सुन मेरे हमसफर 165

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  स्क्रीन पर फ्लैश हो रहे नाम को देखकर निशी ने सोचा, 'हो सकता है कुछ अर्जेंट हो। अव्यांश नही तो कम से कम मैं घर में किसी को तो बात ही सकती हूं। और किसी को नहीं तो अव्यांश डैड से कभी कुछ नहीं छुपाता। लेकिन इस हालत में मैं बाहर नहीं जा सकती। लगता है यह कॉल मुझे ही अटेंड करना पड़ेगा।' सोचते हुए निशि ने कॉल अटेंड किया।


   उसके कुछ भी बोलने से पहले ही दूसरी तरफ से आवाज आई "क्या अव्यांश सर, कब से फोन कर रहा हूं आपको! एक खुशखबरी देनी थी। एक छोटा सा सुराग मिला है, वह कहते हैं ना, तिनका बराबर। लेकिन यह तिनका भी बहुत बड़े-बड़े रंग दिखा सकता है। इस देवेश के खिलाफ तो हमें कुछ मिल ही नहीं रहा था। पूरा कैरेक्टर क्लीन। ऐसा कैसे हो सकता है कि बंदे ने कुछ भी गलत काम ना किया हो! देखा मैंने कहा था ना! अब आप देखना कैसा तील का पहाड़ बनाता हूं मैं। आप चिंता मत करिए, आपके यहां आने की जरूरत नहीं है। आगे का सब हम संभाल लेंगे और इस देवेश को तो हम ऐसा रेलेंगे, ऐसा रेलेंगे कि बेचारा जेल से छूटने के सपने देखना भूल जाएगा।"




    ड्राइवर को साथ लेने की बजाय अव्यांश ने खुद ड्राइव करना सही समझा और घर से निकलने को हुआ लेकिन मेन गेट के पास पहुंचकर उसे एकदम से एहसास हुआ कि उसका फोन कमरे में ही रह गया है। कॉल अटेंड करने के बाद इतनी जल्दी में तैयार हुआ कि फोन उठाना ही भूल गया। वह क्या कर रहा था और उसके दिमाग में क्या चल रहा था उसके साथ क्या हो रहा था, यह सब कुछ सिर्फ उसको और उसके डैड को पता था। किसी और को उसने भनक भी नहीं लगने दी थी। और इसको छुपाने के लिए सबसे जरूरी था, उसका फोन, जिसको वह हमेशा अपने साथ रखता था। लेकिन इस वक्त वह फोन उसके पास नहीं था।


    हड़बड़ाहट में अव्यांश गाड़ी ऑन छोड़कर घर के अंदर भागा। दरवाजा तक बंद नहीं कर पाया। वो भागते हुए घर के अंदर आया और सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाने लगा। श्यामा ने उसे आवाज लगाई "अंशु! क्या हो गया बेटा, ऐसे भाग क्यों रहे हो?"


  सारांश ने देखा तो बोले, "आराम से अंशु, चोट लग जाएगी!"


     लेकिन अव्यांश कहां यह सब सुनने वाला था! वह भागते हुए ऊपर कमरे में पहुंचा तो देखा निशी के हाथ में उसका फोन था। अव्यांश को न जाने क्यों हल्की घबराहट होने लगी थी। निशि ने जब अव्यांश को कमरे में आते देखा तो मुस्कुरा कर बोली "बड़ी जल्दी वापस आ गए तुम! जिस तरह गए थे, मुझे तो लगा था कि कल ही वापस आओगे।"


     अव्यांश ने थोड़ी राहत की सांस ली और जबरदस्ती मुस्कुरा कर बोला "नहीं! मैं बस अभी जा ही रहा था और पूरी रात नहीं, डिनर तक में आ जाऊंगा। बस कुछ देर की बात है।"


   निशी, अपने हाथ में पकड़ा फोन अव्यांश के हाथ में पकड़ाते हुए बोली "तुम्हारा फोन! कब से बजे जा रहा था। कोई इंस्पेक्टर का कॉल था।"


    अव्यांश ने डरते हुए पूछा "क्या...... क्या कहा उसने? तुम्हारी बात हुई उससे?"


    निशी मुंह बनाकर बोली "नहीं! मैं हेलो हेलो कर रही थी लेकिन दूसरी तरफ से कोई आवाज ही नहीं आई। शायद मुझे ही कुछ सुनाई नहीं दिया। वन में हो गया होगा।"


     अव्यांश ने राहत की सांस ली। उसे देख निशि अपनी भौंहे चढ़ा कर बोली "क्या बात है मित्तल साहब! लगता है जैसे चोरी पकडे जाने का डर था तुम्हें। इतनी राहत? कहीं कोई गर्लफ्रेंड तो नहीं थी जिसका नंबर तुमने इस नाम से सेव किया! वो क्या है ना, हर पति की फितरत होती है अपनी गर्लफ्रेंड का नाम ऐसे नाम से सेव करते हैं कि बीवी को शक ना हो।"


    अव्यांश मुस्कुरा दिया। उसने आगे बढ़कर निशि के माथे को चूमा और बोला "अगर कोई गर्लफ्रेंड हुई तो सबसे पहले तुम्हें बताऊंगा। वैसे तुम्हें नहीं लगता कि मुझ जैसे इंसान की अगर गर्लफ्रेंड होनी होती तो बहुत पहले हो चुकी होती। इसलिए तुम इस बारे में इतना मत सोचो। जो काम अब तक नहीं हुआ वह आगे कैसे होगा! अब तो मैं शादीशुदा हूं। बाल अभी भी गीले हैं तुम्हारे। इन्हें सुखा लो। मेरे पास टाइम नहीं है, मुझे निकलना होगा। इसलिए ये काम तुम्हें खुद करना होगा वरना सर्दी लग जाएगी। चलो मैं चलता हूं, बाय!"


    अव्यांश वहां से जाने के लिए मुंडा लेकिन दो-चार कदम चलकर रुका और उल्टे पैर वापस आकर निशी के होंठो को चूम कर बोला, "बस आज रात तक की आजादी दे रहा हूं तुम्हे।" इतना कहकर वो वापस भाग गया। निशी मुस्कुराई लेकिन तुरंत ही उसकी सारी मुस्कान गायब हो गई।




*****


   


    सुहानी और काया पहले ही गया के घर पहुंच चुके थे काव्या सबके लिए खाना बनाने को हुई लेकिन सुहानी उसे रोकते हुए बोली "मासी! आज आप रहने दो। हम खाना बाहर से मंगा लेते हैं। वैसे ही आप लोग इतना थके हुए होंगे। सच कहूं तो थके हुए तो हम भी है इसलिए आज किचन में कोई नहीं जाएगा, आज किचन की छुट्टी। खाना हम बाहर से मंगाएंगे।"


   काव्या ने मना करना चाहा लेकिन इस सब में कार्तिक भी शामिल थे। जब सारी मेजॉरिटी बाहर से खाना मांगने की तरफ थी तो फिर घर में कौन खाना बनाता। खाने का ऑर्डर देकर काया और सुहानी ऊपर कमरे में चले गए। शिविका ने भी उसी वक्त सबको ज्वाइन किया और बोली "हम सिर्फ तीन है। काश कुहू दी भी यहां होती और निशि भी यहां होती तो और ज्यादा मजा आता। नेत्रा दी का पता नहीं, कब तक वापस आएगी।"


    काया ने सुहानी की तरफ देखा और उससे बोली "पता नहीं, नेत्रा दी वापस आएंगी भी या नहीं। कितना अच्छा होता ना, अगर सब कुछ ठीक हो जाता। कुहू दी और नेत्रा दी के बीच भी वैसे ही रिश्ते होते हैं जैसे हमारे हैं।"


  शिविका ने काया के कंधे पर हाथ रखकर उसे दिलासा देते हुए कहा "तू चिंता मत कर, देखना एक दिन सब ठीक हो जाएगा।"


     शिविका ने यह कह तो दिया था लेकिन वह खुद भी इस बात को लेकर परेशान थी। पहले तो सिर्फ चित्रा को लेकर दोनों के बीच तकरार थी, अब तो इस सब में कुणाल भी शामिल हो गया था। दोनों के बीच सुलह होने की बजाय दरार और बढ़ती जा रही थी। उसी वक्त कुहू भी कमरे में दाखिल हुई तो शिविका ने हैरान होकर पूछा "आप इस वक्त! आप यहां क्या कर रहे हो?"

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