सुन मेरे हमसफर 139

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     अव्यांश निशि को लेकर बड़ी मुश्किल से ड्राइव कर रहा था। निशि बार-बार स्टीयरिंग व्हील पकड़ने की कोशिश कर रही थी क्योंकि आज उसे ड्राइव करना था। लेकिन इस हालत में अव्यांश कोई रिस्क नहीं ले सकता था। उसने निशि को डांटते हुए कहा "शांति से चुपचाप बैठो तुम! शांति से बैठो वरना मैं यहीं पर तुम्हें गाड़ी से बाहर फेंक दूंगा।"


    अव्यांश के गुस्से को देखकर निशि थोड़ा सा डर गई और पीछे सीट पर शांति से बैठ गई। अव्यांश ने मन ही मन खुद को कोसा, उस वक्त के लिए जब खुद उसने निशी को वह रेड वाइन की बोतल पकड़ाई थी। रेड वाइन ज्यादा पुरानी तो नहीं थी लेकिन फिर भी निशी को अच्छा खासा नशा हो गया था। ऐसी हालत में वह निशि को लेकर उसके घर नहीं जा सकता था। अव्यांश ने एक हाथ से मिश्रा जी को मैसेज कर दिया और गाड़ी हाईवे की तरफ मोड़ ली।


     निशी ने खिड़की से हाथ बाहर निकाला और हवाओं को महसूस करके बोली "हम कहां जा रहे हैं?"


    अव्यांश मुस्कुरा कर बोला "हम अपने घर जा रहे हैं।"


     निशि खुश होकर आगे आई। अव्यांश घबरा गया "क्या कर रही हो तुम? गिर जाओगी चोट लग जाएगी तुम्हें।"


     लेकिन निशि होश में होती तो कुछ समझती। वह लड़खड़ाते हुए जैसे तैसे गाड़ी के फ्रंट सीट पर आकर बैठ गई और बोली "हम दिल्ली जा रहे हैं, हमारे घर?"


     अव्यांश ने प्यार से उसके बाल खराब किया और बोला "नहीं, हम लोग फिलहाल अपने फार्म हाउस पर जा रहे हैं। यहां अगर पापा ने तुम्हें इस हालत में देख लिया तो मेरी बैंड बजा देंगे।"


    निशी खिलखिला कर हंस पड़ी। उसने अव्यांश की बांह पकड़ी और उस पर अपना सर लगाकर बोली "तुम्हारी हर कोई बैंड बजा कर जाता है, ऐसा क्यों?"


    अव्यांश कुछ जवाब देता उससे पहले उसका फोन बजा। सारांश का नंबर अपने फोन स्क्रीन पर फ्लैश होते देख उसने कॉल रिसीव किया और ब्लूटूथ अपने कान से लगाकर बोला "डैड! मैं अभी ड्राइव कर रहा हूं, आपसे थोड़ी देर के बाद बात करूं?"


     दूसरी तरफ से सारांश ने कुछ कहा तो अव्यांश की आंखें हैरानी से बड़ी हो गई। उसने पूछा "यह कब हुआ...............? मैं देखता हूं, आप चिंता मत कीजिए।" इतना कहकर उसने फोन काट दिया और ब्लूटूथ निकाल कर वापस डैशबोर्ड पर डाल दिया।


    निशी इतनी देर में अव्यांश की बांह पकड़कर वही सो चुकी थी। अव्यांश ने उसे कंफर्टेबल करने की कोशिश की लेकिन उसके लिए उसे गाड़ी रोकना पड़ता और यहां हाईवे पर गाड़ी वह रोक नहीं सकता था। उसने एक हाथ से निशी को संभाला और एक हाथ से ड्राइव करते हुए तकरीबन 1 घंटे बाद तुमकुर रोड के पास बनी अपने फार्म हाउस पर चला आया।


     अव्यांश ने एक बार निशि को जगाने की कोशिश की और उसके गाल पर थपकी देते हुए बोला "निशी! निशी!!" लेकिन निशी तो इतनी गहरी नींद में सो रही थी कि उसे जगाना इंपॉसिबल था। अव्यांश ने गहरी सांस ली और उसे गोद में उठाकर गाड़ी से बाहर निकला।


    केयरटेकर को उसने पहले ही बता दिया था कि आज वह आने वाला है इसलिए उसे घंटी बजाने की जरूरत नहीं पड़ी। अव्यांश निशी को गोद में लिए घर के अंदर दाखिल हुआ और उसे ले जाकर एक कमरे में आराम से सुला दिया। निशी ने नींद में ही अव्यांश की कलाई पकड़ ली और उसके हाथ को अपने सर के नीचे रख कर आराम से सो गई।


    अव्यांश उसके इस हरकत पर मुस्कुरा दिया। लेकिन उसे एक जरूरी काम था जिसे करना वह टाल नहीं सकता था। थोड़ी ही देर में जब निशी गहरी सांसे लेने लगी तब जाकर उसने धीरे से अपना हाथ निशी की पकड़ से छुड़ाया और उसके ऊपर कंबल डालकर वहां से निकल गया। जाते हुए उसने केयरटेकर से कहा "मैडम सो रही है, देखना कोई डिस्टर्ब ना करें।"




*****





कुहू के डिनर पार्टी खत्म हो चुकी थी। कुणाल की ऐसी कंडीशन थी तो सब के बीच कुहू का मन भी नहीं लग रहा था। सब के साथ खाने की बजाय उसने अपना और कुणाल का खाना लिया और कुणाल के पास चली गई थी। कुणाल ने अभी तक ऐसा कुछ रिएक्शन नहीं दिया था जिसकी वजह से उसे कुणाल पर किसी तरह का कोई शक हो लेकिन वह जानती थी, कुणाल के दिल में बहुत कुछ चल रहा है।


     घर जाने से पहले कार्तिक सिंघानिया कुणाल के पास आया और अकेले मौका पाकर उसके सर पर जोर से चपत लगाई। कुणाल चिल्लाया "क्या कर रहा है तू? तुझे दिख नहीं रहा मुझे चोट लगी है?"


     कार्तिक सिंघानिया नाराजगी से बोला "दिख रहा है मुझे। और जो मुझे दिख रहा है वह तुझे नहीं दिख रहा। तुझे कमर में चोट लगी है लेकिन कमर से तुझे क्या करना था? कुहू तेरे पास थी, अकेले में। उस वक्त तुझे यह बात उसे बता नहीं चाहिए थी? हमेशा किसी ना किसी बहाने से इस बात को टाल जाता है।"


     कुणाल नजर झुका कर बोला "ऐसा नहीं है यार! मैं खुद भी उसे सब कुछ सच-सच बताना चाहता हूं। उसे कोई उम्मीद नहीं देना चाहता लेकिन मैं क्या करूं? बहुत कोशिश की मैंने और जब भी मैं कोशिश करता हूं कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता है कि मेरे दिल की बात दिल में ही रह जाती है। आज भी मैं उसे बताने ही आया था लेकिन मेरी चोट को देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए समझ में नहीं आ रहा जो लड़की मुझसे इतना प्यार करती है मैं उसका दिल केसे तोड़ सकता हूं? कैसे कह दूं कि मैं उससे प्यार नहीं करता?"


     कार्तिक सिंघानिया नाराज होकर बोला "उसका दिल नहीं तोड़ सकता लेकिन जिंदगी भर उसका दिल दुखा सकता है। वह तुझ से प्यार करती है पागल! वो समझेगी तेरी बात को। इस मैटर को इतना मत खींच, कि बाद में इसे संभालना मुश्किल हो जाए। देख कुणाल! अभी भी वक्त है और मैं जानता हूं उसे। वह ओवररिएक्ट नहीं करेगी। माना थोड़ी परेशान होगी, थोड़ा तुझ पर चीखेगी चिल्लाएगी रोएगी लेकिन फिर संभल जाएगी, अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाएगी। लेकिन अगर तो शादी से ठीक पहले यह सब कुछ उसे पता चला तो उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। मेरी बात मान, कुछ भी करके कुहू को बता दे कि त उससे प्यार नहीं करता। तू उसकी बहन से प्यार करता है। दो परिवारों के बीच रिश्ते खराब होने से बच जाएंगे और दो बहनों के बीच का रिश्ता भी। उससे भी बड़ी बात, कुहू की जिंदगी खराब होने से बच जाएगी। और कुछ नहीं तो कम से कम अपनी दोस्ती की खातिर ही सही, अपनी दोस्त को बचा ले। जिंदगी बार-बार मौका नहीं देती। क्योंकि जितना ज्यादा कुहू हर्ट होगी उतना ही ज्यादा तेरा प्यार तुझसे दूर हो जाएगा। एक साथ तू कुहू और अपनी भी जिंदगी खराब कर रहा है। सोचना इस बारे में, मैं चलता हूं।" कार्तिक सिंघानिया ने कुणाल के कंधे पर हाथ रखा और उठ कर वहां से चला गया। कुहू दरवाजे की ओट में खड़ी सारी बात सुन रही थी। उसकी आंखों से आंसू की धारा फूट पड़ी।




*****





     अव्यांश वापस बेंगलुरु शहर आया और पुलिस स्टेशन पहुंचा। वहां जाकर उसने सबसे पहले इंस्पेक्टर से पूछा "अंश ढोलकिया, जो पिछले महीने अरेस्ट हुआ था, कहां है वह?"


     इंस्पेक्टर ने अव्यांश को सर से पांव तक देखा और फिर बोला "देखिए मिस्टर मित्तल! हम किसी को भी इतने टाइम तक जेल के अंदर नहीं डाल सकते। अब हम किसी को मुफ्त का खाना तो नहीं खिला सकते। कानूनन हमे उसे छोड़ना पड़ा।"


     अव्यांश इस्पेक्टर के सामने पड़ी कुर्सी पर जाकर आराम से बैठ गया और शांत लहजे में बोला "कब छोड़ा आपने उसे?"


    इंस्पेक्टर कुछ याद करते हुए बोला "आपने जब उसे अरेस्ट कराया था तो लगभग 1 हफ्ते 10 दिन जेल में रहा होगा। देखिए मिस्टर मित्तल! उसके पर फ्रॉड के छोटे-छोटे केस थे और कुछ मॉलेस्टेशन के चार्जेस। उसकी जमानत हो गई थी तो हमें उसे छोड़ना पड़ा।"


      अव्यांश ने सीधे से सवाल किया, "किसने दी उसकी जमानत, क्या मैं जान सकता हूं?"


     इंस्पेक्टर ने पिछले महीने के कुछ रिकॉर्ड निकालें और अपने रजिस्टर में देखते हुए बोला "यह किसी लावण्या ढोलकिया ने उसकी जमानत करवाई थी। अरे हां! यह तो उसकी मां थी। जब वो आई थी तो मैंने उनसे कहा भी था कि अपने बेटे को थोड़ा सा संस्कार सिखाएं ताकि दोबारा यहां आना ना पड़े। उन्होंने भी काफी प्यार से उससे बात की थी और कहा भी था कि आइंदा ऐसी कोई गलती नहीं होगी।"


     "लावण्या" यह नाम अव्यांश को थोड़ा जाना पहचाना लगा। 'क्या मैं कुछ गलत सोच रहा हूं? एक नाम के कई लोग होते हैं। क्या मुझे इस बारे में ज्यादा सोचना चाहिए? क्या पापा को बताना चाहिए?' अव्यांश कंफ्यूज हो गया।

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