सुन मेरे हमसफर 126

 126 





     रस्तोगी जी ने अपनी पत्नी को डांट लगाई। "आप किचन से बाहर कैसे आईं? अंदर जाओ और सब के लिए चाय बनाकर लेकर आओ। नाश्ता कहां है?"


   बबली जी अपने पति के इस व्यवहार से नाराज हो गई और पैर पटकते हुए वापस किचन में चली गई। रस्तोगी जी बोले "बबली जी के बातों का बुरा मत मानिए। उनका दिमाग थोड़ा गर्म रहता है।"


   अंशु बोला "तो उनका दिमाग शांत रखने का काम आता है और यह काम आपको बहुत पहले करना चाहिए था। खैर अभी भी कुछ देर नहीं हुई। वैसे भी ये आप दोनों पति पत्नी के बीच का मामला है, इससे मुझे कोई लेना देना नहीं है। मुझे जिस चीज से लेना देना है वह है आपका यह घर।"


    रस्तोगी जी हाथ जोड़कर बोले "लेकिन मेरे पास बस यह घर है। अगर इसे दे दूंगा तो फिर कहां रहूंगा? आप ऐसे नहीं कर सकते!"


   अंशु मुस्कुरा कर बोला "आपको पता है, अगर इस केस में आप फंस गए तो आप को जमानत के लिए जितनी रकम चुकानी पड़ेगी, उसमें ना सिर्फ यह घर बल्कि आपके बीवी के सारे जेवर, सारे प्रॉपर्टी, इक्विटी चले जाएंगे। फिर भी आप के जमानत के पैसे इकट्ठा नहीं हो पाएंगे। अब ये आप पर है। सौदा तो महंगा ही होता है। अब यह आप चुनिए, कम महंगा या ज्यादा महंगा। क्योंकि मेरे पास कोई सस्ती डील नहीं होती। अगर आप तैयार है तो मैं कल के कल आप दोनों के इंडिया से बाहर जाने का इंतजाम कर दूंगा। अगर आप मेरी बात मानते हैं तो। अगर नहीं मानते तो ऐश करिएगा ससुराल में।" 


    ससुराल से साफ मत था, जेल की हवा। बबली जी की आवाज रस्तोगी जी के कानों में पड़ी "क्या सोच रहे हैं आप? ऐसा क्या हो गया जो आपने हमें बेघर कर दिया?"


    रस्तोगी जी परेशान होकर बोले "आप चुप रहो! आपको क्या लगता है, ये मेरे खून पसीने की कमाई थी, ऐसे ही मैं किसी को भी दे दूंगा? वो भी ऐसे भिखारियों को! मुझे कितनी तकलीफ हो रही है यह सिर्फ मैं जानता हूं। बस एक बार एक बार यह केस बंद जाए, उसके बाद बताऊंगा मैं इन लोगों को।"



*****






    निशी बेबस होकर बोली "तुम समझ नहीं रहे हो अव्यांश! फूफा जी को मैं बहुत अच्छे से जानती हूं। वह कभी कोई काम बिना फायदे के नहीं कर सकते। अगर कोई काम उन्होंने सामने से आकर किया है तो इसके पीछे उनका बहुत बड़ा मकसद होगा। पैसों का लालची है वह आदमी। इंसान कहलाने लायक नहीं है। ना जाने कितनों का घर उजाड़ा है उसने और अब हमारे घर पर उसकी नजर पड़ी है। वरना वह कभी हमारे घर ये सब करने नहीं आता। मेरी शादी में भी जब वो यहां आए थे तब उनकी नजर इस घर पर थी। और इस घर को ऐसे घूर घूर कर देख रहे थे, जैसे वह अभी के अभी इस घर को लेकर चले जाएंगे।"


    अव्यांश ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से थामा और बोला "ऐसा कुछ नहीं होगा। मैं ऐसा कुछ नहीं होने दूंगा।"


     लेकिन निशी अपने ही धुन में बोले जा रही थी "मैं यहां थी तो मुझे यहां के हालातों के बारे में पता रहता था। लेकिन जब मैं नहीं रहती हूं, यहां से बहुत बहुत दूर चली गई हूं तो मुझे यहां के हालात का पता कैसे चलेगा? मैं वहां अपनी दुनिया में खुश हूं और यहां की तकलीफो से अनजान हूं। अगर मेरे पीठ पीछे मेरे मां पापा के साथ कुछ गलत हो गया तो मुझे कैसे पता चलेगा? मैं तो आ ही नहीं पाऊंगी उनकी हेल्प के लिए।"


     अव्यांश ने निशी के चेहरे पर दबाव बढ़ाया और अपनी तरफ खींच कर बोला "सुन रही हो तुम, कुछ कह रहा हूं मैं!!! अकेली नहीं हो तुम, मैं हूं तुम्हारे साथ। तुम्हें क्या लगता है, ये परिवार सिर्फ तुम्हारा है? नहीं मिसेज निशिका अव्यांश मित्तल! यह घर अब मेरा भी है, ये परिवार अब मेरा भी है, और मेरे रहते मेरे परिवार को कोई आंख उठा कर देख नहीं सकता। उसकी आंखें निकाल लूंगा मैं। रही बात तुम्हारे फूफा जी की तो अगर उन्होंने कुछ करने की कोशिश भी की तो उनको उनके सोचने की भी सजा जरूर मिलेगी।"


      निशी अव्यांश की आंखों में देखी जा रही थी। जो प्यार, जो अपनापन उसे अव्यांश की आंखों में नजर आ रहा था, उसे देख निशी की आंखें भीग गई। ना जाने किस सम्मोहन में बंधी उसने अव्यांश के चेहरे को अपनी एक हाथ से धामा उसके होठों को अपने होठों से छू लिया।


     अव्यांश को इसकी उम्मीद नहीं थी। लेकिन जब वास्तविकता में वह लौटा तो उसने भी निशी को कसकर अपनी बाहों में भर लिया। दोनों इस लम्हे में खो गए।




*****



     मिश्रा जी रेनू जी को लेकर अपने कमरे में गए और बोले "मेरे तो समझ नहीं आ रहा क्या हो रहा है। अचानक से यह सब...........! किसी को भी शक हो सकता है।"


     रेनू जी भी इस बात को बखूबी समझ रही थी। वह बोली "अभी कल की बात है, उन्होंने हमें घर खाली करने को कहा था। एक दिन में ऐसा क्या हो गया जो आज उन्होंने यहां आकर अपना घर हमारी बेटी का नाम कर दिया? उससे भी बड़ी बात, इस घर के बारे में उन्होंने एक शब्द नहीं कहा। ना ही इस घर के कागजातों के बारे में। मेरी भी समझ में कुछ नहीं आ रहा। पता नहीं हमारी किस्मत में क्या लिखा है?"


     अपनी पत्नी को परेशान देख मिश्रा जी ने उनकी परेशानी कम करने की कोशिश की और बोले "आप चिंता मत कीजिए, जो भी होगा अच्छा होगा। हमें अपने भगवान पर पूरा भरोसा है, वो सब ठीक कर देंगे।" रेनू जी इस बात पर सहमति जताई। लेकिन उन दोनों के मन में बहुत ज्यादा डर बैठा हुआ था।





*****





      अव्यांश का फोन बजा तब जाकर दोनों एक दूसरे से अलग हुए। निशी उसे देख शर्मिंदा हो रही थी कि आखिर कैसे उसने अव्यांश को..........! वो खुद से नहीं मिला पा रही थी।


      निशी को ऐसे कंफर्टेबल होते देख अव्यांश ने अपना फोन अपने हाथ में लिया और उसे कमरे में छोड़कर बाहर निकल गया। जो इंसान उसे कॉल कर रहा था, उससे बात करने के लिए अव्यांश को घर से बाहर निकलना था। क्योंकि घर में रेनू जी और मिश्रा जी मौजूद थे। उनके सामने बात नहीं कर सकता था। उसने दरवाजा खोला और बाहर निकल गया।


     कॉल रिसीव करते ही दूसरी तरफ से आवाज आई "बॉस! आगे क्या करना है?"


     अव्यांश बोला, "सब कुछ वैसा ही होगा जैसे मैंने प्लान किया था। आज के आज वो घर खाली हो जाना चाहिए। अभी तक वो लोग घर नहीं पहुंचे होंगे। इससे पहले की दोनो उस घर में वापस जाए, उनके स्वागत के लिए लोग तैयार होने चाहिए। अब वह घर मेरी बीवी का है और मेरी बीवी के प्रॉपर्टी पर मैं किसी को कदम रखने नहीं दूंगा।"


    अव्यांश ने सब कुछ पहले से ही प्लान कर रखा था और प्रॉपर्टी के पेपर तैयार रखवाए थे ताकि कोई प्रॉब्लम ना हो।मिस्टर रस्तोगी इस सब में बड़े आराम से फंसते चले गए। अपनी सारी प्लानिंग को सक्सेसफुल होता देख अव्यांश के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। और अभी जो कमरे में हुआ उसे याद कर अव्यांश की मुस्कान और बड़ी हो गई। घर के अंदर जाने के लिए जैसे ही अव्यांश पलटा, उसे अपने सामने मिश्रा जी खड़े नजर आए।





*****





     दूसरी तरफ मिस्टर रस्तोगी की गाड़ी जैसे ही इंदिरानगर के उनके घर के बाहर रुकी तो उन्होंने देखा, वहां पर पहले से दो-तीन सरकारी गाड़ियां आकर रुकी हुई थी, जिसमें एक पुलिस की जीप भी शामिल थी। रस्तोगी जी पहले तो घबरा गए कि यह लोग उन्हें रेस्ट करने आए हैं। लेकिन फिर उन्हें याद आया कि अभी तो एसआईटी की इंक्वायरी शुरू ही हुई हुई है, तो फिर इतनी जल्दी उन्हें अरेस्ट कैसे किया जा सकता है? सबूत मिलने में वक्त लगेगा और अव्यांश ने कल ही उन लोगों को यहां से बाहर करने का वादा किया है।


     बबली जी ने रस्तोगी जी का हाथ पकड़ लिया और बोली "यह लोग हमारे घर के बाहर क्या कर रहे हैं? और यह पुलिस की जीप! कुछ हुआ है क्या?"


     रस्तोगी जी ने बबली जी को आश्वासन दिया और चिंता ना करने को कह कर गाड़ी से बाहर निकले। बबली जी भी गाड़ी की दूसरी तरफ से निकली और जल्दी से अपने पति के पास आकर खड़ी हो गई। घर के दरवाजे पर खड़े इंस्पेक्टर की नजर जैसा ही रस्तोगी जी पर पड़ी तो वह इंस्पेक्टर मुस्कुराते हुए बोले "आइए रस्तोगी साहब! आप ही का इंतजार कर रहे थे। आपको सरकारी दामाद बनाना है और अच्छे से खातिरदारी करना है।"


      रस्तोगी जी कुछ समझ पाते, उससे पहले ही इंस्पेक्टर ने उन्हें हथकड़ी लगाई और अपने साथ खींचकर लेकर गए। पीछे-पीछे बबली जी भी गई। उनकी आंखों से आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। रस्तोगी जी अपना बचाव करने लगे लगे किसी ने उनकी एक न सुनी।

टिप्पणियाँ

  1. Wahhh.. Kya baat hai.. Aaj kl Sare patrs me avyansh chaya hua hai.. Pr mja aa rha hai avyansh ka ye roop dekh kr.. Aur nishi ne jo aaj kiya vo to too good tha😂🤣

    जवाब देंहटाएं
  2. Nice part...Nishi v shayad thoda samjhne lagi he avyansh ko .
    Mishra ji ko shayad Shaq ho gaya he,avyansh k upar...

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274