से प्यार है। मरीज के दिल का ख्याल रखने में उसे इतना मजा आता है कि हमारे दिल का ख्याल रखना ही भूल गई है।"


     अव्यांश जाकर पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला "दी! ये उनका काम है, जैसे मेरा काम है। वह भी तो जरूरी है।"


   अव्यांश ने जबरदस्ती अपने होठों पर मुस्कान ओढ़ी लेकिन कुहू की शिकायत कम नहीं हुई। उसने कहा "तुझे कब से ऑफिस से काम में इतना इंटरेस्ट आने लगा? तुझे तो ऑफिस कभी जाना ही नहीं था। सच-सच बता, यह निशी के संगत का असर है ना? मिश्रा जी की बेटी है वह, और मिश्रा जी ने तुझे ट्रेनिंग दी थी। तू मिश्रा जी के सामने अपना इंप्रेशन जमाने के लिए ऑफिस जाता था ना?"


    निशी का नाम सुनकर अव्यांश का दिल दर्द से भर उठा। लेकिन फिर भी मुस्कुरा कर बोला "क्या दी आप भी! उस वक्त तो मुझे पता भी नहीं था की मिश्रा जी की कोई बेटी है। आई मीन मुझे पता था कि मिश्रा जी की बेटी है लेकिन कभी उससे मिलना नहीं हुआ था। और वैसे भी, आप मेरा नेचर जानते हो। किसी की पर्सनल लाइफ में इंटरफेयर करना मुझे कभी पसंद नहीं था इसलिए मैंने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की वरना उन्हें लगता कि मैं उनकी बेटी पर लाइन मार रहा हूं।"


      कुहू भी हंसते हुए बोली "अच्छा! लेकिन उन्हें यह नहीं पता क्या कि तूने बिना लाइन मारे ही निशी की पूरी कलाई ही पकड़ ली। एक बात बता, तू निशी से प्यार करता है ना? आई मीन शादी से पहले तेरा और निशि का कोई सीन.......?"


    अंशु अपने हाथ खड़े कर बोला "यह आपकी बहुत बड़ी गलतफहमी है। शादी से पहले निशी मुझे जानती तक नहीं थी। हां उसने मेरा नाम जरुर सुना था उसके अलावा कुछ नहीं।"


     कुहू ने एकदम से पूछ लिया "मतलब तुम दोनों की शादी में प्यार नहीं है?"


     अव्यांश ने चौक कर कुहू की तरफ देखा। क्या जवाब देगा अव्यांश?

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