सुन मेरे हमसफर 198


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    कुहू को लेकर सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए अचानक ही आखिरी सीढ़ी पर अव्यांश के पैर नीचे पड़े फूल पर लड़खड़ा गए। निशि वही खड़ी थी। उसने बिना कुछ सोच पीछे से जाकर अव्यांश को पकड़ लिया। उसका एक हाथ अव्यांश के कमर पर थे और दूसरा हाथ अव्यांश के हाथ पर। जिस हाथ में अव्यांश ने घड़ी पहन रखा था, पता नहीं कैसे लेकिन उसे घड़ी का एक पीन निशी के हथेली में चुभ गया।


    निशी को दर्द का एहसास तो हुआ लेकिन इस वक्त वो सबके सामने चिल्लाना नहीं चाहती थी और ना ही वह अव्यांश का हाथ छोड़ सकती थी। दोनो को साथ में देख अवनी सोच में पड़ गई। 'क्या ये बात सच है कि इन दोनों की लड़ाई हुई है?' उन्होंने अपने बगल में खड़े सारांश की तरफ देखा जो दोनों को देखकर मुस्कुराए जा रहे थे। अवनी को लगा शायद अब दोनों की बीच की प्रॉब्लम सॉल्व हो गई है, जैसे सारांश को लगा।


     अपने हाथ पर निशि के हाथ का स्पर्श पाकर अव्यांश ने निशि की तरफ देखा। दोनों की आंखें मिला तो निशी थोड़ा सा झेंप गई। ऐसी कंडीशन में वह अव्यांश का हाथ छोड़ भी नहीं सकती थी इसलिए कुहू को नीचे उतारने तक उसने भी अव्यांश का हाथ पकड़े रखा। समर्थ अव्यांश और निशि तीनों ही बड़ी सावधानी से कुहू को लेकर उस जगह पहुंचे जहां हल्दी की रस्म होनी थी।


    कुहू गिरने वाली थी ये सोच कर ही सुहानी काया और बाकी सब की जान हलक में आ गई थी। सुहानी और काया की तो कुछ ज्यादा ही। काया बोली "हमारे यहां ऐसी रस्म क्यों है? आई मीन, सिंपल भी तो हो सकता है ना!"


    सुहानी बोली "पागल! ये कोई रास नहीं है। एक्चुअली दादी चाहती थी की कुहू दी की शादी में ऐसे रस्म हो। वो जैसे बंगाली सब में होता है ना, कुछ इस टाइप का। अब हम शादी के रिचुअल्स में तो चेंज नहीं कर सकते लेकिन हल्दी में थोड़ा सा तो कर ही सकते हैं। वैसे भी देख ना, कितना खूबसूरत लग रहा है!"


    सुहानी की बात पर रिएक्ट करते हुए काया बोली "हां! सुंदर तो लग रहा है और हर खूबसूरत चीज खतरनाक भी होती है इतना याद रखना।" 


   सुहानी इठलाते हुए बोली "कोई बात नहीं, हमें वह भी मंजूर है।" काया ने अजीब तरह से सुहानी की तरफ देखा जैसे वह कोई पागल हो।




     कुणाल के तरफ से हल्दी की कटोरी आ गई थी। निर्वाण खुद जाकर लेकर आया था। हल्दी के रस्म शुरू करने के लिए सबसे पहले डिमांड में थी, नानी जी! कंचन आगे आई और अपने उंगलियों में हल्दी लेकर कुहू को जैसे ही हल्दी लगाने को हुई, कुहू ने एकदम से पूछा "शिवि कहां है?"


    कंचन के हाथ हवा में ही रुक गए। कुहू के सवाल पर सबका ध्यान इस ओर गया। वाकई शिवि वहां थी नहीं। श्यामा सिद्धार्थ अवनी काव्या, सबकी नज़रें इधर-उधर ढूंढ रही थी लेकिन शिवि वहां होती तो आती ना!


    अव्यांश इधर-उधर देखते हुए बोला "आप सब लोग आए तो फिर शिवि दी घर पर रह गई क्या? वह नहीं आई आप लोगों के साथ?"


    सब ने एक दूसरे की तरफ देखा लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था। समर्थ ने शिवि का नंबर डायल किया और अव्यांश ने अस्पताल का। शिवि का नंबर लगा तो लेकिन घंटी जाने के बाद भी शिवि ने फोन नहीं उठाया। दूसरी तरफ अव्यांश ने जब हॉस्पिटल को कॉल किया तो वहां से जवाब मिला।


    फोन रखकर उसने कहा "शिवि दी अभी हॉस्पिटल में है और वह राउंड पर गई है। कुछ इमरजेंसी था इसलिए......."


   श्यामा शिवि पर नाराज होते हुए बोली "ये लड़की भी ना! यहां बहन की हल्दी है और इसे हॉस्पिटल सूझ रहा है। इस टाइम कौन सी इमरजेंसी आ गई थी?"


    सारांश कैसे शिवि की साइड ना लेते! वह बोले "भाभी! कल रात को ही गई होगी। सुबह से हमने उसे देखा ही नहीं है। जाहिर सी बात है बिना इमरजेंसी के वह जायेगी नहीं और अभी एक राउंड लगाकर वह वापस आ जाएगी। आप उसे गुस्सा मत हो, ये तो उसका काम है और उसका काम सबसे पहले आता है। हम सब तो है ही यहां पर। यहां के रस्म हम देख लेंगे। क्यों सही कहा ना मैंने कुहू?" 


   कुहू बस मुस्कुरा दी। उसे लग रहा था कि अपनी नाराजगी में शिवि उसकी शादी की रस्मों को अवॉयड कर रही है और करें भी क्यों ना! अगर कुहू जिद्दी थी तो शिवि भी कहां कम थी। एक-एक कर सबने को हल्दी लगाना शुरू किया। इस बीच निशि के मम्मी पापा कब वहां आ गए, किसी को पता ही नहीं चला।


    निशी की नजर जैसे ही अपनी मम्मी पापा पर पड़ी, वो भागते हुए जाकर उनके गले लग गई और थोड़ी नाराजगी से बोली "मम्मी पापा आप लोग यहां? एक बार भी नहीं बताया आप लोगों ने कि आप लोग आ रहे हो।" 


     मिश्रा जी भी उसी लहजे में बोले"तूने भी तो फोन करके नहीं पूछा था कि हम आ रहे हैं या नहीं। वह तो भगवान की कृपा है जो ऐसा बेटा मिला जो हमें भूलता नहीं।"


    "बेटा?" निशी ने सवालिया नजरों से अपने पापा को देखा तो रेनू जी बोली "अव्यांश की बात कर रहे हैं तेरे पापा। वो दामाद से कब बेटा बन गया पता ही नहीं चला। वाकई में तुझसे ज्यादा वह हमारी फिक्र करते हैं। हमें लेने नहीं आ सके लेकिन हमारे आने के सारे इंतजाम कर रखे थे वह भी आज या कल नहीं, बल्कि तीन-चार दिन पहले ही टिकट भिजवा दिया था और जिद्द पकड़ ली थी कि हमें आना ही आना है। हमें तो और पहले आने को बोल रहे थे लेकिन क्या है ना, थोड़ी मेरी ही तबीयत ठीक नहीं लग रही थी इसलिए।"


    निशी ने सुना तो उसे थोड़ा बुरा लगा। शायद अव्यांश वाकई इतना बुरा नहीं है जितना वह सोच रही थी। लेकिन वह सारे सबूत? क्या सोच रही है निशि! यह इंसान अपने आप को अच्छा दिखाने के लिए वह सब कुछ करता है जो कोई सोच भी नहीं सकता। वो तेरे दिमाग से खेल रहा है तेरे इमोशन के साथ खेल रहा है। तुझे उसके झांसे में नहीं आना है। संभाल खुद को।' निशि ने अव्यांश की तरफ देखा जो सबके साथ खड़ा था। 

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