सुन मेरे हमसफर 287

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सारी रस्मों के पूरे हो जाने के बाद कुणाल काफी घबराते हुए अपने कमरे में गया। शिवि से क्या बात करनी है कैसे बात करनी है और वह किस तरह से रिएक्ट करेगी, बस इसी सबमें उलझा हुआ था। एक अजीब सी घबराहट उसे हो रही थी जैसे वह कोई पहली बार इंटरव्यू देने जा रहा हो।


 कमरे में शिवि दुल्हन के जोड़े में खिड़की के पास खड़ी बाहर देख रही थी। कुणाल कमरे में तो गया लेकिन उल्टे पैर वापस भाग आया। शिवि ने उसकी यह हरकत नोटिस कर ली और मन ही मन सोचा 'इसको क्या हुआ है? कहीं कुछ और प्लान तो नहीं कर रहा? नहीं। ऐसी वैसी कोई हरकत नहीं करेगा ये, भाई ने पहले ही डरा के रखा है।'


 कुणाल बाहर आया और भागते हुए कॉरिडोर के दूसरी तरफ जाकर उसने अपने दोस्त कार्तिक सिंघानिया को फोन लगाया। कार्तिक रात भर के जागरण से थका हुआ था और उसे नींद आ रही थी। इस टाइम कुणाल का फोन आते देखा उसने झुंझला कर फोन उठाया और कहा "अब क्या हो गया? इस टाइम तुझे अपनी वाइफ के साथ रोमांस करना चाहिए और तु मेरे साथ लगा पड़ा है! देख, मैं पहले ही बता दे रहा हूं, मैं उसे टाइप का नही हूं।"


 कुणाल ने भी उसी लहजे में जवाब दिया, "हां तो मैं भी उस टाइप का नहीं हूं। मेरी ऑलरेडी एक पत्नी है। तेरे साथ रोमांस करके मैं अपना मुंह का टेस्ट क्यों खराब करूंगा साले!"


 कार्तिक सिंघानिया ने परेशान होकर कहा "जब तुझे पता है सब कुछ तो फिर मुझे फोन क्यों किया? जा अपने कमरे में, वह तेरा इंतजार कर रही है।"


 इस बात पर कुणाल ने अपनी परेशानी जाहिर करते हुए कहा "अबे यार, वही तो नहीं हो रहा मेरे से। कोशिश कर रहा हूं कमरे में जाने की लेकिन हिम्मत ही नहीं हो रही।"


 कार्तिक सिंघानिया ने उसे ताना मारा "अच्छा बेटा! अंगूठी ढूंढते हुए उसका हाथ पकड़ने की हिम्मत थी तेरे में लेकिन उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं हो रही? कमाल है बेटा, बहुत अच्छा जा रहे हो! कहीं ऐसा ना हो कि तेरी इस हरकत से शिवि नाराज हो जाए और सच में एक जहर का इंजेक्शन तुझे मार दे। गला काटते तो देखा ही है तूने उसे।"


कुणाल ने घबराकर कहा "तेरे दिमाग में उल्टी सीधी बातें ही आती है? क्यों कुछ अच्छा नहीं सोच सकता है तू?"


 कार्तिक ने हंसते हुए कहा "जिसका नया-नया पति कमरे में आने की बजाए अपने दोस्त के साथ लगा पड़ा हो उसकी बीवी उसका मर्डर ही करेगी। अब जा जल्दी और सुन! जाकर सबसे पहले अपने प्यार का इजहार कर देना। ऑल द बेस्ट एंड बेस्ट ऑफ लक।"


 कुणाल ने डरते हुए पूछा "अबे साले! तू मुझे युद्ध के मैदान में भेज रहा है क्या?"


 कार्तिक ने भी हंसते हुए कहा "प्रेम भी तो एक युद्ध का मैदान ही है भोले! जा जाकर अपनी तलवार निकाल, युद्ध तो पहले ही जीत चुका है। अब हिम्मत करके अपने दिल की बात कह दे। अब फोन रख और मुझे सोने दे।" कार्तिक सिंघानिया ने कुणाल की कोई भी बात सुने बिना ही फोन रख दिया।


 कुणाल की क्या परेशानी थी वह बहुत अच्छे से समझ रहा था लेकिन यह सब में अगर कोई कुछ कर सकता था तो वह था सिर्फ कुणाल। वहां से अपने घर आने से पहले भी कार्तिक सिंघानिया ने उसे अच्छा खासा मोटिवेशनल लेक्चर दिया था लेकिन शिवि के सामने जाते ही कुणाल का सारा मोटिवेशन घुटनों में आ गया। 


कुणाल परेशान हो गया था।उसकी मां ने उसे तरह कॉरिडोर में टहलते हुए देखा तो पूछा "क्या हो रहा है यहां पर?"


 कुणाल ने अपने डर को अपने मन के अंदर दबाया और कहा "कुछ नहीं मॉम! मैं वह.... मैं.... बस मुझे फोन करना था। आई मीन मेरा कॉल आया था तो उसको अटेंड करने के लिए मैं यहां चला आ।"


 कुणाल की मॉम ने कुणाल के हाथ में पकड़े उस फोन को देखा और कहा "बात हो गई ना? तो अब जाओ कमरे में।"


 कुणाल ने हकलाते हुए कहा "हां मैं रहा था। मैं बस जा ही रहा था।"


 कुणाल डरते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ा। कुछ कदम चलकर उसने पीछे पलट कर देखा तो उसकी मां मुस्कुरा रही थी। कुणाल ने अपने सीने पर हाथ रखा और जैसे-तैसे अपने कमरे के बाहर पहुंचा। अंदर जाने से पहले उसने एक बार फिर नजर घुमा कर अपनी मां की तरफ देखा, उसकी मां अभी भी खड़ी थी। कुणाल के पास कोई और ऑप्शन नहीं था वह जल्दी से कमरे में दाखिल हुआ और दरवाजा बंद कर लिया। कुणाल की मॉम भी वहां से चली गई लेकिन कुणाल के सामने अब शिवि भौंहे टेढ़ी किए खड़ी थी।


*****



मित्तल निवास में,



अव्यांश छत पर खड़ा था। जो कुछ हुआ था उससे घर वाले नाराज थे। घर वालों में भी एक सिया थी और एक उसकी मां। वाकई अगर यह प्लान फेल होता या इसमें जरा सी भी कोई गड़बड़ होती तो कूहू और नेत्रा दोनों की लाइफ खतरे में आ जाती। इतना सब कुछ सोचने का टाइम ही नहीं था। उसे जो ठीक लगा उसने वही किया। निर्वाण तो आग लगाकर वहां से जा चुका था। चित्रा ने उसे बुरी तरह हड़काया था ऐसे हड़काया था कि उसने भागने में ही अपनी भलाई समझी। अब काव्य और कार्तिक चित्र के साथ कैसे पेश आते यह तो उनका मैटर था। फिलहाल यहां अव्यांश मायूस खड़ा था।


 निशि की मां ने निशि को समझाते हुए कहा "इतना कुछ हो गया, तुझे इस वक्त अव्यांश के पास होना चाहिए।"


 मिश्रा जी ने भी निशि को समझाते हुए कहा "अव्यांश के इरादे गलत नहीं थे बस उसका थोड़ा तरीका थोड़ा रिस्की था। सिया जी की नाराजगी समझ में आती है। इस तरह की हरकत से काफी कुछ गलत हो सकता था। नहीं हुआ ये भगवान की कृपा है। इस वक्त उसे तेरी सबसे ज्यादा जरूरत है। पति-पत्नी चाहे कितना भी आपस में लड़ते हो लेकिन जब इंसान खुद को सबसे ज्यादा अकेला महसूस करें उस वक्त वह अपने जीवनसाथी को ही ढूंढता है। जा जाकर देख उसे।" निशि खुद भी तो बात करना चाह रही थी। अव्यांश ने क्या देखा क्या समझा इस बात को भी तो क्लियर करन था।


 निशी भागते हुए छत पर आई लेकिन अव्यांश को अपने सामने पीठ किए खड़ा देख वह रुक गई। 'पता नहीं यह मुझसे बात करेगा भी या नहीं। इसके मूड का तो कोई भरोसा ही नहीं होता। वैसे ही पिछले कुछ दिनों से मेरी कहां सुन रहा है! निशि दबे पांव अव्यांश की तरफ बढ़ी और बड़ी हिम्मत चुराकर उसने अव्यांश के कंधे पर हाथ रखना चाहा लेकिन अव्यांश ने बिना पीछे देख कहा "तुम क्यों आई हो यहां पर?"


 निशि के मुंह से गलती से निकल गया "वह मां पापा ने कहा कि......" अव्यांश एकदम से पलट गया और निशि अपनी बात पूरी नहीं कर पाई।


 अव्यांश ने निशी की तरफ देखते हुए कहा "इंसान को कोई भी काम किसी के कहने पर नहीं करना चाहिए। अगर तुम्हारा मन नहीं था तो तुम्हें नहीं आना चाहिए था। एटलीस्ट झूठ ही बोल देती तो शायद मुझे अच्छा लगता। खैर छोड़ो यह सब, अब तुम आ ही गई हो तो मैं सोच रहा हूं तुमसे थोड़ा बात कर लूं।"


 अव्यांश का यह बर्ताव अब निशि को खलने लगा था। बात करने की बात सुनकर निशि ने भी कहा "हां! मुझे भी तुमसे बात करनी है। वह तुमने जो देखा......"


 अव्यांश ने एकदम से अपना हाथ दिखाकर निशी को चुप रहने का इशारा किया और कहा "मैंने क्या देखा क्या नहीं यह इंपॉर्टेंट नहीं है। इंपॉर्टेंट यह है कि तुम क्या चाहती हो और तुम जो चाहती हो वही होगा। निशी! मैं तुम्हें बांधकर नहीं रख सकता और ना मैंने कभी तुम्हें बांध कर रखने की कोशिश की है। रिश्ते दिल से निभाए जाते हैं और जिस रिश्ते में प्यार ही नहीं हो और ना ही सम्मान हो, ऐसे रिश्ते का टूट जाना बेहतर होता है। अब तो ऐसी कोई वजह भी नहीं रही कि मैं तुम्हें रोक सकूं। शिवि दी की शादी हो गई और वह अपने ससुराल चली गई। आगे तुम्हें इस सबमें इंवॉल्व होने की जरूरत नहीं है। अपना सामान पैक कर लेना, शाम को तुम अपने मम्मी पापा के साथ वापस बेंगलुरु जा रही हो।"


 अपने बेंगलुरु जाने की बात सुनकर निशी का दिल धक से रह गया। "सामान पैक कर लो, मतलब?" निशि ने पूछा तो अव्यांश ने वापस पलट कर अपने आंखों की नमी छुपाई और आसमान की तरफ देखते हुए कहा "मतलब यह कि मैं नहीं चाहता था, घर की इस शादी में किसी भी तरह का कोई हंगामा हो। शादी सही से संपन्न हो गई, अब मुझे तुम्हें बांध के रखने की जरूरत नहीं है। घर की बहू होने की जिम्मेदारी तुमने काफी अच्छे से निभाई है। अब मैं तुम्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त करता हूं। आज तुम्हारा इस घर में आखिरी दिन है। अपना सामान पैक कर लो, बाकी का मैं भिजवा दूंगा। अब तुम्हें मुझसे कोई परेशानी नहीं होगी।"


 निशी हक्की बक्की रह गई। क्या कहें उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन शब्द उसे मिले ही नहीं। कहां तो वह अव्यांश को समझने आई थी और कहां अव्यांश एकदम से हर रिश्ता तोड़ने को कह रहा था। निशि को चुप देख अव्यांश वापस उसकी तरफ घुमा और कहा "तुम घर वालों की टेंशन मत लेना। मैं कह दूंगा कि मेरी लाइफ में कोई है इसलिए मैं तुमसे रिश्ता तोड़ रहा हूं। कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा। बाय!" अव्यांश नजर झुकाए वहां से चला गया।


निशी अव्यांश को जाते देखती रही। क्या करें? अब क्या करेगी निशी? अपने ऐसे ही रिश्ते को टूटने देगी? 'नहीं! मुझे कुछ करना होगा! मुझे कुछ करना होगा!!' निशि घबराई हुई थी अव्यांश के पीछे भागी।


 

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