सुन मेरे हमसफर 133

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   काया सबसे नजर बचाते हुए एक कोने में गई जहां थोड़ा अंधेरा सा था और किसी की नजर भी उस पर नहीं पड़ रही थी। उसने कॉल रिसीव किया और गुस्से में बोली "हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मुझे कॉल करने की?"


   दूसरी तरफ से ऋषभ हंसते हुए बोला "मुझे तो लगा था कल के बाद तुम मेरे बिना रह नहीं पाओगी।" कल की बात याद कर काया का गला सुख गया।


   ऋषभ कुछ सोचता हुआ आगे बोला अच्छा! तो तुम चाहती हो कि मैं इस वक्त तुम्हारे सामने आ जाऊ? लगता है कुछ ज्यादा ही मिस कर रही हो मुझे।"


     काया नाराजगी जताते हुए बोली "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। मैं तुम्हें कोई मिस नहीं कर रही।"


    ऋषभ हंसते हुए बोला "अच्छा! ऐसा लग तो नहीं रहा। मतलब, तुम मुझे उकसा रही हो कि मैं तुम्हारे सामने आ जाऊं, है ना? वैसे आज तुम और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही हो।"


     काया घबराकर इधर-उधर देखते हुए बोली "तुम देख रहे हो मुझे?"


     ऋषभ अब शांत होकर बोला "बिल्कुल! मेरी नजर तुम पर से एक पल को भी नहीं हट रही क्या करूं, तुम ही बताओ।"


    अब काया थोड़ा सा घबरा गई। उसने इधर-उधर देखते हुए पूछा "तुम इस पार्टी में हो? कहां हो तुम और तुम मेरे घर पर क्या कर रहे हो?"


     ऋषभ शरारत से बोला "घर पर क्या कर रहा हूं, मतलब? यह सवाल तो तुमने तब नहीं पूछा था जब मैं तुम्हारे कमरे में आया था। लगता है मेरे सामने होने पर तुम अपना होश खो देती हो। अच्छा है। आग तुम्हारे दिल में भी है। एक काम करो, अपने कमरे में आओ।"


     काया पैर पटकते हुए बोली "मैं कहीं नहीं जाने वाली। और तुम मेरे कमरे में क्या कर रहे हो? निकलो वहां से, अभी के अभी वरना मैं शोर मचाऊंगी और सब को बुला लूंगी।"


      इस बार ऋषभ खुद को हंसने से रोक नहीं पाया और हंसते हुए बोला "अच्छा! किसको क्या बताओगी तुम? और किस को धमकी दे रही हो तुम, मुझे? बुला लो सबको और बता दो सबको। मैं भी बता दूंगा हमारे बारे में। कल होली के दिन अपने प्यार में रंग दिया था तुम्हें। उस वक्त तुम कुछ नहीं बोली। उस वक्त आवाज लगाकर सब को बुलाना चाहिए था। तब क्यों चुप थी, जैसे मेरा इंतजार कर रही हो?"


    काया से कुछ कहते नहीं बना उसने अपनी आंखें बंद की तो कल का पूरा सीन उसके आंखों के सामने घूम गया, जब ऋषभ ने उसे गुलाल पूरा रंग दिया था और काया चाह कर भी उसे रोक ना पाई थी। काया ने मन ही मन खुद को डांटा 'तू क्यों उसके सामने कमजोर पड़ जा रही है? तुझे उसके सामने हारना नहीं है। एक नंबर का लफंगा है वो, तेरा दिल तोड़ कर चला जाएगा।' ऋषभ उसके कुछ कहने का इंतजार कर रहा था लेकिन काया ने फोन काट दिया और ऋषभ दोबारा से कॉल ना कर पाए इसलिए उसने फोन स्विच ऑफ कर दिया।



*****





    अव्यांश निशी को लेकर पार्टी वेन्यू पहुंचा। यह वही जगह थी जहां अव्यांश निशी से पहली बार मिला था। यहां आते हुए पुरानी यादें ताजा हो गई। लेकिन निशी के चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे जिसे देख अव्यांश को खुशी होती। मतलब साफ था, निशी को कुछ याद नहीं था।


     अव्यांश ने अपनी सीट बेल्ट खोली और बाहर निकलने को हुआ लेकिन निशी वही चुपचाप बैठी रही। उसे अजीब सी घबराहट हो रही थी। अव्यांश ने उसे चुपचाप बैठे देखा तो उसका हाथ पकड़ कर बोला "क्या हुआ, क्या सोच रही हो? अगर तुम्हें यह लग रहा है कि पब में तुम साड़ी पहन कर जा रही हो तो कोई तुम्हें एंट्री नहीं देगा तो तुम गलत सोच रही हो। तुम मिसेज मित्तल हो! और तुम्हें रोकने की हिम्मत किसी में नहीं है, इस बात को हमेशा याद रखना तुम। अब चलो।" अव्यांश मुस्कुराया और बाहर निकलने को हुआ लेकिन निशि के चेहरे पर जो घबराहट थी वह अभी भी काम नहीं हुई थी।


    निशि ने अव्यांश का हाथ पकड़ लिया और उसे रोकते हुए बोली "अव्यांश! क्या हम यहां से कहीं और चले? मुझे इस पार्टी में नहीं जाना।"


    अव्यांश ने निशि को काफी ध्यान से देखा फिर उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपने गोद में बैठा लिया और उसकी आंखों में देखते हुए बोला "किस बात से इतनी डरी हुई हो तुम, वह भी मेरे रहते? इसका मतलब मैं एक अच्छा हस्बैंड नहीं बन पाया। भरोसा नहीं है तुम्हे मुझ पर।"


    निशी ने अपनी नजर झुका ली और कहा "ऐसा नहीं है, तुम गलत समझ रहे हो।"


    "तो समझाओ मुझे!!"


     "वह क्या है ना.…..… अव्यांश.......… वो अंदर पार्टी में...... अंदर पार्टी में.........."से अव्यांश उसकी बातों का कुछ मतलब समझते हुए बोला "अंदर पार्टी में कोई ऐसा इंसान है जिसे तुम नहीं मिलना चाहती।"


     निशी नजरे झुकाए ही अपनी गर्दन हिला दी। यह बात वह चाह कर भी नहीं कह पा रही थी। अव्यांश ने उसके चेहरे को थामा और अपने करीब खींचकर बोला "कौन है वह? क्या देवेश.........!"


    निशी ने नजर उठाकर अव्यांश की आंखों में देखा फिर नजरें नीची कर ली और बोली "इतना आसान नहीं होता है इग्नोर करना। भले ही अब मेरे दिल में उसके लिए कोई फीलिंग नहीं है लेकिन एकदम से यू देख कर अनदेखा करना और अजनबी बन जाना इंपॉसिबल होता है। मैं इसीलिए यहां नहीं आना चाहती थी।"


    निशी की बात पूरी होने से पहले ही अव्यांश ने निशी की गर्दन पर अपने होंठ रखें और वहां लव बाइट दे दिया। निशी की हल्की सी चीख निकल गई। उसने अव्यांश को खुद से दूर किया और बोली "ये क्या कर रहे हो तुम? वह भी इस जगह पर! एटलीस्ट यह पब्लिक प्लेस है, यहां तो ऐसी कोई हरकत मत करो!"


    अव्यांश ने निशी के गर्दन पर पड़े निशान की तरफ देखा और बोला "तुमसे किसने कहा उसे अवॉइड करने को? बस मुझे अटेंशन दो, इससे ज्यादा तुम्हें कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। तुम बस मेरे साथ रहो फिर देखो मैं कैसे सबको उसकी औकात दिखाता हूं।"


     निशी थोड़ा घबराते हुए बोली "क्या हम कहीं और चले? कहीं लॉन्ग ड्राइव पर, सिर्फ तुम और मैं!"


     अव्यांश ने उसका सर अपने कंधे पर रखा और प्यार से सहलाते हुए बोला "नहीं। मैंने तुम्हारी उस दोस्त को प्रॉमिस किया है कि हम दोनों आज की पार्टी में शामिल हो रहे हैं तो हम ऐसे इस पार्टी को छोड़ कर जा नहीं सकते। कुछ देर के लिए तो हमें यहां जाना ही होगा। चलो मेरे साथ। मैंने कहा था ना, हमेशा किसी को अवॉइड करना सही नहीं होता है। कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनको मुंहतोड़ जवाब ना मिले तो उन्हें चैन नहीं मिलता।" 


   निशी के कुछ कहने से पहले ही अव्यांश ने एक पैर से अपनी तरफ का दरवाजा खोला और उसे अपनी गोद में उठाए हुए बाहर निकला। बाहर खड़े सबकी नजर उन दोनों पति पत्नी पर गई। लेकिन अव्यांश को इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ना था।




*****





  सभी अपनी अपनी धुन में थे लेकिन समर्थ चुपचाप एक तरफ बैठा इधर-उधर सबको इंजॉय करते हुए देख रहा था। काया उसके लिए पनीर के पकोड़े उठाकर लाई और उसके सामने सर्व करते हुए बोली "भाई! आप क्यों एक साइड में बैठे हुए हो? सब लोग वहां इंजॉय कर रहे हैं और आप हैं कि यहां चुपचाप एक कोने में बैठे हो। ऐसा लग ही नहीं रहा है कि आप यहां पर हो। इससे अच्छा तो आप आते ही नहीं।"


     समर्थ अपनी बहन की नौटंकी देख कर बोला "ठीक है। अगर तू कह रही है तो फिर मैं यहां से चला जाता हूं।"


    काया नाराज होकर बोली "हां हां! आप क्यों रहोगे हमारे साथ! आपको तो भाभी मिल गई है, आप हमारे थोड़ी रहे।"


     समर्थ तिरछी नजरों से उसकी तरफ देख कर बोला "हो गया तेरा? अब बता, कुछ कहने आई है?"


    काया उसके बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई और बोली "नहीं। सब अपने में बिजी है, इसलिए मैं आपके पास चली आई। आप खाली बैठे बोर हो रहे थे, तो मैंने सोचा थोड़ा सा मैं भी आपके साथ बोर हो जाऊं।"


     इतने में सुहानी भी आकर समर्थ के दूसरी तरफ बैठ गई और बोली "तूने ही कहा ना कि भाभी मिल गई है तो भाई पराए हो गए। तो तू क्यों इनके साथ बोर हो रही है? ये काम किसी और का है। अपना दिमाग क्यों खिला रही है? तू चल मेरे साथ।"


    सुहानी ने काया का हाथ पकड़ा और वहां से ले जाने लगे तो काया बोली "मुझे नहीं जाना कहीं। भाई को देख ले, वह अकेले बोर हो रहे हैं।"


     सुहानी ने बिना समर्थ की तरफ देखे कहा, "भाई के लिए अलग से इंतजाम है, तू परेशान मत हो। वह तेरे या मेरे होने से इंटरटेन नहीं होने वाले। तू चल मेरे साथ।" सुहानी काया को खींचते हुए वहां से लेकर गई। 



आखिर सुहानी ने समर्थ के लिए कौनसा इंतजाम कर रखा है!!!

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