सुन मेरे हमसफर 200

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    दूसरी तरफ कुणाल के हल्दी की रस्म के लिए उसके मम्मी पापा ही वहां मौजूद थे दूसरा और कोई नहीं था। यह मिस्टर रायचंद के ही आदतों का नतीजा था जो परिवार का कोई भी सदस्य कुछ खास रिश्ता बिल्कुल नहीं रखना चाहता था। हल्दी की रस्म पूरी करके कुहू के लिए हल्दी का कटोरा तैयार कर मिसेज रायचंद बोली "अब मैं इस हल्दी को कुहू के घर भिजवा दे रही हूं। लेकिन लेकर जाएगा कौन?"


   उसी वक्त एंट्री मारी निर्वाण ने, और बोला "मैं आंटी! मैं लेकर जाऊंगा। आखिर मैं किस दिन काम आऊंगा!"


     इतने दिन बाद भी मिसेज रायचंद निर्वाण से ज्यादा मिली नहीं थी। उन्होंने कुहू के घर पर और मित्तल हाउस में उसे आते जाते तो देखा था लेकिन अब तक पूछ नहीं पाई थी कि वह है कौन है। निर्वाण ने उन्हें खुद को ऐसे देखते हुए पाया तो अपनी तरफ इशारा करके बोला "आंटी मैं, निर्वाण, कुहू दी का भाई! आपने मुझे पहचाना नहीं?"


  मिसेज रायचंद बोली "मैं कुहू के दो भाई को जानती हूं, एक अंशु और दूसरा समर्थ मित्र। फिर तुम कौन हो? सॉरी बेटा लेकिन इससे पहले मैंने कभी तुम्हारे बारे में किसी से पूछा नहीं।"


    निर्वाण बेबाकी से बोला "अरे आंटी! आप कुहू दी की चित्र मॉम को तो जानती है ना?"


    मिसेज रायचंद बोली "हां! होने कैसे भूल सकती हूं मैं। बड़ी मजाकिया किस्म की है वह।"


   निर्वाण के कुछ कहने से पहले ही कुणाल बोला "ये उन्ही का बेटा है। देखने से लगता नहीं है ना! ना शक्ल मिलती है ना नेचर। पता नहीं किस पर गया है।"


    कुणाल का ताना निर्वाण साफ-साफ समझ रहा था। लेकिन उसने भी मुस्कुरा कर कहा "बिल्कुल तुम्हारी तरह। देखो ना आंटी! कुणाल भी तो आई मीन जीजा भी तो कहीं से भी आपकी तरह नहीं लगता। अब आप देखो ना, इतनी प्यारी हो इतनी स्वीट हो और दिखने में भी कितनी खूबसूरत लगती हो। थोड़े से गुण दे देते अपने बेटे को तो क्या जाता आपका?"


     मिसेज रायचंद हंसने लगी। मिस्टर रायचंद को लगा जैसे सामने खड़ा लड़का उनकी बीवी से फ्लर्ट कर रहा है तो उन्होंने हल्दी का कटोरा निर्वाण के हाथ में पकड़ाया और बोले "इसे तुरंत लेकर जाओ।" लेकिन निर्वाण को तो मिसेज रायचंद से बात करने में मजा आ रहा था। उनके सामने कुणाल की इंसल्ट करने में जो मजा था वह कहीं और नहीं था।


    मिस्टर रायचंद ने एक बार फिर निर्वाण से थोड़ा गंभीर होकर कहा "इसे फौरन लेकर जाओ वरना वहां रस्म शुरू होने में देर लगेगी।"


    निर्वाण के पास और कोई रास्ता नहीं था उसे वहां से निकलना ही पड़ा। उसके जाते ही कुणाल ने राहत की सांस ली। जब से निर्वाण आया था उसे देखकर ही कुणाल को अजीब सी चिढ़ हो रही थी। जाते हुए निर्वाण शिवि से टकराया। 


     शिवि उसे संभालते हुए बोली "संभाल के चला कर यार! कहां ध्यान है तेरा?"


    निर्वाण दांत पीसते हुए बोला "उस गधे के पास आया था हल्दी लेने। घर वालों को और कोई नहीं मिला तो मुझे ही भेज दिया। मतलब मैं तो बलि का बकरा हूं ना!"


     शिवि उसे समझाते हुए बोली "तेरा दिमाग खराब है? घर वालों को क्या पता तेरे और कुणाल के बीच में क्या चल रहा है!"


    निर्वाण ने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला लेकिन कुछ बोला नहीं क्योंकि बात तो सच थी फिर भी वह कुणाल के कमरे की तरफ देखते हुए बोला "यह गधा मजदूरी पर कब जा रहा है? मेरा मतलब यह डिस्चार्ज कब हो रहा है?"


     शिवि को हंसी आ गई। उसने हंसते हुए कहा "तू और तेरी बातें। कल सुबह डिस्चार्ज हो जाएगा वह और तेरा गधा काम पर भी लौट जाएगा तू चिंता मत कर और जाकर कपड़े धो।" निर्वाण पर पटकते हुए वहां से निकल गया। शिवि से अपनी हंसी कंट्रोल नहीं हो रही थी।


     एक बार कुणाल की हालत जानने के लिए शिवि उसके वार्ड में गई तो शिवि को वहां सामने देख मिसेज रायचंद हैरान होकर बोली "बेटा तुम यहां?"


    शिवि ने बड़े कैजुअल तरीके से कहा "हां आंटी! मैं यहां काम करती हूं। जाहिर सी बात है यहीं मिलूंगी।"


     लेकिन मिसेज रायचंद बोली "अरे बेटा! मेरा वो मतलब नहीं था। आज हल्दी है ना कुहू के घर पर तो तुम्हें तो वहां होना चाहिए था।"


     शिवि बहाना बनाते हुए बोली "हां आंटी मुझे वहां होना चाहिए था। लेकिन कुछ जरूरी काम था जिनका निपटारा करना था। घर पर तो सब लोग है ही। यहां मेरे पेशेंट को देखने के लिए मुझे आना ही पड़ेगा। सोच रही हूं शादी तक सबको निपटा दूं उसके बाद आराम से बैठकर तमाशा देखूंगी। आई मीन शादी देखूंगी।"


    शिवि को सामने देख फाइनली एक कुणाल को थोड़ी सी रात महसूस हुई और उसके होठों पर एक जेनुइन मुस्कान उभर आई। कुणाल बोला "मॉम डैड! अब आप लोग घर जाइए। अब तो कोई रास नहीं होनी है ना? मुझे सोना है।"


    मिस्टर रायचंद ने अपने बेटे के सर पर हाथ फेरा और बोले "कोई काम नहीं है बस तुम आराम करो और जल्दी से ठीक होकर सीधे शादी के मंडप में पहुंचो।"


    कुणाल को अपने पापा की यही बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई। यहां भी वो जबरदस्ती करने से बाज नहीं आ रहे थे। मिस्टर रायचंद और मिसेज रायचंद दोनों ही वहां से निकल गए और शिवि भी उनके पीछे वहां से जाने लगी तो कुणाल ने शिवि को रोकते हुए कहा "शिवि रुक जाओ!"


    शिवि के कदम वहीं रुक गए। उसने पलट कर कुणाल की तरफ देखा और बोली "क्या काम है?"


    कुणाल ने पूछा "अभी भी नाराज हो मुझसे?"


    शिवि को कुणाल का यह सवाल बहुत ही ज्यादा अटपटा लगा। उसने पूछा "क्या मैं इसका रीजन जान सकती हूं? मैं कौन होती हूं तुमसे नाराज होने वाली? मुझे नाराज होना है तो अपनी बहन से होना चाहिए, तुमसे नहीं। और मैं अपनी बहन से बहुत नाराज हूं इसीलिए इस वक्त उसकी हल्दी अटेंड करने की बजाय मैं यहां हूं।"


    कुणाल ने धीरे से पूछा "तो फिर मुझसे मिलने क्यों आई?"


    शिवि ने बिना सोचे जवाब दिया "क्योंकि यहां से जाने के बाद घर वाले मुझे तुम्हारे बारे में जरूर पूछेंगे। एटलिस्ट मेरे पास कुछ तो जवाब होगा उन्हें देने के लिए।"


    शिवि नजरे फेर कर वहां से जाने लगी लेकिन कुणाल ने उसकी कलाई पकड़ ली जिससे शिवि जाकर सीधे कुणाल पर गिरी। उसी वक्त दरवाजा खुला और किसी ने कुणाल के रूम में एंट्री मारी।

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