सुन मेरे हमसफर 101

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 निशी ने बड़ी मुश्किल से कहा "अ अव्यांश........! छोड़ो मुझे।"


     लेकिन इस बार अव्यांश उसे छोड़ने के मूड में नहीं था। उसने सीधा सा सवाल किया "कोई रीजन दो।"


    निशी ने घबराते हुए पूछा "क्या?"


   अव्यांश ने अपना सवाल फिर से दोहराया "मैंने कहा, कोई रीजन दो कि मैं तुम्हें छोड़ दूं। तुम मेरी बीवी हो इसलिए इस वक्त मैंने तुम्हें धाम रखा है। और ऐसा करने से मुझे कोई रोक नहीं सकता। अब ऐसे में तुम मुझे एक रीजन दो जिससे मैं तुम्हें खुद से अलग कर दूं।"


     निशि को अव्यांश की कोई भी बात समझ नहीं आ रही थी। उसने सीधे से जवाब दिया "सुहानी....! सुहानी आती ही होगी।"


   अव्यांश के पास इसका जवाब था। "वो नही आयेगी। अगर आ भी गई तो वह हम दोनों को ऐसे देखेगी तो खुद वापस लौट जाएगी।"


     निशी ने घबराते हुए फिर कहा "मेहमान.....! सारे आने वाले होंगे। हमे वहां होना चाहिए।"


     अव्यांश ने फिर से मुस्कुरा कर कहा "उन मेहमानों से तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है।"


    निशी ने फिर कहा "पूजा के लिए सब हमारा इंतजार कर रहे हैं। मुझे तैयार होना होगा।"


    अव्यांश ने उसके इस सवाल का जवाब देते हुए कहा "इस पूजा से तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है। क्योंकि शादी के बाद यह पहली होली है और ऐसे में पहला होलिका दहन एक लड़की कभी अपनी ससुराल वालों के साथ नहीं देखती। इसलिए यह जिम्मेदारी मुझे मिली है कि मैं तुम्हें यहां से कहीं दूर ले जाऊं, कहीं भी। शायद मासी के घर, या नानी के घर, या फिर इसी कमरे में, हम तुम एक कमरे में बंद हो और............"


     अव्यांश ने यह लाइन इतने रोमांटिक तरीके से गाया था कि निशी घबराहट के मारे पसीने पसीने हो गई। उसने अव्यांश पकड़ से छूटने की नाकाम कोशिश की और कहा "अव्यांश प्लीज! मुझे कपड़े पहन लेने दो।"


     अव्यांश ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा, "इसकी जरूरत है क्या?"


   आप तो निशी और भी ज्यादा घबरा गई। उसे इस तरह घबराते देख अव्यांश जोर से हंस पड़ा और उसे छोड़ दिया। निशी लड़खड़ाते हुए दो तीन कदम पीछे जाकर खड़ी हो गई और वहां से भागने को हुई लेकिन एक बार फिर वो साड़ी में फंसकर गिरने लगी। इस बार फिर अव्यांश ने उसे संभाला और सीधा खड़ा कर के खुद उसकी साड़ी की प्लेट बनाने लगा।


     अपनी साड़ी का पल्लू अपने दोनों हाथों से पकड़े निशी खड़ी रही। अव्यांश ने बड़े प्यार से उसकी साड़ी की प्लेट लगाई और कमर में डाल दिया। ऐसा करते हुए वो इस मौके का पूरा पूरा फायदा उठा रहा था। निशी भी कुछ कह नहीं पा रही थी। जैसा बाप वैसा बेटा। सारांश भी तो यही कर रहे थे।


     घुटने के बल बैठकर सारांश ने अवनी की साड़ी ठीक की और कहा "मैं सोच रहा था, अंशु और निशी को यहीं रहने देते हैं, हम दोनों चलते हैं कहीं पर।"


     अवनी उनकी बात पूरी नहीं होने दी और बीच में बोली "बिल्कुल नहीं। अब यह वक्त उनका है। अपने टाइम में आपने भी अपने मन की बहुत की है, अब उन्हें करने दीजिए।"


     सारांश ने सवाल किया "क्या हो गया अगर बच्चे बड़े हो गए तो! क्या हम रोमांस नहीं कर सकते? यह दोनों क्या ऐसे ही इस दुनिया में आ गए हैं? बहुत मेहनत की है हमने।"


    अवनी ने कमरे के बाहर देखा तो कोई उनकी बाते नही सुन रहा था। उन्होंने नाराज होते हुए कहा "सारांश! आप सिर्फ शुरू हो गए? ठीक है, आज की पूजा यहां सब के साथ देख लेते हैं। होलिका दहन के बाद अगर आपका मन हो तो हम लॉन्ग ड्राइव पर चलेंगे, प्रॉमिस।"


     सारांश ने किसी बच्चे की तरह पूछा "पक्का वाला प्रॉमिस?"


    अवनी बोली "हां पक्का वाला प्रॉमिस। लेकिन अभी तो चलिए! नीचे सब हमारा इंतजार कर रहे होंगे!"




       सुहानी अपने हाथ में तीन-चार डब्बे पकड़े और बिना नॉक किए अंशु के कमरे में घुस गई और बोली "निशी! इसको पकड़ो, यह है तुम्हारे गहने।"


    सुहानी की नजर जब निशी पर पड़ी तो उसने पाया कि अव्यांश वहीं बैठा उसकी साड़ी ठीक कर रहा था। सुहानी ने एक हाथ अपनी कमर पर रखा और बोली "बेशर्म, बेहया इंसान!"


    अव्यांश उठ खड़ा हुआ और बोला "एक्जेक्टली माय वर्ड्स! मैं तुझे अभी यही कहने वाला था।"


     सुहानी ने सारे डब्बे सामने ड्रेसिंग टेबल पर रखे और अंशु की तरफ मुड़कर बोली "लेकिन यह सारे मेरे वर्ड्स है जो मैंने तुझे दी है। बेवकूफ, बेशर्म! एटलीस्ट दरवाजा तो बंद कर लेता! तुझ से क्या ही उम्मीद करूं, छोड़ ये सब। अब अगर तेरा काम हो गया है तो निकल यहां से।"


     अव्यांश किसी ढींठ की तरह वहां खड़ा रहा और बोला "अगर मैं ना जाऊं तो?"


    सुहानी बिना किसी झिझक के बोली "तो लात खाएगा मेरे से, गधा कहीं का!"


    अव्यांश उसकी टांग खिंचाई करते हुए बोला "गधा मुझे कह रही है और दुलत्ती तुझे मारने को बोल रही है। तू खुद सोच ले, तू कौन है और मैं कौन हूं।"


      सुहानी को गुस्सा आ गया। उसने कहा "मेरा दिमाग खराब मत कर। मैं अभी तक तैयार नहीं हूं। निशी को तैयार करके भेजना है मुझे। नानू ने फोन किया था, पूछ रहे थे तुम लोग कब तक आओगे। और वैसे भी, इंसान हो या जानवर जिसको जिस भाषा की समझ होती है उसी भाषा में बात की जाती है। तू गधा है और गधा ही रहेगा। अब निकल यहां से वरना........."


"......... वरना क्या करेगी तू?"


   "वरना तू मेरी सेंडल खाएगा।" सुहानी ने अपनी सैंडल उतारी तो अंशु वहां से भाग खड़ा हुआ। निशी जो चुपचाप खड़ी थी, दोनों भाई बहन की लड़ाई देखकर हंसी छूट गई।



    कुहू पहले ही मित्तल हाउस पहुंच गई थी। कुणाल से रिश्ते उसके अभी भी कुछ खास सुधरे नहीं थे। काया भी तैयार होने में कुछ ज्यादा ही टाइम ले रही थी इसलिए वह बाकी सब से पहले चली आई। उसे कुणाल से मिलना था, साथ ही अपनी प्रॉब्लम उसे किसी से तो डिस्कस करना था, या तो सुहानी या फिर शिविका। 


  शिवि इस मामले में भी थोड़ी ज्यादा मैच्योर थी। सुहानी को निशी के साथ बिजी देख कुहू सीधे शिवि के रूम में घुस गई। वहां पहुंचकर देखा, तो शिवि हल्के हरे रंग के पटियाला सूट में गजब लग रही थी। उसे देखते ही कुहू बोली "क्या बात है! आज तो तू कयामत लग रही है।"


     शिवि मुस्कुरा कर बोली "क्या दी आप भी! मेरी टांग खिंचाई करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हो आप।"


     कुहू उसके पास आई और उसके कान की छोटी-छोटी बूंदे उतारते हुए बोली "टांग खिंचाई नहीं कर रही, तेरी तारीफ कर रही हूं। तू हर रंग को इतने अच्छे से कैसे संभाल लेती है? मतलब, यह हर रंग तुझ पर कमाल लगता है। ऐसा लगता है जैसे तेरे लिए ही बना हो।"


     शिवि ने अपने आपको आईने में देखा और बोली "ऐसा हो ही नहीं सकता। जो तारीफ आप मुझे दे रही हो, वो मैं आपको दे सकती हूं, लेकिन मुझे..........."


    कुहू उसे डांटते हुए बोली "तू फिर शुरू हो गई! तुझे कितनी बार समझाऊं, तेरा सांवला रंग तुझे और ज्यादा खूबसूरत बनाता है। क्या आज तक कभी किसी ने तुझे इस बात को लेकर कुछ कहा है? नहीं ना। तो फिर ये बात तेरे दिमाग में आई कहां से?"


     कुहू ने वैनिटी से एक पतली सी चैन बाहर निकाली और उसके गले में डाल कर बोली "तुझे जो भी तारीफ मिलती है, और जो भी तारीफ मैं तेरी करती हूं, उसमें कोई झूठ नहीं है। तू वाकई बहुत प्यारी लगती है, बिल्कुल बड़े पापा जैसी। और बड़ी मां को ही देख ले, वो हर तरीके की साड़ी को जिस तरह कैरी करती है, उससे उनका ऑरा इतना पावरफुल नजर आता है कि उनसे बात करने से पहले मुझे थोड़ा सा सोचना पड़ता है। सच कहूं तो बड़ी दादी की लैगेसी अगर कोई कैरी कर रहा है तो वह बड़ी मां है। और मुझे लगता है कि इसको तू अपने कंधे पर ले जाएगी।"


     शिवि के होठों पर बड़ी सी मुस्कान आ गई। कुहू ने उसके कानों में झुमके डालें और पूछा "सारे मेहमान कब तक आ जाएंगे?"


     शिवि को कुहू की आवाज में थोड़ी परेशानी नजर आई। उसने पूछा "आप किसके बारे में पूछ रही हैं?"


     कुहू ने कुछ नहीं कहा। वह बस मुस्कुरा कर रह गई। शिवि को समझते देर नहीं लगी। उसने कुहू का हाथ पकड़ा और आराम से उसे बिस्तर पर बैठा कर बोली "आपको मुझसे कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं है। आप जानते हो ना, बहनों के बीच सीक्रेट नहीं होना चाहिए। अगर अपनी बहन से अपनी प्रॉब्लम छुपाना पड़े तो फिर इस रिश्ते का कोई मायने ही नहीं।"


     कुहू की आंखों में नमी उतर आई। उसने बेबसी में कहा "जब तक मैं और कुणाल दोस्त थे, सब कुछ ठीक था। लेकिन जैसे ही हमारा रिश्ता तय हुआ, कुणाल मुझसे दूर हो गया।"


     शिवि को बात समझ में नहीं आई। उसने इस बारे में पूछा तो कुहू ने अब तक की सारी बात उसे बता दी और कहा "लड़कियां सगाई के बाद अपने पार्टनर के साथ थोड़ा टाइम स्पेंड कर चाहती है ताकि। मैं भी कुछ अलग तो नहीं चाहती। और वो कोई मेरा बॉयफ्रेंड नहीं है, मेरा मंगेतर है। मैं कुछ गलत तो नहीं चाह रही। लेकिन जबसे हमारा रिश्ता तय हुआ है, ऐसा लगता है जैसे कुणाल मुझसे दूर जाने की कोशिश कर रहा है। सगाई से पहले तो उसने एकदम से कांटेक्ट खत्म कर दिया था। कॉल ना मैसेज, कुछ नहीं। फिर अचानक से सगाई में इतने प्यार से मुझे सरप्राइज़ किया तो मुझे लगा सब ठीक है। लेकिन उसके बाद फिर से वही सब। अभी उस दिन हम लोग डिनर पर गए थे, उसके बाद से मेरी उससे कोई बात ही नहीं हुई है।"


   शिवि वैसे ही कुणाल से थोड़ी चिढ़ी हुई थी। उसने कहा "दी! एक बात सच कहूं, जो रिश्ता आपको जुड़ने से पहले ही इस तरह परेशान कर रहा है, आपको नहीं लगता कि वह रिश्ता आपको बाद में बुरी तरह रुलाएगा?"

    

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