सुन मेरे हमसफर 306

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निशी की फ्लाइट 5 घंटे लेट थी इसलिए उसे बेंगलुरु एयरपोर्ट पहुंचते पहुंचते शाम हो गई। वहां से भी आगे उसे तुमकुर जाना था। एयरपोर्ट पर उतरते ही निशि ने सारांश को कॉल किया "पापा मैं पहुंच गई। आप बस मुझे वहां का एड्रेस भेज दीजिए।"


 सारांश ने बताया "मुझे तुम्हें एड्रेस भेजना की जरूरत नहीं है। मैंने ड्राइवर को बोला है वह एयरपोर्ट के बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहा है। तुम बस बाहर निकालो मैं उसकी आइडेंटी और गाड़ी नंबर दोनों तुम्हें भेज रहा हूं।" सारांश ने फोन रखा और तुरंत ही उन्होंने जरूरी चीज निशि को मैसेज कर दी।


 निशि एयरपोर्ट से बाहर निकली तो देखा ड्राइवर उसके नाम का बोर्ड पकड़े वहां खड़ा था। निशी ने उसकी आइडेंटिटी कंफर्म की और गाड़ी में बैठते ही उसने सारांश को एक मैसेज कर दिया।


अवनी ने सारांश पर नाराज होते हुए कहा "एक बार अंशु से बात तो कर लेते। इस तरह बिना बताए आप निशि को उसके पास भेज रहे हैं। आप जानते भी है अंशु कितने गुस्से में है। आज सिर्फ एक देवेश के कारण तन्वी हॉस्पिटल में है और इस सब का जिम्मेदार अंशु खुद को मान रहा है। वह आपका बेटा है। उसे आपसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता तो आपको यह भी समझ में आना चाहिए कि अंशु किस कदर निशि के साथ बदतमीजी कर सकता है।"


 सारांश ने शांत भाव से कहा "मैं जानता हूं उसे। मेरा बच्चा है, बचपन से ही उसके अंतर्मन को पहचानता हूं। गुस्सा है वह लेकिन वह निशि से उससे कहीं ज्यादा प्यार भी करता है। जब तक वो निशि के सामने अपना गुस्सा नहीं दिखाएगा उसका मन हल्का नहीं होगा। क्योंकि उसका प्यार उसके गुस्से के नीचे दबा है। जब गुस्सा निकल जाएगा तो प्यार भी बाहर आएगा। तुम मां हो उसकी और मैं जानता हूं तुम भी यही चाहती हो कि निशि और अंशु फिर से एक हो जाए। तुमने अंशु को एक बार रोते देखा है लेकिन मैंने दो बार। तुम्हें याद है ना, जब अंशु पैदा हुआ था तो कैसे उसकी सांस नहीं चल रही थी। और जब उसने मेरी गोद में रोना शुरू किया था मुझे लगा जैसे मुझे एक नई जिंदगी मिल गई। और इस बार जब वो रोया तो मुझे लगा जैसे मैं मर जाऊंगा।"


 अवनी ने सारांश के मुंह पर हाथ रखकर कहा "क्या बोल रहे हैं आप! कम से कम ऐसे समय में आप तो इतनी नेगेटिव बातें मत करिए।"


सारांश ने अवनी का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा, "ठीक है नहीं करता ऐसी बात, लेकिन उस एक कारण से तुम निशि से नाराज थी। तुमने कितनी बुरी तरह से उससे बात की यह हम सब ने देखा। लेकिन एक बार तो यह सब के पीछे का कारण जानती। वो हमारे बेटे की खुशी है और तुम उसकी खुशी के साथ इस तरह बर्ताव नहीं कर सकती। मैंने उसे भेजा है तो कुछ सोच कर ही भेजा है। और इस बारे में अंशु को नहीं पता तो तुम भी उसे कुछ नहीं बताओगी।"


 अवनी ने गहरी सांस ली और कहा "मुझे आपके किसी भी फैसले पर कभी कोई डाउट नहीं रहा। बस मुझे अंशु की चिंता है कि कहीं इस सब में वह खुद को हर्ट ना कर ले। आप उससे बात करते रहिएगा। वह आपके ज्यादा क्लोज है।" सारांश ने हा में सर हिलाया और अवनी को गले से लगा लिया। अवनी ने भी अपनी आंखें बंद कर ली और सब कुछ सही होने का प्रार्थना करने लगी।


 दूसरी तरफ बैंगलोर में,


करीब 3 घंटे बाद ड्राइवर ने निशि को अव्यांश के फार्म हाउस के सामने उतारा। निशी अब तक निढाल हो चुकी थी। इतनी देर एयरपोर्ट पर इंतजार करना, फिर फ्लाइट और अब ट्रैफिक में फंसकर। ऊपर से यहां का मौसम ऐसा लग रहा था जैसे अब बूंदे बरस जाएगी जिस कारण इतनी ज्यादा ह्यूमिडिटी हो रही थी कि बाहर निकलते ही निशी के कपड़े पसीने से तर बतर होने लगे। 


  ड्राइवर फौरन वहां से वापस चला गया और निशी अपनी सारी थकान भूल कर अव्यांश से मिलने की खुशी में भागते हुए दरवाजे की तरफ गई और डोर बेल बजाया लेकिन अंदर से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर बाद निशी ने फिर से डोर बेल बजाय लेकिन इस बार भी अंदर से कोई जवाब नहीं मिला। कुछ देर इंतजार करने के बावजूद जब किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो निशि को कुछ डाउट हुआ। उसने सारांश को कॉल किया और पूछा "पापा! यहां शायद कोई नहीं है। आपको पता है अव्यांश अभी कहां है?"


 निशी की बात सुनकर सारांश भी थोड़े परेशान हो गए। उन्होंने कहा "तुम रुको मैं एक बार उसे कॉल करके देखता हूं। तुम कॉल मत करना, ठीक है?"



*****



अव्यांश इस वक्त एक पुराने बंद पड़े फैक्ट्री के गोदाम में था। ये फैक्ट्री अव्यांश ने ही खरीदी थी ताकि यहां पर रिकंस्ट्रक्शन करवा सके। लेकिन फिलहाल यह किसी और ही काम आ रही थी। सर के ऊपर एक पीला बल्ब जल रहा था और वहां पहले ही काफी अंधेरा हो चुका था। अव्यांश एक तरफ कुर्सी पर बैठा था और दूसरी तरफ देवेश घंटों मार खाने के बावजूद वह अभी भी मुस्कुरा रहा था और अव्यांश से उसकी यही मुस्कुराहट बर्दाश्त नहीं हो रही थी।


 अव्यांश के सब्र का बांध अब टूटता जा रहा था। उसने कहा "तुम बस अपने साथियों के नाम बता दो, उसके बाद मैं तुम्हें यहां से जाने दूंगा।"


देवेश ने हंसते हुए कहा "तुम मुझे ज्यादा देर तक यहां रख भी नहीं सकते मिस्टर अव्यांश मित्तल! वह क्या है ना, तुम्हारी कमजोरी मेरे हाथ में है। पिछली बार भी तो तुमने कोशिश की थी ना मुझे जेल भिजवाकर! क्या हुआ? मैं बाहर निकल आया। वैसे ही मैं इस बार भी बाहर आ जाऊंगा। तुम चाहो तो कोशिश करके देख लो।"


 अव्यांश ने एक जोरदार पंच देवेश के नाक पर मारा जिससे देवेश को दिन में तारे नजर आ गए। बड़ी मुश्किल से उसने अपना हो संभाला और कहा "तुम्हें अपना जितना फ्रस्ट्रेशन निकालना है निकाल लो क्योंकि यह सब तुम ज्यादा टाइम तक नहीं कर पाओगे। जैसे ही निशि को पता चलेगा कि तुमने मुझे यहां कैद करके रखा है, देखना फिर कैसे वह तुम्हारे पास आएगी और मुझे छोड़ने की मिन्नत करेगी। तुम कुछ नहीं कर पाओगे, जैसे पिछली बार नहीं कर पाए थे।" देवेश पागलों की तरह हंसने लगा फिर बोला "यह भी सोच लेना कि जो घाव तुमने मुझे दिए हैं, उसके बारे में तुम उससे क्या कहोगे। आई मीन, वह मुझ पर इतना भरोसा करती है कि तुम मुझ पर चाहे जो भी इल्जाम लगा दो वह कभी तुम्हारी बात नहीं मानेगी। क्योंकि वह आज भी मुझसे प्यार करती है, सिर्फ मुझसे।"


 अव्यांश का खून खौल गया उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर देवेश को इतनी जोर से पंच मार कि देवेश कुर्सी समेत पीछे पलट गया और बेहोश हो गया। अव्यांश के आदमियों ने उसे रोकते हुए कहा "सर! अभी आप घर जाइए, हम कोशिश करते हैं इससे सारी बात उगलवाने की।"




इस कार्ड पर नाम तो किसी और का था, मधुरिमा! तो फिर सूची झूठ क्यों बोल रही है? क्या यह पैसे उसे मधुरिमा ने दिया था? जाहिर सी बात है, जब कार्ड मधुरिमा के नाम का है तो पैसे भी उसी के होंगे। तो क्या इन दोनों के बीच कोई डील हुई है? उससे से भी बड़ा सवाल, डील क्या हुई है? क्या यह बात रक्षित को पता है?' 

पता नहीं रौनक के दिमाग में क्या आया, उसने चलते हुए पूछा "एकदम से तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से आ गए? कहीं तुमने रक्षित को बेच तो नहीं दिया?"

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