सुन मेरे हमसफर 98

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    समर्थ छत पर खड़ा रेलिंग से पीठ टिकाए ढलते सूरज को देख रहा था। लालिमा पूरे आसमान में फैली हुई थी और जगह-जगह कहीं बादल तो कहीं हल्का कोहरा सा धुआं नजर आ रहा था। समर्थ का फोन उसके हाथ में काफी देर से इधर से उधर घूम रहा था। वो काफी देर से कोशिश कर रहा था एक कॉल करने की लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। वह बार-बार कभी अपने फोन को तो कभी आसमान को देख रहा था।


      सारांश किसी काम से ऊपर आए थे। उन्होंने जब समर्थ को इस तरह बेचैन देखा तो समर्थ के कंधे पर हाथ रखकर बोले "कभी-कभी कुछ बातें कह देनी जरूरी होता है। तो कभी कभी खामोशियां बहुत कुछ कह जाती है। हर बात कह कर नहीं बताई जाती और ना ही हर बात खामोशियों में समझी जाती है। कहीं चुप रहना सही होता है तो कहीं कहना जरूरी। तूने अब तक तन्वी से अपने दिल की बात नहीं की है ना?" समर्थ सर झुका लिया।


     सारांश ने उसका हाथ पकड़ कर ऊपर उठाया और उसके अंगुली में फसी उस अंगूठी को दिखाते हुए कहा "अब तुम दोनों एक दूसरे के साथ बंध चुके हो, बस सात फेरों का इंतजार है। तुम दोनों का रिश्ता दिल से जुड़ा है। माना प्यार जताया नहीं जाता लेकिन कभी-कभी जताना भी पड़ता है। प्यार जताने का हमारा तरीका अलग होता है और उनका तरीका अलग होता है। लेकिन इतना जान लो, लड़कियों को अच्छा लगता है जब कोई उन्हें प्यार जताता है। इसीलिए तो बहुत जल्दी पिघल जाती है। अब तक उसने तुम्हारे कुछ कहने का इंतजार किया है लेकिन तुम कुछ कहते ही नहीं। अब तो कह दो! अब ना वह तुम्हारी स्टूडेंट है ना ही तुम्हारी एंप्लॉयी। अब वो तुम्हारी होने वाली बीवी है, तुम्हारी लाइफ पार्टनर है और उसे अपने दिल की बात कहने में कोई झिझक महसूस नहीं होनी चाहिए। उसे कॉल करो। देखना, एक रिंग में ही फोन उठा लेगी।"


     समर्थ ने अविश्वास से सारांश की तरफ देखा तो सारांश मुस्कुरा दिए और उसका कंधा थपथपाकर वहां से चले गए। समर्थ ने फिर से अपना फोन अनलॉक किया और फाइनली इस बार अपने चाचा से मोटिवेट होकर उसने तन्वी का नंबर डायल कर दिया।


     जैसा कि सारांश ने कहा था, वाकई तन्वी ने पहली रिंग में ही फोन उठा लिया था। तन्वी भी तो समर्थ से बात करना चाहती थी और कब से उसके ही कॉल का इंतजार कर रही थी। इस चक्कर में उसने अपने कमरे में ना जाने कितने चक्कर काटे होंगे, कितनी ही बार अपने फोन को देखा होगा और कितनी ही बार अपने हाथ में पहने अंगूठी को अपने सीने से लगाया होगा। 


    तन्वी ने फोन उठाते ही कहा, "हैलो! समर्थ सर!"


    समर्थ ने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला लेकिन वो क्या कहे, उसे समझ नहीं आ रहा था। तन्वी से कभी उसने ऐसे बात नही की थी। लेकिन तन्वी की आवाज से उसकी बेचैनी और उसका एक्साइटमेंट साफ पता चल रहा था। तन्वी दिल जोरों से धड़क रहा था और यही हाल हमारे समर्थ का भी था। तन्वी ने फिर से कहा, "हेलो समर्थ सर!"


     समर्थ धीरे से बोला "हां वो मैं बोल रहा हूं, समर्थ।"


     तन्वी समझ गई और समर्थ के इस नर्वसनेस पर हंस पड़ी। उसने हंसते हुए कहा, "आपका नंबर मेरे पास ऑलरेडी है। आपको यह बताने की जरूरत नहीं है। आप बस यह बताइए कि आपने फोन कैसे किया?" तन्वी ने एकदम से अनजान बनते हुए कहा। समर्थ को इसका जवाब कुछ समझ में ही नहीं आया कि वह क्या कहें। वह चुप रह गया और कुछ कहने के लिए शब्द ढूंढने लगा। लेकिन उसने कभी तन्वी से बात की ही नहीं थी तो कोई शब्द मिलता भी कैसे!


     तन्वी भी उसकी इस हालत को अच्छे से समझ रही थी और बस उसकी ख़ामोशी सुन रही थी। अब तक यही तो करती आई थी वह। समर्थ की इस खामोशी की तन्वी को आदत पड़ चुकी थी। उसे कुछ नया नहीं लग रहा था। इनफैक्ट उन दोनों की खामोशी उन दोनों के बीच बहुत कुछ कह रही थी। दोनों ही चुप थे। ना कोई कुछ कह रहा था और ना ही कोई फोन काट रहा था।


      अंशु ने परेशान होकर कहा" या तो बात कर लो या फिर फोन रख दो। बेवजह टेलीकॉम कंपनी का फायदा क्यों करवा रहे हो आप दोनो?"


    समर्थ ने चौक कर देखा तो उसके पीछे पूरी फौज खड़ी थी। अंशु, निशी, सुहानी का तो समझ में आता था लेकिन शिवि यहां क्या कर रही थी? उसे देख समर्थ ने पूछा "आज तेरा हॉस्पिटल नहीं है जो तुम यहां मेरे पीछे मंडरा रही है? लगता है सारे मरीज भाग गए तुझे देखकर।"


     शिवि ने आराम से जाकर रेलिंग से पीठ टिका दिया और बोली "आज मेरा मन नहीं लग रहा था हॉस्पिटल में, और ऐसी कोई इमरजेंसी कॉल भी नहीं आई। कुछ देर के लिए गई और वापस आ गई। वो क्या है ना, घर से ज्यादा मुझे हॉस्पिटल में मन लगता है। लेकिन आज हॉस्पिटल में मुझे अजीब सी बेचैनी हो रही थी। पेट में तितलियां उड़ रही थी। मैं सोच रही थी कब घर जाऊं और भाई का दिमाग खाऊं, उसे परेशान करूं। भाभी के नाम पर उसे सताऊं।"


    सुहानी समर्थ के कंधे पर हाथ रखा और बोली "वैसे नाराज तो मुझे होना चाहिए। मेरे पीठ पीछे आप मेरी ही सहेली से इतने टाइम तक इन्वॉल्व रहे और मुझे पता ही नहीं चला। आप दोनों ने बहुत अच्छे से बेवकूफ बनाया मुझे।"


     समर्थ ने अपना सर झुका लिया और कहा, "ऐसा कुछ नहीं है। मेरी और तन्वी के बीच ऐसी कभी कोई बात हुई ही नहीं जो किसी को कुछ पता चलता। इनफैक्ट, वह तो मुझसे काफी नाराज थी। मुझसे बात भी नहीं कर रही थी क्योंकि मैंने उससे कभी कुछ नहीं कहा।"


   निशु बोली "भैया आप बहुत बोरिंग किस्म के नहीं हो? आई मीन, बेचारी तन्वी, आई मीन बेचारी तन्वी भाभी दिल के हाथों मजबूर हो गई। समझ में नहीं आता, उन्होंने कैसे पसंद कर लिया आपको?"


     अंशु ने नाराज होते हुए कहा "ओ हैलो! तुम्हारे कहने का मतलब क्या है? मेरे भैया इतने हैंडसम है कि कॉलेज की सारी लड़कियां मरती थी मेरे भैया पर; फिर चाहे वह इनकी क्लासमेट हो चाहे इनकी स्टूडेंट्स। अभी भी लड़कियां पागल है इनके पीछे।"


    निशी भी कहां पीछे रहने वाली थी। उसने कहा "मैं मानती हूं तुम्हारी कही सारी बातें सच है। मैं इससे इंकार नहीं करती लेकिन तन्वी तो स्पेशल है ना! उसके लिए तो भैया को थोड़ा रोमांटिक होना पड़ेगा। आखिर हर लड़की चाहती है कि उसका पार्टनर उसे स्पेशल तरीके से ट्रीट करें, उसे स्पेशल फील करवाएं। थोड़ा रोमांटिक सा कुछ करें, भले कुछ कहे या ना कहे लेकिन बिना कहे प्यार का इजहार जरूर करें। भैया! आपको ऐसा करना पड़ेगा।"


    समर्थ घबरा गया और बोला "मेरे से यह सब नहीं होगा। मैंने नहीं किया यह सब कभी।"


    निशी की इस बात पर तो सभी सहमत थे। सब ने एक ही सुर में कहा "करना पड़ेगा!!!"


     समर्थ थोड़ा सा पीछे हट गया तो शिवि बोली "आपको करना पड़ेगा भाई! अब वह आपकी मंगेतर है, आपकी होने वाली बीवी। तो उसके साथ टाइम स्पेंड करना थोड़ा सा कुछ रोमांटिक प्लान करना यह सारा आपका काम है, आपकी ड्यूटी है और आप उस से भाग नहीं सकते।"


    समर्थ परेशान हो गया। उसने कहा "लेकिन मुझे यह सब नहीं आता।"


    अंशु अपनी कॉलर उठाकर बोला "अरे तो हम हैं ना! हम सिखाएंगे आपको। मॉम डैड और बड़े पापा बड़ी मां का डिनर प्लान हम लोग तो करते थे।"


     सुहानी ने भी इस बात से एग्री किया लेकिन निशी बीच में ही रोकते हुए बोली "बिल्कुल नहीं! एक बार किसी को कॉल करके सारे अरेंजमेंट करने को कहना, अलग बात होती है। लेकिन खुद से सब कुछ अरेंज करो ना, तो इसका इंपैक्ट ही कुछ और होता है। अगर वो वाकई आप से सच्चा वाला प्यार करती है तो, आप किसी को बोलकर फाइव स्टार होटल पूरा का पूरा बुक करवा लीजिए, इससे वह इंप्रेस नहीं होगी। लेकिन खुद से थोड़ा सा एफर्ट लगाकर चार पांच फूल और कुछ कैंडल भी अगर रख देंगे ना, उसके लिए इतना ही काफी होता है। जहां प्यार होता है वह महंगे गिफ्ट नहीं बल्कि प्यार से दिया हुआ एक ₹10 का गुलाब ही काफी होता है। इस सब से भी हटकर करना है तो तन्वी को बहाने से बुलाकर लॉन्ग ड्राइव या फिर चुपके से उसके घर में पीछे के रास्ते से............"


    समर्थ उसकी बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा, "ओ शताब्दी एक्सप्रेस! रुक जाओ थोड़ा। यह क्या लगा रखा है? तुम क्या सजेशन दे रही हो? बाकी सब तो ठीक है लेकिन लॉन्ग ड्राइव और घर में घुसने वाली बात गलत है। बिना उसके पेरेंट्स की मर्जी के सब सही नहीं है।"


     निशी अपनी बात आगे करते हुए बोली "क्या भैया आप भी! अरे यहां तो प्यार किया तो डरना क्या वाली सिचुएशन होती है। यहां तो आप दोनों के रिश्ते को घरवालों की मंजूरी भी है। लेकिन एक बात मेरी समझ नहीं आई, आखिर आप तन्वी से दूर क्यों भाग रहे थे? जब आप दोनों एक दूसरे से प्यार करते हो और आपके घर वालों को भी यह सब से कभी कोई एतराज नहीं था तो फिर प्रॉब्लम क्या थी?"


    अंशु ने उसका जवाब दिया "कम ऑन निशी! तुम्हें तो पता ही है, तन्वी भाई की स्टूडेंट रही है। ऐसे में कैसे वो अपने घर की बात कहते! अच्छा नहीं लगता है। मैं समझ सकता हूं भाई किस सिचुएशन में रहे होंगे।"


     सुहानी उसका मजाक बनाते हुए बोली "तू बड़ा समझता है ऐसी सिचुएशन!


     शिवि ने चुटकी ली "6 महीने बेंगलुरु में रहा है, पता नहीं क्या-क्या किया होगा। शायद वहां का एक्सपीरियंस बता रहा है अपना।"


     अंशु हड़बड़ा गया तो निशी बोली "ऐसा कुछ नहीं है दी। इनकी सारी हरकतें मुझे हमेशा से पता रहती थी। और वैसे भी, क्या फर्क पड़ता है। प्यार किया कोई चोरी नहीं की। और एवरीथिंग इज फेयर इन लव एंड वॉर!"


    सबकी नजर एकदम से निशी पर ठहर गई। निशी को थोड़ा अजीब लगा।

    

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