सुन मेरे हमसफर 104

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     अंशु निशि को लेकर कमरे से बाहर निकला तो देखा, सारे लोग हॉल में इकट्ठा थे और सभी की नजरें उन्हीं दोनों पर टिकी थी। सीढ़ियों पर से उतरते हुए अंशु ने निशी का हाथ पकड़ लिया।


    निशी उसकी इस हरकत पर पहले तो थोड़ा चौंक गई फिर सबकी तरफ उसका ध्यान गया। अंशु ने धीरे से कहा "डॉन्ट वरी! बस थोड़ी देर। और वैसे भी, मैं तुम्हारा हस्बैंड हूं, हक है मेरा ये सब करने का। लेकिन फिलहाल सब लोग हमें ही देख रहे हैं इसलिए अपने होठों पर बड़ी सी स्माइल चिपकाओ और चलो।"


     जाने की बात सुनकर निशी थोड़ा सा डरते हुए पूछा "कहां जाना है हमें?"


    अंशु मुस्कुराते हुए सामने देख कर बोला "बताया तो था, घरवाले चाहते हैं कि इस घर में नन्हे मुन्ने की किलकारियां सुनने को मिले। भाई की शादी तो अभी तय ही हुई है और हमारी हो चुकी है। जब हमारी शादी पहले हुई है तो फिर यह रिस्पांसिबिलिटी भी तो हमारी बनती है ना? इसीलिए मैंने सोचा, चलो आज रात हम इस रिस्पांसिबिलिटी को निभाते है।"


    निशी थोड़ा और घबरा गई और उसने अंशु की पकड़ से हाथ छुड़ाने की कोशिश की। लेकिन यह उसके बस का नहीं था। अंशु ने और भी कसकर उसका हाथ थाम लिया। इतने में सारांश ने आगे बढ़कर ताना मारा "तैयार होने में तुझे लड़कियों से भी ज्यादा टाइम लगने लगा है। तू खुद तैयार हो रहा था या साथ में निशी को भी तैयार कर रहा था?"


     अंशु अपने बालों में हाथ को घुमाते हुए बोला "डैड! आपको तो पता है, मुझे अपने बालों को सेट करने में कितना टाइम लगता है।"


     सारांश ने चिढ़कर कहा "किसी दिन तेरे पूरे बाल निकलवा दूंगा। ना रहेगा बाल ना बजेगी बांसुरी।" निशी, जो अभी तक घबराई हुई थी, उसकी छूट गई।


    अंशु नाराज होकर बोला "डैड, आप भी ना! मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूं जो मेरा मुंडन करवाएंगे आप। मुझे मेरे बाल बहुत प्यारे हैं। खबरदार जो इन्हें नजर लगाया तो। मुझे अच्छे से पता है, मेरे बाल आपसे ज्यादा अच्छे हैं इसलिए आपको इन से जलन होती है। लगता है मुझे अपने बालों के लिए कोई टोटका करना पड़ेगा।" 


   अंशु ने जाकर अवनी को पीछे से हग कर लिया तो अवनी बोली "बिल्कुल! मेरे बच्चे के बाल सबसे ज्यादा अच्छे है। तू घबरा मत, मैं तेरे लिए नींबू मिर्ची की एक पूरी चोटी बना दूंगी। उन्हें अपने बालों में पीरो लेना।" वहां मौजूद सभी ठहाके मारकर हंस पड़े।


    सिया ने अंशु से पूछा "तुम लोग तैयार हो तो निकलो, या फिर कुछ और भी करना है?"


    अंशु आगे आया और अपनी दादी के पैर छूकर बोला "नहीं दादी, हम बस निकल ही रहे थे।"


   सिया ने मौका मिलते ही उसके कान पकड़ लिए और बोली "निशी को परेशान करना बंद कर। अच्छे से पता है मुझे, तू उसे कितना ज्यादा चिढ़ाता है। सोनू से तेरी लड़ाई कम हो गई तो क्या उसकी कसर तू अपनी बीवी से पूरी करेगा?"


    अव्यांश ने दादी के हाथ पकड़े और अपने कान छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोला, "आह दादी, दर्द हो रहा है। सॉरी, अब से ऐसा नहीं करूंगा। आज से मैं आपकी बहू को बिल्कुल भी परेशान नहीं करूंगा।"


    सिया धीरे से उसके कान में बोली "पागल हो गया है क्या? अगर तू उसे परेशान नहीं करेगा तो मैं अपनी चौथी पीढ़ी को कैसे देख पाऊंगी?"


     अंशु ने तिरछी नजरों से अपनी दादी को देखा और धीरे से बोला "आप भी कमाल हो दादी। सबके सामने मुझे डांटती हो और पीछे से मुझे इनकरेज करती हो!"


    सिया ने अंशु के गाल पर धीरे से चपत लगाई और कहा "तभी तो तेरी दादी हूं। अब जा जल्दी से।"


    दोनों दादी पोते की आवाज इतनी धीमी थी कि वही बगल में थोड़ी शिवि बस उनकी फुसफुसाहट को ही सुन सकती थी। अवनी ने धीरे से निशी को इशारा किया तो निशी ने जाकर सिया के पैर छू लिए। सिया ने दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेरा और बोली "अब निकलो तुम लोग। आज की रात तुम लोगों का यहां कोई काम नहीं है।" अंशु तुरंत ही निशी को लेकर वहां से बाहर निकल गया, जहां ड्राइवर उन दोनों के लिए गाड़ी में इंतजार कर रहा था।



*****





      काया बहुत बुरी तरह से डर गई। अपनी ही बुटीक में कोई उस पर इस तरह हमला करेगा ये उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उसके हाथ में जो कपड़े थे वो वही फर्श पर गिर गए। उसने दोनों हाथों से उस अनजान इंसान के हाथों को पकड़ा और अपने मुंह पर से हटाने की कोशिश करने लगी ताकि वह चिल्ला सके। उसे यह भी पता था इस वक्त यहां पर कोई नहीं होगा जो उसकी आवाज सुन सके। फिर भी उसने खुद को छुड़ाने की हर मुमकिन कोशिश की।


    उस हमलावर ने अपने दूसरे हाथ से उसकी कमर को पकड़ रखा था जिससे काया उसके शरीर से पूरी तरह बंधी थी और उसकी पकड़ से छूटना काया के लिए लगभग असम्भव था। अपनी इस कोशिश में काया के कानों में एक जानी पहचानी सी आवाज पड़ी "यूं तो जब भी मिलती हो, मुझे हमेशा काट खाने को तैयार रहती हो। लेकिन अब जब वाकई तुम्हें मौका मिला है तो तुम ऐसा क्यों नहीं कर रही? कहीं मुझसे प्यार तो नहीं हो गया?"


     काया इस आवाज को नहीं भूल सकती थी। 'ऋषभ!!! ये यहां क्या कर रहा है?' उसकी आंखें घबराहट में चारों तरफ घूमने लगी। 'हे भगवान! यह लुच्चा लफंगा यहां भी आ गया! आखिर ये चाहता क्या है? क्यों मेरे पीछे पड़ा है?'


     ऋषभ एक बार फिर उसके कान में बोला "तुम चाहो तो मेरे हाथ काट सकती हो। इतना दिमाग तो तुम्हें लगाना चाहिए। किसी के अटैक से कैसे बचना है, इसका बेसिक नॉलेज भी तुम में नहीं है? कोई बात नहीं, मैं सिखा देता हूं।"


   ऋषभ ने इतने नजदीक से उसे यह बात कही थी कि काया के रोंगटे खड़े हो गए थे। ऋषभ की सांसे काया अपनी गर्दन पर साफ महसूस कर रही थी। अचानक ही ऋषभ ने अपनी पकड़ ढीली की और मौका मिलते ही काया ने खुद को छुड़ाकर उससे दूरी बना ली। फिर उस पर बरसते हुए बोली "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, बिना परमिशन के यहां घुसने की?"


    ऋषभ ने पॉकेट में दोनों हाथ डाले और चारों तरफ नजर घुमाते हुए बोला, "मुझे नहीं लगता कि यह रिस्ट्रिक्टेड एरिया है जहां आने के लिए किसी को परमिशन की जरूरत है। यहां तो दिन भर में कई लोग आते होंगे तो क्या सबको परमिशन की जरूरत पड़ती होगी? या फिर मैं कोई स्पेशल हूं?"


    काया ने उसे उंगली दिखाते हुए कहा "बिल्कुल! वो सारे जो भी यहां आते है, सब कस्टमर होते है और तुम एक लफंगे हो। वाकई, तुम स्पेशल ही हो।"


     ऋषभ को तो बस यही सुनना था। उसने एक झटके से काया को अपनी गोद में उठा लिया और कहा "सच में!!! जब मैं तुम्हारे लिए स्पेशल हूं तो चलो कुछ स्पेशल करते हैं। यहां हम दोनों के अलावा और कोई नहीं है। कोई हमे डिस्टर्ब नहीं करेगा।"


    काया पैनिक करने लगी। उसने चिल्लाते हुए कहा, "लुच्चे लफंगे, आवारा! छोड़ो मुझे नीचे उतारो वरना मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगी।" ऋषभ को हंसी आ गई।




*****






    अंशु ने ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए कहा "काका आप रहने दो यह सब, मैं ड्राइव कर लूंगा। आप जाकर होलिका दहन इंजॉय करो और कल की तैयारी भी कर लेना। कुछ चाहिए तो बता देना।" ड्राइवर ने मुस्कुरा कर अपना सर झुका लिया और वहां से चला गया।


    निशी ने पूछा "हम लोग नानू नानी के घर जा रहे हैं ना?"


    अंशु ने गाड़ी स्टार्ट की और गाड़ी को कंपाउंड से बाहर निकालते हुए बोला "सोचा तो था और प्लान भी कुछ ऐसा ही था। लेकिन मेरा मूड चेंज हो गया।"


     निशी ने उसे अजीब नजरों से देखा और बोली "मूड चेंज हो गया, मतलब?"


     अंशु ने बिना उसकी तरफ देखे कहा "मूड चेंज हो गया यानी कि प्लान भी चेंज हो गया। अब हम कहीं और जा रहे हैं।"


    कहीं और का नाम सुनकर ही निशि को अंशु की कुछ देर पहले की कही बात याद आ गई। उसने अपनी घबराहट को अपने मन में छुपाया और गुस्सा होकर बोली "ऐसे कैसे बिना बताए प्लान चेंज कर सकते हो तुम? मतलब, सिर्फ तुम नहीं जा रहे, मैं भी जा रही हूं। तो मुझे भी पता होना चाहिए ना हम लोग कहां जा रहे हैं।"


    अंशु ने उसे शरारत से देखा और कहा "मैंने बताया तो था। याद नही आ रहा तुम्हे? कितनी भुलक्कड़ हो तुम? ठीक है फिर से बता देता हूं, घरवालों का बड़ा मन है। उनका छोड़ो, दादी का भी मन है परदादी बनने का। उनकी इच्छा का सम्मान करना हमारी ड्यूटी है और हमें कैसे भी इसे पूरा करना चाहिए। तो चलो, आज के शुभ दिन पर शुभ कार्य शुरू किया जाए।"


    निशी हैरानी से आंखें फाड़े उसे देखने लगी। अंशु के कहने का साफ-साफ क्या मतलब था, वो अच्छे से जानती थी। वो बोली "तुम मजाक कर रहे हो ना? तुम ऐसी कोई हरकत नहीं कर सकते। देखो, तुमने वादा किया था कि तुम बिना मेरी मर्जी के कुछ नहीं करोगे।"


    अंशु इतनी देर में गाड़ी काफी दूर निकाल ले चुका था और इस वक्त वह दोनों ट्रैफिक सिग्नल पर रुके थे। उनकी गाड़ी का लाइट ऑफ था और अंशु के लिए एक अच्छा मौका था। उसने निशी की कमर में हाथ डाला और उस एकदम से उसे अपनी गोद में खींच लिया।

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