सुन मेरे हमसफर 302

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 रात हो चुकी थी और सिया जानकी के साथ बैठकर काया की सगाई की तैयारी में लगी थी। अभी अभी तो सारे मेहमानों की लिस्ट बनी थी, अब एक बार फिर उन लिस्ट को यूज करने का मौका मिल रहा था। ऋषभ के घर वालों के लिए क्या लेना है कितना लेना है काफी कुछ डिसाइड हो चुका था और कुछ होना बाकी था। जानकी ने कुछ लिस्ट में और चीजों को जोड़कर पूछा "जीजी एक बार आप देख लीजिए सब सही है ना।"


 लेकिन सिया की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। जानकी ने एक बार फिर पूछा "जीजी.!!!"


 सिया की तंद्रा टूटी और उन्होंने जानकी की तरफ देखकर कहा "क्या अभी यह सब जरुरी है?"


जानकी ने सिया का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा "जीजी! आपने और इस परिवार ने बड़े से बड़े तूफानों का सामना किया है। ये तूफान भी टल जाएगा। आप देखना, सब सही हो जाएगा।


 सिया ने अपनी आंखों में आंसू भर कर कहा "पता नहीं सब कुछ ठीक होगा या नहीं। और अगर ठीक होगा भी तो इसमें कितना वक्त लगेगा। यह सब कुछ हमारे परिवार के साथ ही होना था! हमारे बच्चों की क्या गलती जो उसके साथ यह सब कुछ हो रहा है।"


 शुभ पीछे से आया और सिया के गले में बाहें डालकर कहा "बड़ी मां! आप ज्यादा सोच रही है। जो होना था वह हो गया, हम उसे टाल नहीं सकते थे। लेकिन जो होने वाला है उसे तो संभाल सकते हैं। ऐसी हालत में काया खुद भी अभी सगाई नहीं करना चाहती थी। लेकिन इस सबमें हम उसकी खुशियों को तो नजरअंदाज नहीं कर सकते। घर में कोई नहीं चाहता कि सगाई की डेट आगे बढ़े इसलिए जो हो रहा है वह होने दीजिए। खुश रहने की कोशिश कीजिए तभी सब खुश रह पाएंगे।"


 सिया ने अपने आंसुओं को पोंछा और कहा "पता नहीं। मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा। न जाने हमारे बच्चों के किस्मत में क्या लिखा है। एक के ऊपर से मुसीबत टलती है तो दूसरे पर चली जाती है।"


 जानकी ने सिया को समझाते हुए कहा "जीजी! हिम्मत से काम लीजिए। हमे सिर्फ काया और ऋषभ की ही नहीं बल्कि समर्थ और तन्वी की सगाई भी करनी होगी"


सिया ने इनकार में सिर हिलाकर कहा, "चाहती तो मैं भी यही हूं लेकिन क्या तन्वी इतनी जल्दी तैयार होगी? समर्थ उसके साथ कुछ जबरदस्ती नहीं करेगा। मैं तो चाहती थी कि दोनो शादी एक साथ हो जाती या सोमू की शादी पहले करवा देती लेकिन........"


"अव्यान्श.........!!!" निशी की तेज आवाज उस खाली हॉल में गूंजी जिसे सुनकर जानकी सिया और शुभ तीनों ही चौंक गए। जानकी ने घड़ी में समय देखा और कहा "जीजी ये तो निशी की आवाज लग रही है, वह भी इतनी रात को?"


सिया भी चौंक गई थी। उन्होंने कहा "निशि की आवाज लग नहीं रहा है, निशि ही है।" तब तक निशी की नजर सिया और बाकी दोनों पर पड़ चुकी थी। अब उसे समझ ही नहीं आया कि वह कैसे रिएक्ट करें। यहां आने से पहले तो उसने एक बार भी नहीं सोचा कि क्या किसी को क्या जवाब देना है।


 सिया उठकर निशी के पास आई और पूछा "क्या हुआ बेटा तुम इस वक्त यहां! सब ठीक है ना, कुछ प्रॉब्लम है क्या?"


 निशी ने जाकर सिया के पैर छूए और उनके गले लग कर कहा "हां दादी सब थी है। बस आप लोगों के बाद याद आ रही थी तो मैं चली आई।"


निशी अपनी नज़रे चुरा रही थी, मतलब वह साफ साफ झूठ बोल रही थी।"


 सिया ने कहा "हमारी याद आ रही थी या किसी और की? झूठ ऐसा बोलो कि उसमें यकीन किया जा सके। लेकिन निशी! रात के इस वक्त यहां आई। तुमने वहां से फ्लाइट कितने बजे ली थी? और आना ही था तो सुबह आ जाती।"


जानकी ने कहा, "हां बेटा! इतनी रात को तुम्हें नहीं आना चाहिए था। और अगर आ ही रही थी तो हमें फोन कर देती। हम किसी को लेने के लिए भेज देते। और किसी को नहीं तो एटलिस्ट ड्राइवर चला जाता तुम्हें लेने के लिए। वहां से आने में कितनी परेशानी हुई होगी तुम्हें।"


शुभ ने पूछा, "वो सब ठीक है लेकिन तुम यहां इस वक्त आई क्यों? तुम्हारे कजिन की शादी है। अभी तो शादी की रस्में शुरू हुई होगी।"


 निशी से कुछ कहते नहीं बन रहा था। सिया ने उसकी परेशानी को समझा और सबको चुप कराते हुए कहा "कितना सवाल करते हो तुम लोग! यह बेचारी थकी हुई है, इतनी दूर से आई है और इसे आराम करने देने की बजाए तुम लोग सवाल पर सवाल किया जा रहे हो। यहां नहीं आएगी तो कहां जाएगी! जानकी, जाओ जाकर निशी के लिए खाना गर्म करो, उसने कुछ खाया नहीं होगा। अगर कुछ नहीं भी है तो जल्दी से कुछ बना दो। निशि बेटा तुम जाकर फ्रेश हो आओ।"


निशी ने जानकी मौसी को इनकार करते हुए कहा "मैंने रास्ते में खा लिया था कुछ, मुझे भूख नहीं है। मेरे लिए कुछ बनाने की जरूरत नहीं है। आप लोग आराम करिए। मैंने इतनी रात को आप सबको डिस्टर्ब किया।"


अवनी इस वक्त पानी लेने के लिए कमरे से बाहर निकली थी। निशि को इस तरह सामने खड़े देख वह हैरान रह गई। उन्होंने तल्ख लहजे में पूछा "यह यहां क्या कर रही है?"


 सिया को अवनी का यह लहजा बहुत अजीब लगा। उन्होंने अवनी को प्यार से डांटते हुए कहा "अवनी, यह क्या बात हुई बेटा!"


 अवनी ने तुरंत अपना लहजा बदला और कहा, "निशी इस वक्त यहां क्या कर रही है? उसे लेने तो कोई नहीं गया था और वह खुद अपनी मर्जी से गई थी। जिस काम के लिए गई थी वह तो अभी पूरा हुआ नहीं तो फिर यहां क्या कर रही है?"


अवनी अपने आवाज में चाह कर वो नरमी नहीं ला पा रही थी जो कुछ दिनों पहले तक निशी के लिए था। निशी के लिए वह उसकी मां थी लेकिन उसी निशी के कारण जिस तरह अंशु रोया था, अवनी चाह कर भी उसे भूला नहीं पा रही थी। सिया ने उन्हें भी डांटते हुए कहा "सारे सवाल अभी ही कर लोगे तुम लोग? बच्ची आई नही कि सब शुरू हो गए। अब छोड़ो यह सब। निशी! जा बेटा जाकर फ्रेश हो आ।"


 निशि अपने कमरे में जाने को हुई तो अवनी ने कहा "कुछ भूल गई थी शायद, वही लेने आई है?"


निशी ने थोड़ा हकलाते हुए कहा "मॉम! वह मैं बस......"


अवनी ने उसकी बात पूरी नहीं होने दी और कहा ,"कुछ लेने ही आई होगी। क्योंकि अगर वापस आना होता तो तुम अपना सामान लेकर आती, इस तरह खाली हाथ बिल्कुल नहीं आती। ले लो जो चाहिए, और कल सुबह वापस चली जाना।" अवनी चाह कर भी खुद को तो कंट्रोल नहीं कर पा रही थी।


 इससे पहले कि उनके मुंह से और भी कुछ निकल जाए वह तुरंत वहां से किचन में चली गई। सिया और जानकी परेशान सी अवनी को देखे जा रही थी। निशि को शक हो गया कि शायद अव्यांश ने उन्हें सारी बातें बता दी होगी। निशि वहां से जाने को हुई लेकिन फिर एकदम से रुक कर उसने सिया से पूछा "दादी! वो अव्यांश कहां है? घर पर ही है न?"


 अवनी किचन से पानी लेकर आई। उसने निशि का सवाल सुना और सिया से पहले उसने ही जवाब देते हुए कहा "उसके आने जाने का कोई टाइम नहीं रहता अब। अपने काम में वह इतना ज्यादा बिजी है कि वह कब घर आता है कब नहीं आता है, कब कहां होता है इस बारे में हमें जानकारी नहीं होती। अगर इतनी परवाह है तो फोन करके पूछ लो उससे।"


इस बार सिया से रहा नहीं गया। उन्होंने पूछा "अवनी! ये क्या तरीका है बेटा? कुछ हुआ है क्या तुम दोनों के बीच? अचानक से क्या हो गया है तुम्हें? अपनी बहू से कोई इस तरह बात करता है क्या? मैंने तुम्हें यही सिखाया है?"


अवनी ने अपने आंसू छुपाते हुए कहा, " सॉरी मॉम! घर में इतनी सारी परेशानियां देख रही हूं कि मेरा किसी चीज में मन ही नहीं लग रहा। न जाने कब सब कुछ सही होगा?" अवनी फौरन वहां से अपने कमरे में चली गई। सारांश कमरे के बाहर खड़े ये सब कुछ देख रहे थे। उन्होंने नाराजगी से अवनी की तरफ देखा लेकिन कहा कुछ नहीं।


निशि चुपचाप अपने कमरे में चली गई। कमरा पूरी तरह खाली था। कोई नही था वहां। इन तीन दिनों में कुछ नहीं बदला था। लेकिन निशि और अव्यांश की शादी की तस्वीर उस कमरे से गायब थी जो बेड के दूसरे तरफ लगी थी। निशी जब भी अपनी आंखें खोलती, उसे उसकी शादी की तस्वीर सामने नजर आती थी और इस कमरे में उसे तस्वीर की एक जगह बन गई थी। उस एक तस्वीर के न होने पर वह कमरा अजीब तरह से सूना सा लग रहा था। दूसरे में अव्यांश के न होने का एहसास। उसे रोने का मन कर रहा था।




रौनक ने अपनी आंखें बंद की। उन बंद आंखों में उसे एक चेहरा नजर आया जिसे याद कर उन पलको से एक बूंद आंसू छलक कर रौनक के गाल पर गिर आए। रौनक ने जल्दी से अपनी आंखें खोली और अपने आंसू को पोंछते हुए कहा "ऐसा कुछ नहीं है मॉम! मैंने कभी किसी से प्यार नहीं किया और ना कोई लड़की थी मेरी लाइफ में। ऐसी लड़कियां कई आई और गई। मैं किसी को लेकर सीरियस नहीं था।" Click below 👇

कहते हैं प्यार किसे? Ch 71




टिप्पणियाँ

  1. Part bhout aacha hai pe avyansh khen hai.. Siya nishi se ekdum normal react kr rhi hain.. Kya gher me hone wali tension ka unhe pta nhi hai ya vo khud ko strong bnane ki kosish kr rhi hai.. Aur vo janki
    se kis preshani ki baat kr rhi thi?

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