ये हम आ गए कहाँ!!! (16)

             शरण्या जैसे ही बाहर दरवाजे तक पहुंची, विहान की गाड़ी उसे आती हुई नजर आई। उसने मुड़कर एक बार पीछे देखा कि कहीं रूद्र दो नहीं आया लेकिन वहां सिर्फ वह अकेली थी और यह सोचकर ही उसका मन उदास हो गया। उसे लगा था कि शायद रूद्र उसके पीछे जरूर आएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आखिर क्यों वह खुद को तकलीफ देती है, क्यों बार-बार ऐसे इंसान से उम्मीद लगा बैठती है जो कभी उसके लिए कुछ नहीं करेगा। लेकिन आज जो रुद्र की आंखों में उसने देखा वो सबसे अलग था। जिस तरह से रूद्र उसे देख रहा था......उसकी आंखें अभी भी शरण्या को खुद को छूती हुई महसूस हो रही थी। उसने अपनी आंखें मूंद ली और उस पल को महसूस करते हुए खुद को अपनी ही बाहों में समेट लिया। तभी विहान की आवाज आई, "शरण्या....! क्या हुआ जल्दी कर तुझे जाना नहीं है क्या?"

  विहान की आवाज सुन शरण्या असलियत में लौटी और बिना एक बार भी अपने पीछे देखे वह सीधे विहान की गाड़ी में जा बैठी और सीट पर से टिका दिया। वह कुछ और नहीं सोचता चाहती थी और ना ही अपने दिल को बहकाना चाहती थी। जो कुछ हुआ वो सिर्फ उसका एक वहम था, वही सोच कर एक बार फिर उसने आंखें मूंद ली। कुछ देर बाद सब अचानक से स्पीड ब्रेकर की वजह से उसे झटके लगे तो उसने आंखें खोली और गुस्से में ड्राइविंग सीट पर बैठे विहान की ओर देखा तो चौंक गई। गाड़ी चलाने वाला बिहान नहीं बल्कि रूद्र था और विहान पीछे रूद्र की गाड़ी लेकर आ रहा था।   

    रुद्र को ड्राइविंग सीट पर बैठा देख शरण्या घबरा गई और बोली, "गाड़ी रोक रूद्र......! मैंने कहा गाड़ी रोक........!" लेकिन रूद्र पर इसका कोई असर नहीं हुआ। अपनी बातों को रूद्र पर कानों तक ना पहुंचते देख शरण्या ने चलती गाड़ी में ही दरवाजा खोलने की कोशिश की। उसे रूद्र से कोई बात नहीं करनी थी और ना ही उसकी शक्ल देखनी थी। रूद्र यह बात समझ गया और इससे पहले कि शरण्या दरवाजा खोल पाती, उसने पूरी गाड़ी को लॉक कर दिया और स्पीड बढ़ाते हुए दूसरे रास्ते की तरफ गाड़ी को मोड़ दिया जिससे कि विहान को पता ना चल सके। शरण्या समझ गई कि उसका यहां से बाहर निकलने की कोशिश करना बेकार है और इस वक्त उसे रूद्र से नरमी से पेश आना होगा और उसकी हर बात सुनी होगी लेकिन रूद्र कुछ बोल ही नहीं रहा था। उसने बीच रास्ते में किनारे गाड़ी रोक दी। शरण्या इसी इंतजार में थी कि रूद्र अब कुछ बोलेगा लेकिन रूद्र को समझ नहीं आ रहा था कि वह आखिर करना क्या चाहता है! वह उसे यहां जबरदस्ती क्यों लेकर आया उसे यह तक समझ नहीं आ रहा था, बात करना तो दूर की बात थी!

     शरण्या को लगा शायद रूद्र उसे कुछ कहेगा इसलिए उसने आंखें मूंदकर दूसरी तरफ चेहरा घुमा लिया जिसे देख रूद्र ने स्टियरिंग व्हील को कस कर थामा और गाड़ी आगे बढ़ा दी। शरण्या उसके कुछ कहने का इंतजार में थी। लेकिन उसके पास कहने को कुछ नहीं था। अपने जज्बातों को समझना उसके लिए बहुत मुश्किल हो रहा था। पिछले कुछ दिनों में कुछ ऐसा हुआ उसके साथ जो वह इतना बदल गया। जिस शरण्या के सामने आने से भी वह घबराता था, आज जबरदस्ती उसके साथ बैठा है और जो शरण्या उसपर अपना गुस्सा निकालने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी वही बिना कुछ कहे बिना उसकी ओर देखें, उसे चोट पहुंचा रही थी। रूद्र ने गाड़ी की स्पीड इतनी ज्यादा बढ़ा दी कि कब वह लोग रिसेप्शन के लिए पहुंच गए पता ही नहीं चला। शरण्या ने जब आंखें खोली तो खुद को गाड़ी में अकेला पाया। विहान उसे नीचे उतरने को कह रहा था। उसने जब रूद्र के बारे में पूछा तो विहान बोला, "वह तो कब का निकल गया अपनी गाड़ी लेकर!"

     नेहा को जैसे ही शरण्या के आने की खबर मिली वह भागती हुई दरवाजे पर आई और उसका हाथ पकड़ कर बोली, "कितनी देर लगा दी तूने! कब से इंतजार कर रही हूं तेरा! मुझे तो लगा आज भी तू नहीं आएगी। अगर आज तु नहीं आती तो तुझे छोड़ती नहीं मैं, बता दे रही हूं।" तभी उसकी नजर पास खड़े विहान पर गई जिसे देखकर वो शर्मा गई। शरण्या अच्छे से जानती थी कि उसकी दोस्त नेहा विहान को कितना पसंद करती है लेकिन विहान था कि कभी एक नजर उसे देखता भी नहीं था। उसे अच्छे से एहसास था कि कितना बुरा लगता है जब हम किसी से प्यार करें उसे पसंद करें और वह हमें एक बार देखे भी नहीं। 

     शरण्या उसका ध्यान भटकाते हुए बोली, "अरे ऐसे कैसे नहीं आती? वादा किया था तुझसे और अगर मजबूरी नहीं होती तो अमित भैया की शादी में मैं जरूर होती। क्या है ना कुछ अर्जेंट था इसलिए नहीं आ पाई। अब अंदर चले या अभी यहीं खड़े खड़े तो मुझे वापस भेज देगी? अंदर चल तुझे बहुत बड़ी खबर देनी है।" नेहा ने अपने सर पर मारते हुए कहा, "मैं भी ना! तू चल अंदर, पापा मां भैया भाभी सब तेरा इंतजार कर रहे हैं और भाभी तो खासतौर से जानना चाह रही है कि जिसकी मैं इतनी तारीफ करती हूं वह दिखती कैसी है? अब चल जल्दी, तेरे चक्कर में ना सब भूल जाती हूं मैं!" शरण्या उसे कंधा मारते हुए बोली, "मेरे चक्कर में भूलती है तू?" नेहा उसकी बात सुन शर्मा गई तो शरण्या विहान का हाथ पकड़ अंदर खींचते हुए बोली, "भाई चल ना तु भी मेरे साथ!" लेकिन विहान बोला, "नहीं शरण्या! तेरी फ्रेंड सर्कल में मेरा क्या काम? तु जा अंदर मैं देखता हूं रुद्र को! पता नहीं आज कुछ ज्यादा ही मूड ऑफ है उसका। तुम दोनों के बीच फिर से कुछ हुआ है क्या? फिर से तुमने कुछ कहा उससे? लड़ाई हुई तुम दोनों की? 

      शरण्या बोली, "ना मैंने उससे कुछ कहा और ना ही हमारी लड़ाई हुई। उसका मूड ऑफ क्यों है यह तो तू उसी से जाकर पूछ। पूरे रास्ते मैं चुप रही और वह भी। उसे गुस्सा किस बात का है यह मुझे नहीं पता और ना ही मैंने यह जानने का ठेका ले रखा है। और तु क्या हमेशा उसकी पूछ बनकर घूमता रहता है! तेरी अपनी कोई लाइफ नहीं है क्या? तु चल मेरे साथ, खबरदार जो उसके पीछे भागा तो! उसने कहा तुमसे उसके पीछे आने के लिए? नहीं ना! अगर वह अकेला रहना चाहता है तो रहने दे ना उसे! अब चल मेरे साथ, अंकल आंटी से मिल लेना और थोड़ा अमित भैया से भी। माना तुम दोनों दोस्त नहीं हो इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम दोनों अजनबी हो!" कहते हुए शरण्या उसका हाथ पकड़ कर खींच कर अंदर ले गई। नेहा को भी मौका मिल गया विहान के साथ वक्त गुजारने का वरना विहान को रुद्र के अलावा कोई और दिखता ही नहीं था। 

      अंदर पहुंचते ही शरण्या नेहा के मम्मी पापा से मिली उन्हें पैर छूकर प्रणाम किया और सामने अमित भैया खड़े थे उन्हें शादी की मुबारकबाद दी। विहान ने भी वैसे ही किया और अमित के गले लग गया। "लेकिन भाभी कहां है? वह तो नजर नहीं आ रही! रिसेप्शन उनका भी है भैया! सिर्फ आप का नहीं! शादी आप दोनों की हुई है।" शरण्या ने कहा तो अमित ने हंसते हुए जवाब दिया,"अरे बाबा तुम ने तो आते ही चढ़ाई कर दी। शादी हम दोनों की हुई है और रिसेप्शन भी हम दोनों की है! तेरी भाभी अभी अभी वॉशरूम गई है आती ही होगी। तुमसे ना सब्र नहीं होता। लो आ गई" कहकर अमित ने दूसरी तरफ इशारा किया जहां से उसकी नई नवेली दुल्हन आ रही थी। विहान रूद्र को फोन करने में बिजी था तो शरण्या उसका फोन छीनते हुए बोली, "कुछ देर तो उसे चैन की सांस ले लेने दे और तू भी थोड़ा आराम कर। नौकर नहीं है तु उसका, दोस्त है! हर रिश्तें मे थोड़ी स्पेस भी जरूरी होती है वरना किसी भी इंसान का दम घुट सकता है फिर चाहे वो रिश्ता कितना ही प्यारा और मजबूत क्यों ना हो! और हम लोग यहां अमित भैया और भाभी को शादी की बधाई देने आए हैं भैया से मिल लिया भाभी से भी मिल ले और उसके बाद चले जाना अपने रूद्र के पास।"

     शरण्या ने जब अमित की वाइफ की तरफ इशारा किया तो विहान ने एक उचटती नजर उस नई नवेली दुल्हन की ओर डाला। अचानक से उसके चेहरे के भाव एकदम से बदल गए और जो फोन शरण्या ने उसे पकडाया था वह हाथ से छूटकर नीचे जा गिरा। शरण्या बोली, "यह क्या किया भाई? देख फोन तेरा सही सलामत है या नहीं? कितना लापरवाह हो गया है तू, बिलकुल उस रजिया के साथ रहते रहते उसी के जैसा बन गया है।" विहान ने जल्दी से अपना फोन उठाते हुए उसे चेक किया और बोला, "मुझे कुछ जरूरी काम है मैं जा रहा हूं अभी। तुझे जब आना हो फोन कर देना मुझे मैं आ जाऊंगा तुझे लेने लेकिन अभी मुझे जाना होगा।" कहकर विहान जल्दी से वहां से निकल गया। बाहर आकर गाड़ी में बैठा और चाबी लगाने की कोशिश करने लगा लेकिन उसके हाथ इस तरह कांप रहे थे कि चाबी अंदर डाल ही नहीं पा रहा था। वह उसने दोनों हाथों से स्टेरिंग व्हील को कस कर पकड़ लिया और एक लंबी सांस छोड़ते हुए खुद को शांत करने की कोशिश करने लगा। कुछ देर बाद नॉर्मल हो उसने जल्दी से गाड़ी स्टार्ट की और तेजी से वहां से निकल गया। 

     विहान तो रुद्र के पीछे जाना चाहता था लेकिन इस वक्त उसके खुद के मन में इतनी उत्तल पुथल मची हुई थी कि वह इस वक्त कहां जा रहा था उसे खुद नहीं पता था। बेचैनी और घबराहट उसके दिल में इतनी ज्यादा थी क्योंकि आंखों से आंसू निकल आए। कुछ खो देने का दर्द उसके दिल में इतनी तेज उठा अपनी गाड़ी पर से कंट्रोल खो दिया और गाड़ी जाकर एक पेड़ से टकराई और उसका सर भी स्टेरिंग व्हील से जा लगा। गनीमत यह रही कि एक्सीडेंट छोटा ही था और कोई नुकसान नहीं हुआ, ना ही विहान को चोट लगी। उसने जैसे तैसे खुद को संभाल और गाड़ी से बाहर निकला। दो साल पहले की वो सारी बातें उसके जेहन में घूमने लगी। वह सारे लम्हे उसकी आंखों के सामने किसी फिल्म की तरह चलने लगे। वह चाहकर भी सारे ख्यालों को अपने दिमाग से झटक नहीं पा रहा था। 

    उसके कानों में किसी की कही बात गूंजने लगी, "विहान...!! जा रही हूं मैं, लेकिन हमेशा भगवान से प्रार्थना करूंगी कि जिस भी लड़की से तुम प्यार करो वह तुम्हें मिल जाए क्योंकि हम जिसे प्यार करें और वह हमें ना मिले तो बहुत ज्यादा तकलीफ होती है। तुम्हें तुम्हारी जिंदगी में हर वो खुशी मिले जो तुम चाहते हो, मैं जानती हूं तुम मुझे कभी याद नहीं करोगे क्योंकि मेरी जैसी कई लड़कियां तुम्हारी जिंदगी में आई और गई लेकिन तुम मेरा पहला प्यार हो और पहला प्यार कोई नहीं भूल पाता। आज के बाद मै कभी अब तुम्हारे सामने नहीं आऊंगी। मैं जा रही हूं यहां से हमेशा के लिए तुमसे बहुत दूर।"

     "मानसी......!!!" विहान जोर से चीख पड़ा। उसे एहसास हुआ जो कुछ भी वह सुन रहा था वह सब दो साल पहले हुआ था और इस वक़्त उस रास्ते पर उसके अलावा और कोई नहीं था। विहान वहीं पर सड़क पर बैठ गया किसी लाचार और हारे हुए खिलाड़ी की तरह। अपनी जिंदगी का एक बहुत बड़ा और बहुत ही खास हिस्से को वह खो चुका था। ये उसकी जिंदगी का एक ऐसा सच था इसके बारे में रुद्र भी नहीं जानता था। खुद को अकेला पाकर विहान का दिल और ज्यादा दर्द से भर उठा और वो वही फूट-फूट कर रोने लगा। आज वह अपना सब कुछ खो चुका था जिसे पाने की उम्मीद उसने पिछले 2 सालों से लगा रखी थी। सच कहते हैं लोग कभी-कभी जरा सी देरी और हम सब कुछ खो देते हैं। 

      आखिर ऐसा क्या था उसका सच? 

      





टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही बेहतरिन भाग था मैम!! 👌👌 रुद्र की फीलिंग्स भी अजीब से नए रंग दिखा रही है...!! बेचारा खुद ही कंफ्यूज़ घूम रहा है के उसे करना क्या है??? 🙄🙄 और विहान की भी एक लव स्टोरी है जो शायद अब अधूरी ही है...!! मानसी!! हम्म, काफी इंटरेस्टिंग है ये भी!! नजाने क्या हुआ दो साल पहले? अगले भाग का इंतेज़ार रहेगा!! 😊😊

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