सुन मेरे हमसफर 109

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   बड़ी मुश्किल से काया की जान छूटी थी। सुहानी ने जब बात की दिशा दूसरी तरफ मोड़ दी तब जाकर काया ने चैन की सांस ली और जब सभी आपस में बात करने में व्यस्त हो गए तो उसने धीरे से वहां से खिसकना ही सही समझा।


     उसकी नजर बार बार कार्तिक की तरफ जा रही थी जो अपने फोन में बिजी था। काया ने मन ही मन उसे गालियां देते हुए कहा 'सबके सामने ऐसे बन रहा है जैसे कितना शरीफ हो। अकेले में मेरे साथ जो बदतमीजी करता है, काश मेरे पास उसका कोई सबूत होता तो इसे खड़े खड़े नंगा कर देती। लेकिन कुछ कहूंगी तो सब मुझ पर ही उंगली उठाएंगे। बहुत बड़े कमीने हो तुम मिस्टर ऋषभ सिंघानिया!' काया चुपचाप से गार्डन के दूसरी तरफ जाने लगी लेकिन एकदम से किस ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। ऋषभ के होने के एहसास से ही काया घबरा गई।



*****




    सबके बीच खड़ा कुणाल वहां खुद को अकेला महसूस कर रहा था। सभी आपस में बातें कर रहे थे। कुहू भी उसके साथ खड़ी उसका हाथ पकड़े हुए थी। लेकिन कुणाल का मन तो कहीं और ही था। उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई, उसकी नजरों ने शिवि का पीछा किया। शिवी इस वक्त पार्थ के साथ होलिका दहन के लिए जमा किए लकड़ियों में कुछ और लकड़ियां डाल रही थी। पार्थ भी उसके साथ इस काम में उसका हाथ बटा रहा था। कभी दोनों चीजें समेटते तो कभी लकड़ी लेकर एक दूसरे के साथ फाइट करने लगते।


    कुणाल के दिल में एक अजीब सा दर्द हो रहा था। वह शिवि को इस तरह किसी और के साथ मुस्कुराते हुए नहीं देख सकता था, वह भी तब, जब वो उसे देखकर एक स्माइल तक नहीं देती थी। वह किसी और के साथ खुश थी। कुणाल ने मन ही मन से पूछा "क्या मैं इतना बुरा हूं? लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं कहां और कैसे बुरा हो गया? इस वक्त जो खुशी मुझे तुम्हारे चेहरे पर नजर आ रही है, मुझे उसे देख खुशी तो हो रही है लेकिन उससे ज्यादा तकलीफ हो रही है। क्योंकि यह खुशी किसी और के साथ से है। क्या तुम वाकई............' कुणाल आगे कुछ सोचना नहीं चाहता था। उसने धीरे से अपने दोस्त कार्तिक सिंघानिया को इशारा किया और सब को एक्सक्यूज मी बोलकर वहां से चला गया।



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    काया बुरी तरह घबरा गई। कहीं यह ऋषभ तो नहीं' सोचते हुए उसने जब पलट कर देखा तो सामने सुहानी खड़ी थी। काया ने राहत की सांस ली और उसके मुंह से निकला "तू? तूने तो मुझे डरा ही दिया था। मुझे लगा वह है।"


    सुहानी उसका हाथ पकड़ कर एक कोने में लेकर गई और बोली "वो? वो कौन? तू किसके बारे में सोच रही थी?"


    काया हड़बड़ा गई और बोली "मैं? नहीं, मैं क्यों किसी के बारे में सोचने लगी? बिल्कुल नहीं।"


      सुहानी ने एक उंगली काया के चेहरे के चारों तरफ घुमा कर कहा "तेरी शक्ल पर साफ-साफ लिखा है कि तू झूठ बोल रही है। और मेरे सामने तो तू गलती से भी झूठ मत बोलना। सच सच बता, जब आई थी तब भी ऐसा लग रहा था जैसे किसी से जान बचाकर भागी हो। अभी भी वैसे ही घबराई हुई है। किसके लिए झूठ बोल रही है, और क्यों? सच सच बता, तेरा कोई बॉयफ्रेंड है क्या?"


     बॉयफ्रेंड का नाम सुनकर काया के आंखो के आगे ऋषभ का चेहरा घूम गया। वो जल्दी से बोली "बॉयफ्रेंड, और मेरा? कोई नहीं है! बिल्कुल नहीं है!! तेरी कसम!!!"


     काया ने सुहानी के सर पर हाथ रखने की कोशिश की लेकिन सुहानी ने दो कदम पीछे लिए और काया का हाथ झटक कर बोली "मुझे मरने का शौक नहीं है, इसलिए मेरी कसम तो खा ही मत! सच-सच बता, अगर तेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है तो फिर यह साड़ी तुझे किसने दी?"


     काया ने अपनी साड़ी की तरफ देखा और अपना वही रटा रटाया जवाब बोलने लगी "मैंने बताया तो था, ये साड़ी मैंने मार्केट से ली है।"


   सुहानी ने ऊंची आवाज में उसके करीब आकर कहा "झूठ! बिल्कुल झूठ!! ऐसे सफेद झूठ तो तू बोलना भी मत। तू अच्छे से जानती है यह साड़ी तूने खरीदी नहीं है। यह साड़ी किसने तुझे दी है? कोई दोस्त इतनी महंगी साड़ी नहीं देता। वाकई यह साड़ी निहारिका आंटी के कलेक्शन का है। तुझे क्या लगता है, मॉम को तूने कन्वेंस कर लिया? बिल्कुल नहीं। वह निहारिका आंटी को कॉल करके इस साड़ी के बारे में जरूर पूछेंगी। इसलिए मैंने पहले ही उनसे फोन करके पूछ लिया और यह भी कह दिया कि अगर मॉम उन्हें कॉल करती हैं तो प्लीज कुछ भी बहाना बना दे। अब सच बता, क्या छुपा रही है तू?"


     काया को लगा अब कुछ भी छुपाने का कोई फायदा नहीं है। उसे भी इस बारे में किसी से बात करनी थी। जो कुछ उसके साथ हो रहा था और जो कुछ भी वो महसूस कर रही थी, वह सब बहुत अजीब था। उसे लगा नहीं था कि ऋषभ इस तरह हाथ पैर धोकर, इनफैक्ट नहा धोकर उसके पीछे पड़ जाएगा। काया ने हकलाते हुए कहा "सोनू! मैं तुझे कब से इस बारे में बात करना चाह रही थी। मैं जानती हूं, तु मेरी बात का यकीन नहीं करेगी लेकिन यह सच है। मेरे पास कोई सबूत नहीं है इसीलिए मैं किसी से कुछ नहीं कर पा रही। पिछली बार तूने मेरा यकीन नही किया था। इस बार अगर मैं कुछ कहूंगी तो क्या तू मेरा यकीन करेगी?"


    सुहानी ने काया को देखा और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोली "तू बता तो सही। अगर तू किसी प्रॉब्लम में है तो हम सब मिलकर उसे सॉल्व करेंगे। और अगर तू प्यार में है तो हम सब मिलकर उसकी गर्दन दबोच लेंगे।"


    सुहानी ने जिस अंदाज में यह बात कही थी, काया मुस्कुराए बिना ना रह सकी। उसने कहा, "यह साड़ी किसी ने मुझे दी है। एक्चुअली नही।" 


     सुहानी खुद भी कंफ्यूज हो गई। उसने पूछा "दी भी और नहीं भी। मतलब तू कहना क्या चाह रही है, साफ-साफ बता।"


    काया बहुत ज्यादा नर्वस फील कर रही थी। उसने कुछ वक्त पहले अपने साथ हुए हादसे को याद कर कहा "मैं तो मम्मा के बूटी की गई थी। वहां से मैं अपने लिए ड्रेस ले आई थी, लेकिन जब यहां आए तो पता चला कि मैंने गलत पार्सल उठा लिया है। मैं तेरे कमरे में जाने के बजाय गेस्ट रूम में थी, इसलिए मेरे पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं था सिवाय इस साड़ी को पहनने के। मुझे लगा गलती मेरी है तो कोई बात नहीं। लेकिन बाद में मुझे पता चला कि यह साड़ी मैंने गलती से नहीं उठाई, बल्कि उसने जानबूझकर मुझे ये साड़ी पकड़ाई है।"


     सुहानी को यह सब कुछ अजीब तो लगा लेकिन उसके चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ गई। वह अपने दोनों हथेली को अपने चेहरे पर रखकर बोली "हाउ रोमांटिक!!! मतलब किसी ने तेरे लिए साड़ी पसंद की। ना सिर्फ पसंद की बल्कि उसने ऐसा सब कुछ क्रिएट किया जिससे तू खुद साड़ी पहन ले। और तो और, ये साड़ी अपने आप में सिंगल पीस है। तू खुद सोच, वो लड़का तुझे कितना प्यार करता होगा जो तेरे लिए इतना कुछ कर रहा है! इतना रोमांटिक, हाय!! काश कोई मेरे लिए भी यह सब करता!"


     काया नाराज होकर बोली "तुझे मजाक लग रहा है यह सब? यहां मेरी जान जा रही है।"


     सुहानी ने काया को दोनों कंधों से पकड़ा और पूछा, "बता जल्दी, कौन है? कहां रहता है? कैसा है? क्या करता है? कब से चल रहा है यह सब? मैंने अभी सबको बता देना है, लेकिन सबसे पहले तो उसका नाम बता।"


    सबको बताने वाली बात सुनकर काया थोड़ी घबरा गई। उसने डरते हुए कहा "नहीं, अभी नहीं। इस बारे में घरवालों को मत बताना, प्लीज! और वो कोई प्यार प्यार नहीं करता मुझसे, बस मुझे परेशान कर रहा है।"


   सुहानी ने वही सवाल फिर से रिपीट किया "वह सब बाद की बात है, पहले यह तो बता उसका नाम क्या है? कौन है वह?"


    काया की नजर कार्तिक पर गई जो कुणाल के साथ बातें करता हुआ चला जा रहा था। उसने गुस्से में कार्तिक सिंघानिया को देखा और बोली "इंसान नही, गधा है एक नंबर का। उल्लू का पट्ठा है..............।"


    इससे पहले कि काया अपनी बात पूरी कर पाती, शिवि भागते हुए आई और दूर से ही आवाज लगाया "सोनू, का!! वहां क्या कर रहे हो तुम लोग? जल्दी चलो होलिका दहन का टाइम हो गया है।"


       सुहानी को तो इसी का इंतजार था। काया उसे ऋषभ का नाम कह पाती, उससे पहले ही सुहानी सब कुछ भूल उसे छोड़कर वहां से भाग गई। लेकिन जाते हुए उसने आवाज लगाई "जल्दी आ, वरना डांट खाएगी।"


     काया के कदम वही काम से गए थे। उसे समझ नहीं आया कि वो क्या करें। सुहानी ने एक बार फिर आवाज लगाई तो उसे ना चाहते हुए भी वहां से जाना पड़ा। लेकिन पता नहीं क्यों, उसे बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे किसी की नजर उस पर है। वह किसी की आंखों को अपने ऊपर साफ महसूस कर रही थी। लेकिन वहां काया को कोई भी ऐसा इंसान नजर नहीं आया जिस पर वह शक कर सके। इसे अपने मन का वहम समझकर आगे बढ़ने लगी।


     इतने में उसका फोन फिर से बजा। वह नंबर वह ऋषभ का नंबर था, इसे कैसे ना पहचानती! काया ने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो उसकी नजर एक बार फिर कुणाल के साथ खड़े कार्तिक पर गई जो फोन कान से लगाए हुए था। संयोग से कार्तिक ने भी काया को देखा और स्माइल करके धीरे से हाथ हिला दिया। काया को पूरा यकीन हो गया कि उसके सामने जो खड़ा है वह कार्तिक नही ऋषभ ही है और उसे ही फोन कर रहा है। उसने गुस्से में फोन काटा और सुहानी के पीछे चली गई।

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