सुन मेरे हमसफर 125

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     निशी हैरानी से अपने फूफा जी को आंखे फाड़े देखे जा रही थी। जो इंसान कभी उन लोगों को अपने से बात करने के लायक नहीं समझता था, वह अपना घर निशी के नाम कर देगा, वह भी शादी का तोहफा समझकर, यह तो यकीन करने वाली बात ही नहीं थी।


     निशी ने फाइल बंद की और उनके सामने रखें टेबल पर जोर से पटक कर बोली "अपना तमाशा बंद कीजिए और निकल जाइए यहां से!"


     मिश्रा जी और रेनू जी घबरा गए कि कहीं रस्तोगी जी उनके घर के गिरवी होने वाली बात निशि को ना बता दे। मिश्रा जी ने निशी से कहा "निशी बेटा! तुम अपने कमरे में जाओ।"


     लेकिन निशी कहां सुनने वाली थी! उसने कहा "पापा! आप इन के सामने झुक सकते हैं मैं नहीं। और मैं पूछती हूं, इनके सामने झुकना ही क्यों है? इनकी नियत और इनकी सोच किस दर्जे तक गिरी हुई है, यह मैं बहुत अच्छे से जानती हूं। आज अचानक अपनी जमीन मेरे नाम कर रहे हैं? इसके पीछे जरूर इनकी घटिया सोच ही होगी। क्योंकि बिना फायदे के ये कोई काम करते नहीं है।"


     रस्तोगी जी हाथ जोड़कर बोले, "ऐसा नहीं है बेटा! तुम मुझे गलत समझ रही हो।"


     निशी ऊंची आवाज़ में बोली "बिल्कुल सही समझ रही हूं मैं आपको। मैं ही नहीं, इनफेक्ट जो लोग भी आपको जानते हैं वह आपको गलत समझ ही नहीं सकते। एक फ्रॉड इंसान जो ना जाने कितने करप्शन में फंसा हुआ है,, यह जरूर उसी करप्शन से बचने का आपका कोई तरीका होगा, जिसमें आप हमें फंसाना चाह रहे हैं।"


     मिश्रा जी ने रेनू जी से इशारे में कुछ कहा तो रेनू जी निशि का हाथ पकड़ कर बोली "निशी! तू चल मेरे साथ।"


   निशी ने बात करनी चाही लेकिन रेनू जी ने उसकी एक न सुनी और खींचकर जबरदस्ती कमरे में ले गई और बाहर से बंद कर दिया। निशी अंदर से चिल्लाती रह गई लेकिन किसी ने उसकी एक नहीं सुनी।


     रस्तोगी जी बोले "यह सब मेरी गलती है। मैंने ही इतने गलत काम किए हैं कि अगर मैं कुछ अच्छा करना भी चाहूं तो भी किसी को यकीन नहीं होगा। सबको मेरी नियत पर शक होगा ही। निशी ने जो कहा वह कुछ गलत नहीं था। लेकिन अपनी गलती सुधारने का मेरे पास यही एक मौका है। इसलिए मैं चला आया। जाने से पहले सब का हिसाब पूरा कर देना चाहता हूं। मेरे पास यहां कुछ नहीं होगा।"


    मिश्रा जी अभी भी यकीन नहीं कर रहे थे। उन्होंने पूछा "भाई साहब! अगर आप किसी तकलीफ में है तो बताइए।"


    रस्तोगी जी को बहुत बुरा लगा। उन्होंने हाथ जोड़कर मिश्रा जी से माफी मांगी और बोले "अपने कर्म का फल हमें इसी जन्म में भुगतने पड़ते हैं। आपने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा इसलिए आपके साथ कभी कुछ बुरा नहीं होगा। मैंने बहुतो के साथ बुरा किया है। मेरे साथ बुरा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। मैं चलता हूं, अपना ख्याल रखिए।"


     रस्तोगी जी वहां से जाने लगे तो रेनू जी बोली "भाई साहब! आप दामाद है इस घर के। कम से कम चाय पीकर तो जाइए!"


    रस्तोगी जी मुस्कुरा कर बोले "आपका बड़प्पन है भाभी जी, जो आप मुझे चाय के लिए पूछ रही है। वरना मैं तो इतना हक भी नहीं रखता। फिर भी अगर आप चाह रही हैं तो आप के सम्मान के लिए मैं एक गिलास पानी जरूर पी लूंगा।"


     रेनू जी जल्दी से किचन में गई और एक गिलास में पानी लेकर आई। रस्तोगी जी पानी पीकर तुरंत वहां से निकल गए।


    उनके जाने के बाद अव्यांश अनजान बनते हुए बोला "पापा क्या हुआ है? आई मीन ये तो निशी के फूफा जी है ना? तो फिर निशि इस तरह बिहेव क्यों कर रही थी? इनसे कोई प्रॉब्लम है क्या? कुछ बात हुई है?"


    मिश्रा जी को समझ नहीं आया वह कैसे इस बारे में अव्यांश को समझाए। उन्होंने कहा "बात बहुत पुरानी है बेटा! बताना पॉसिबल नहीं हो पाएगा। बस यूं समझ लो, ऊपर ओहदे पर बैठा इंसान अपने से नीचे सबको छोटा ही समझता है। मैं तो अभी भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर इन में इतना परिवर्तन हुआ कैसे?"


    रेनू जी भी परेशान होकर बोली "कहीं इनकी कोई चाल तो नहीं? यह सब करके कहीं वह हमें फसाना तो नहीं चाहते?"


    अव्यांश उन दोनों का डर दूर करता हुआ बोला "आप लोग चिंता मत कीजिए। अपनी प्रॉपर्टी उन्होंने निशी के नाम की है और उसके सपोर्ट में पूरा मित्तल परिवार खड़ा है। अगर आप लोगों के नाम भी करते तब भी उनके गलत मनसूबे कभी पूरे नहीं होते। यह मत भूलिए कि आपका ये बेटा सब कुछ संभाल सकता है। ऐसे 50 लोगों को अकेले हैंडल कर सकता हूं मैं। हां अगर 50 से ज्यादा हुए तो डैड हैं, बड़े पापा हैं, भाई हैं। वह सब मिलकर तो पूरी दुनिया को संभाल लेंगे। आप चिंता मत कीजिए।" रेनू जी मुस्कुराई लेकिन मिश्रा जी ने शक भरी नजरों से अव्यांश की तरफ देखा। अव्यांश मुस्कुराकर जाकर कमरे का दरवाजा खोल दिया।


     निशी पैर पटकती हुई बाहर निकली और बोली "आपको उस इंसान को ऐसे जाने नहीं देना चाहिए था। उनके घर जाने पर वो लोग किस तरह हमारे साथ बिहेव करते थे वो भूल गए आप लोग?"


     अव्यांश ने उसे पीछे कंधे से पकड़ा और खींचकर कमरे में लेकर गया। निशी उस पर भी चिल्लाई तो अव्यांश बोला "तुम क्यों चिंता कर रही हो? हो सकता है उन्हें अचानक से कुछ एहसास हुआ हो और उन्होंने अपने सारे बुरे काम छोड़ने का फैसला कर लिया हो! या फिर होलिका दहन में उन्होंने अपने अंदर की बुराई जला दी हो। होने को कुछ भी हो सकता है। कौन सा इंसान कब बदल जाए ये कोई नहीं कह सकता। इसलिए अब तुम भी शांत हो जाओ। वो जा चुके हैं और यह मैटर यही पर क्लोज होता है।"




    रस्तोगी जी पार्किंग एरिया में आए और जल्दी से अपनी गाड़ी में बैठ गए। गाड़ी के अंदर उनकी पत्नी यानी बबली जी बैठी हुई थी। बबली जी ने नाराजगी से उनकी तरफ देखा और बोली "अब हम लोग कहां जाएंगे? कहां रहेंगे? इस घर को हथियाने के चक्कर में हमने अपना घर खो दिया। आखिर क्यों? ऐसा क्या कह दिया उस आदमी ने जो आप अपना घर मुफ्त में इन लोगों को देने के लिए तैयार हो गए?"


     रस्तोगी जी क्या ही कहते! जो कुछ भी हुआ उसकी वजह से उनके माथे पर पसीने आ गए थे। जब अव्यांश उनके घर आया था, तब बबली जी तो किचन में चली गई थी लेकिन उनको अपने सामने बैठाकर अव्यांश ने कहा था "काफी आलीशान घर बनवाया है आपने। यहां की जमीन तो सोने के भाव में बिक रही है ना? और आप एक सरकारी कर्मचारी होने के बाद भी इतनी महंगी प्रॉपर्टी अफोर्ड कर पाए? आपका बेटा भी यहां नहीं रहता, इंडिया से बाहर रहता है। उसकी पढ़ाई का खर्चा कुछ काम तो नहीं है। इतना कुछ कैसे मैनेज कर लेते है आप, वो भी इतनी सी सैलरी में? इतनी सैलरी तो हम अपने मैनेजर को भी ना दे जितनी आपकी है।"


    रस्तोगी जी अव्यांश के आगे झुकना नहीं चाहते थे। उन्होंने रौब से कहा, "कहना क्या चाहते हो, साफ साफ बताओ।"


   अव्यांश चारो तरफ देखता हुआ बोला, "आपको नहीं लगता, यह जमीन जहां आप खड़े हैं और यह घर की छत, जिसके नीचे आप खड़े हैं, उसके बीच में बहुत सी बददुआएं है! मैने सुना यहां एक अंदर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग धराशाई हो गई है? उसको पास आपने ही करवाया था ना? ये जो अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग अभी जहां बन रही थी, वह जमीन ऐसी नहीं थी जिस पर बिल्डिंग बनाई जा सके। फिर भी आपने उसे पास करवा दिया? सिग्नेचर तो आप ही के थे उन कागजों पर तो जाहिर सी बात है रिश्वत लेकर ही आपने यह किया होगा।


   रस्तोगी जी अब घबराने लगे थे। बात तो बिल्कुल सच थी। वो कहते है ना, चोर की दाढ़ी में तिनका! अव्यांश ने उसे तिनके को अच्छे से पकड़ लिया था। रस्तोगी जी बोले, "इसका क्या मतलब है? तुम मुझ पर करप्शन का ब्लेम लगा रहे हो? सबूत क्या है तुम्हारे पास?"


   "सबूत की बात ही मत करिए फूफा जी! अगर ईमानदारी से करते तो कभी उस प्रॉजेक्ट पर साइन नहीं करते। सबूत चाहिए आपको? मिल जायेगा, लेकिन आपको नही बल्कि एसआईटी को।"


     रस्तोगी जी अपना डर छुपाकर बोले "एसआईटी? ऐसा कुछ नहीं होगा। कोई एसआईटी. नहीं बैठने वाली।"


     अव्यांश हँसते हुए बोला, "वाकई आपको लगता है यहां पर कोई जांच नहीं बैठेगी? चलिए मैं आपको फ्यूचर दिखाता हूं। अगले दो दिनों में एसआईटी की टीम इस सारे करप्शन के खेल का भंडाफोड़ करने जा रही है। इससे पहले आपका नाम सामने आ जाए और पुलिस आप सबको अरेस्ट करके यहां से उठाकर कहीं दूर ले जाए, जहां से कभी आप बाहर न निकल पाए, उससे पहले ही आप मिश्रा जी के घर के पेपर मेरे हवाले कर दो।"


     अव्यांश फूफा जी से बात तो बड़े प्यार से कर रहा था लेकिन उसकी आवाज में साफ-साफ धमकी छुपी थी। रस्तोगी जी हड़बड़ा गए। इस बात का डर तो उन्हें भी था और काफी दिनों से वह इससे बचने की कोशिश में लगे हुए थे। एसआईटी बैठने की बात तो ऑफिस में हो रही थी लेकिन रस्तोगी जी को उससे बचने का कोई तरीका समझ नहीं आ रहा था। बस एक ही उपाय रहा कि वो अपनी पत्नी के साथ इस देश को छोड़कर भाग जाए। लेकिन इतना कुछ अव्यांश कैसे जानता था, यह भी सोचने वाली बात थी।


      रस्तोगी जी बोले "मैं तैयार हूं, बस मुझे इस केस में नहीं फसना है।"


    अव्यांश ने अपने पैर के ऊपर पैर चढ़ाया और बोला फंसना या किसी को फंसाना मेरा काम नहीं है। आप अच्छे से जानते हैं मैं यहां किसलिए आया हूं। आप मुझे पापा के घर के पेपर दे दो, उसके बाद मैं खुद आपको यहां से बचाने का इंतजाम करता हूं। लेकिन मेरी एक शर्त है।"


      रस्तोगी जी घबरा कर बोले "क क कैसी शर्त?"


     अव्यांश कुछ सोचते हुए बोला "मैंने आपको एसआईटी के बारे में जानकारी दी तो उसके बदले मुझे पापा के घर के पेपर चाहिए। और आपको इस सारे झंझट से बाहर निकालना है तो मुझे आपके इस घर के पेपर चाहिए।"


     बबली जी किचन से बाहर आ रही थी लेकिन सिक्योरिटी गार्ड आने नहीं दे रहा था। बबली जी जबरदस्ती उसे धक्का देकर बाहर हॉल में आई तो उन्हें अव्यांश की आखरी लाइन सुनाई दी। वो गुस्से में बोली "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की? तुम मुझसे मेरा ही घर मांग रहे हो? हम क्यों दें, किस खुशी में?"


     अव्यांश बड़े आराम से बोला "निशी आपकी बेटी जैसी है। दामाद हूं मैं आपका तो जाहिर सी बात है। और जहां तक मुझे याद है आप दोनों ने हमें शादी में कोई गिफ्ट नहीं दिया था। आपके पास बहुत अच्छा मौका है, फटाफट मेरी बीवी को ये घर गिफ्ट कर दो। इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए। पेपर्स तैयार है, बस आपको साइन करने है। बाकी जितने सोने चांदी गहने कपड़े, जो कुछ भी है सब आपका। उससे मेरा कोई लेना देना नहीं। अब सोच लो क्या करना है।"

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