ये हम आ गए कहाँ!!! (25)

पंडित जी की बातों ने शिखा को सोचने पर मजबूर कर दिया था। आगे कुछ तो ऐसा होने वाला था जिसके बारे में पंडित जी नहीं बता रहे थे और कुछ ऐसा जो सिर्फ पुरोहित जी जानते थे। उन्हें तो पता ही था कि उन दोनों भाइयों की कुंडली एक दूसरे से बिल्कुल अलग है लेकिन इसके बावजूद दोनों की ही कुंडलियां एक दूसरे से जुड़ी हुई है। जैसे दोनों भाई स्वभाव से एक दूसरे के विपरीत है लेकिन फिर भी दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं। एक किसी की जिंदगी में बदलाव दूसरे की जिंदगी में भी असर करेगा, यह बात पुरोहित जी ने उनके जन्म लेते ही कहा था और शादी के बाद उन दोनों की जिंदगीयों मे काफी बदलाव होने थे लेकिन अच्छा या बुरा यह उन्होंने नहीं कहा था। उसपर भी रूद्र की कुंडली मे जीवनसाथी का योग।

      बदलाव अच्छा हो एक मां के दिल को सुकून रहता है लेकिन जरा सी भी परेशानी की बात एक माँ के माथे पर चिंता की लकीर खींच ही देती है। शिखा चाह कर भी इन सब बातों से अपना ध्यान नहीं हटा पा रही थी। वह बेचैनी में उठी और रेहान के कमरे की ओर गई। उसके कमरे की लाइट ऑफ थी। धीरे से दरवाजा खोल कर देखा तो पाया कि रेहान अपने बिस्तर पर पूरी तरह से चादर ओढ़े सो रहा था। शिखा को रत्ती भर भी शक नहीं हुआ इस बात की कि रेहान घर पर नहीं है। रूद्र ने तकियों को लेकर इस तरह बिस्तर पर डाला था जिससे अगर शिखा या धनराज रेहान के कमरे में आते भी तो वापस चले जाते। शिखा ने धीरे से कमरे का दरवाजा बंद किया और एक बार रूद्र के कमरे की बढ़ गई। तभी उसे ख्याल आया कि हो सकता है रूद्र फिर अपने दोस्तों के साथ पार्टी के लिए निकल गया हो! लेकिन वह यह देखकर हैरान रह गई जब उन्हें रूद्र के कमरे की लाइट जलती हुई दिखी और हल्का सा मधुर संगीत भी सुनाई दे रही थी।

        शिखा ने हल्के से खिड़की की ओर से अंदर झांका और मुस्कुरा कर वापस अपने कमरे में चली गई। रूद्र अपने कमरे में बिना शर्ट के इस वक्त अपने पेंट और कैनवस के साथ खेल रहा था। पेंटिंग और स्केचिंग यह दोनों ही उसे बचपन से बहुत पसंद थे। जब भी उसका मन उदास होता या वह बहुत ज्यादा खुश होता तो अपनी फिलिंग्स को जाहिर करने के लिए शब्दों की बजाए इन्हीं रंगों का इस्तेमाल करता। आज भी जब उसका मन बेचैन था उसके हाथ कैनवस पर बहुत तेजी से चल रहे थे। अपने ख्यालों में डूबा रूद्र बिना कुछ सोचे बस कैनवस पर लकीरे खींचते जा रहा था। उसके जेहन में शरण्या की वह बंद पलके ही घूम रही थी, जिसे चाह कर भी वह भूल नहीं पा रहा था और ना ही अपने दिमाग से उसे निकाल पा रहा था। अपनी पेंटिंग को अधूरा छोड़ रूद्र वहीं जमीन पर लेट गया जहां बालकनी से आती हवाओं से झूलता पर्दा उसके चेहरे को छूकर गुजर रहा था। दिसंबर की ठंड़ी हवाएं भी उसे कुछ असर नही कर रही थी। एक एहसास बार-बार उसके दिल में सर उठा रहा था जैसे यह हवाएं शरण्या को छूकर आ रही हो। आज जब वह उसे घर के बाहर खड़ा था उस वक्त शरण्या अपने कमरे में टहल रही थी। पर्दे पर उसकी परछाई ने जैसे रूद्र की नजरों को बांध लिया था। वह चाह कर भी अपनी नज़रें उससे नहीं हटा पा रहा था। इस सबसे बेखबर शरण्या ने कमरे की लाइट ऑफ की और सो गई थी। 


     रात को अचानक से रूद्र को किसी के नर्म हाथों का एहसास अपने चेहरे पर हुआ तो वह मुस्कुरा उठा। आधी नींद में भी उसे एहसास हो रहा था जैसे शरण्या उसके पास हो। उसने हाथ बढ़ाकर उसके चेहरे को छूना चाहा और एक हाथ से उसकी कमर को थाम अपनी ओर खींच लिया। रूद्र को शरण्या के लंबे बाल बहुत पसंद थे। उसने उसके बाल में लगे पिन को निकाल दिया जिससे उसके बाल पूरी तरह से बिखर गए। रूद्र को बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि वो जो कुछ महसूस कर रहा है और जो कुछ भी हो कर रहा है वह सब एक सपना है या फिर एक हकीकत। शरण्या सच मे उसके कमरे मे है या वो सिर्फ एक सपना देख रहा है। सपने और हकीकत के बीच उलझा रूद्र खुद में बड़बड़ाये जा रहा था, "तुम चाहे जितना भी लड़ लो मुझसे, मुझसे दूर नहीं रह पाओगी। पता नहीं क्यों, लेकिन तुम्हारे करीब आना मुझे अच्छा लगता है। तुम्हारा मुझ पर यू गुस्सा करना मुझ पर सारी भड़ास निकालना.........तुम्हारी यह जो आंखें हैं न! किसी समंदर सी गहरी है और तुम्हारी बंद पलकें किसी ठहरे हुए झील की तरह....शांत! और ये होंठ.......! जब भी बोलते हैं सिर्फ मेरी बातें करते हैं। मुझे बहुत अच्छा लगता है फिर चाहे तु मुझे गाली ही क्यों ना दे रही हो। तुम्हारी हर बात सिर्फ मेरे लिए होती है। समझ नहीं पा रहा हूं शरू! मेरे अंदर जो बदलाव हो रहे हैं वो क्या है! तुम्हारे करीब आना तुम्हें परेशान करना मुझे हमेशा से अच्छा लगता था लेकिन अब तो कुछ ज्यादा ही अच्छा लगने लगा है। हां मुझे तुझ पर हक जताने का दिल करता है, मैं नहीं चाहता कि तु किसी और को देखे भी! तुझे पता है ऐसा क्यों है? 

     रूद्र अधखुली आँखो से उसे देखे जा रहा था। शरण्या के बाल हवा से लहराते हुए रूद्र के सीने पर गुदगुदी कर रहे थे जो उसे बहुत अच्छा लग रहा था। "किसी दिन तेरी इन्ही आँखों मे डूब कर मर जाऊंगा मैं, तु देख लेना" कहते हुए उसने शरण्या को खीच कर अपने सीने लगाया और सो गया। एक सुकून और गर्माहट उसे महसूस हो रही थी जो पहले कभी महसूस नहीं हुआ हो। 

     रेहान और लावण्या एक दूसरे से बातें करने में इस कदर खो गए कि कब सो गए उन्हें पता ही नहीं चला। सूरज की हल्की तपिश जब लावण्या के चेहरे पर महसूस हुई तब जाकर उसकी नींद खुली तो एहसास हुआ कि वो अपने घर पर नहीं है और वह रेहान के साथ उसके सीने पर सर रखकर सोई हुई है। लावण्या ने जल्दी से रेहान को उठाया और दोनों घर के लिए निकल गए। लावण्या को घर छोड़ रेहान जैसे ही घर पहुंचा और अपने कमरे में जाने को हुआ तभी धनराज की जोरदार आवाज पूरे घर में गूंज उठी, "रूद्र...!!!!" धनराज की आवाज इतनी कड़क थी कि बेचारा जहान वही का वही जम गया। धनराज गुस्से में बोल रहे थे, "यह कोई तरीका है, यह कोई वक़्त है घर आने का? तुम कब सुधरोगे रूद्र? छब्बीस साल के हो चुके हो तुम! इतने बड़े हो गए हो कि अपनी जिम्मेदारी खुद संभाल सकते हो लेकिन नहीं!!! तुम्हें तो बस अपने दोस्तों के साथ रात भर अय्याशी करनी है। रेहान को देख लो, जरा सा ही छोटा है तुमसे लेकिन अपनी जिम्मेदारियां बखूबी समझता है। तुम्हारी तरह नहीं है वह। उसकी शादी होने वाली है, अगर तुम जिम्मेदार होते तो हम तुम्हारी भी शादी की तैयारी कर रहे होते लेकिन तुम ना जाने कब सुधरोगे? जाने कब बड़े होगे तुम?" 

      धनराज गुस्से में बोले जा रहे थे और बेचारा रेहान अपने पापा के सामने चुपचाप खड़ा उनकी बातें सुन रहा था। उनका गुस्सा देख रेहान से कुछ कहते नहीं बन रहा था। वह यह भी नहीं बता पा रहा था कि वह रूद्र नहीं बल्कि रेहान ही है। वही रूद्र गहरी नींद में सोया हुआ था। जब अपने पापा की आवाज सुनी तो वह हड़बड़ा कर उठा और कंबल फेंकते हुए नीचे की ओर भागा। उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वह अभी भी बिना शर्ट के घूम रहा है। अपनी आंखें मलते हुए रूद्र ने घबराकर बोला, "क्या वह पापा? सब ठीक तो है? अब मैंने ऐसा क्या कर दिया जो आप इतना गुस्सा हो रहे हो?" धनराज ने देखा रूद्र सीढ़ियों पर खड़ा था और उसके हाथ में पेंट लगे थे जो अब तक सूख चुके थे। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उन्होंने रूद्र समझकर रेहान को डांट दिया है। उन्होंने कुछ कहा नहीं और अपने कमरे में चले गए। 

     अपने पापा से डांट खाकर रेहान का चेहरा उतर गया था जिसे देख रुद्र की हंसी छूट गयी। बेचारे रेहान ने आज उसके हिस्से की डांट जो खाई थी और वह भी पहली बार! रेहान, जिसका मूड अभी अभी ठीक हुआ था एक बार फिर से झुंझला गया और बोला, "बहुत हंसी आ रही है ना तुम्हें? जितना हंसना है हंस लो! देख लेना एक दिन सारा हिसाब बराबर करूंगा तुमसे। मेरा भी टाइम आएगा जब, उस दिन तुम्हें बहुत बुरी तरह से रुलाऊंगा।" शिखा ने जब सुना तो वह रेहान पर बरस पड़ी, "रेहान!!!! बोलने से पहले हमेशा सोच लेना चाहिए कि हम किसे और किसके बारे में बात कर रहे हैं। जाने कब काल हमारे मुंह में बैठा हो, हमारी कहीं कौन सी बात कब सच हो जाए हम नहीं जानते! इसलिए हमेशा सोच समझकर ही बोलना चाहिए। आज ऐसी बात की तुमने, आइंदा ऐसी कोई बकवास मत करना। भाई है वह तुम्हारा, तुमसे ज्यादा वह तुम्हारा ख्याल रखता है जैसे तुम उसका रखते हो। तुम दोनों में प्यार कम ज्यादा नहीं है।, मैं मानती हूं तुम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हो लेकिन इसके बावजूद ऐसी बातें मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी। किस दिन तुम्हारी कहि बात सच हो गई ना रेहान, उस दिन रूद्र रोए या ना रोए, तुम्हारी आंखों में आंसू जरूर होंगे।" 


टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही बेहतरीन भाग था मैम!! 👌👌 रुद्र तो शरण्या के अहसासों में हद से ज्यादा उतर चुका है...!! उसे तो अब बस शरण्या के पास ही चैन मिल रहा है! 😇😇 और बेचारा रेहान... काफी डांट पड़ गई उसे!! 🤦😄 पर सीखा जी की चिंता भी समझ पाई मैं... और उन्होंने जो आख़िर में कहा के रुद्र के आंखों में आंसू होंगे या नही पर रेहान जरूर रोएगा, यही बात आने वाले कल का अंदाज़ा भी लगी मुझे!! खैर, अगले भाग का इंतेज़ार रहेगा! और आप अपनी सेहत का भी ख्याल रखे! 😊😊

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  2. Sach hai kbhi kbhi majaak me kahi gyi baatein v sach ho jati hai

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  3. Rudra kb samjhega apni feelings .......sikha g ne bilkul sahi kaha

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