सुन मेरे हमसफर 199

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      जैसे ही अव्यांश की नजर निशी के मम्मी पापा पर गई, वह भी मुस्कुरा कर उनके पास आया और दोनों के पैर छूकर बोला "कोई प्रॉब्लम तो नहीं हुई आप लोगों को आने में?"


    मिश्रा जी उसे गले से लगा कर बोले "कोई तकलीफ नहीं हुई बच्चा! तुम्हारे रहते कोई तकलीफ हो सकती है क्या?"


     अव्यांश बड़ी मासूमियत से बोला "हां यह बात तो है। वह क्या है ना, शुरू के 6 महीने में मेरे कारण आपको जितनी प्रॉब्लम फेस करनी पड़ी है, उसके मुकाबले ये तो कुछ नहीं। उसके बाद मैने बहुत कुछ सीखा है, आपने बहुत कुछ सिखा दिया है।" मिश्रा जी और अव्यांश दोनों ही हंस पड़े।


   अव्यांश बड़े नॉर्मल तरीके से बोला "आप लोग यहां क्यों खड़े हैं? चलिए, अंदर चलकर फ्रेश हो लीजिए। आप लोगों के कपड़े मैं तैयार करवा कर रखे है। आपका सामान मैं घर भिजवा दे रहा हूं।"


      कार्तिक ने सुना तो बोले "क्यों बेटा, घर क्यों भेज रहे हो इन्हें? क्या यह लोग यहां नहीं रहेंगे? मिश्रा जी हमारे भी तो अपने हैं!"


    अव्यांश ने अपने कार्तिक चाचू के कंधे पर हाथ रखा और उन्हें साइड में ले जाकर धीरे से बोला "चाचू जाने दो ना इनको! बुजुर्ग लोग हैं थके हुए है। वैसे भी, यहां तो हम लोगों का प्रोग्राम होने वाला है ना! हमारे प्रोग्राम में इनको कैसे शामिल करेंगे? मेरी इमेज खराब हो जायेगी इनके सामने।"


    कार्तिक ने ऐसे एक्सप्रेशन दिखाए जैसे वह सब समझ गए। अव्यांश नहीं चाहता था कि उसके और निशि के बीच की प्रॉब्लम किसी को पता चले, खासकर मिश्रा जी और रेनू को इसलिए उन दोनों को मित्तल हाउस भेज कर वह खुद यहां कुहू के घर रुकने वाला था। दोनों चाचा भतीजे को खुसर फुसर करते देखा मिश्रा जी बोले "क्या बातें हो रही है?"


     अव्यांश मुस्कुरा कर उनके पास आया और बोला "कुछ नहीं पापा, वह हमारी आपस की बात है। मैं आपका सामान ड्राइवर से बोलकर घर भिजवा दे रहा हूं आप चलकर फ्रेश हो लीजिए।" तभी अव्यांश के फोन में मैसेज आया। उसने उसे मैसेज को देखकर कहा "लो! ड्राइवर तो चला भी गया। अब तो चलिए!"


    रेणु जी परेशान होकर बोली "अरे लेकिन हमारे कपड़े तो उसी बैग में थे।"


     अव्यांश ने उन दोनों को कंधे से पकड़ा और अपने साथ ले जाते हुए बोला "उस कपड़े की जरूरत नहीं है, आप घर चलकर पहन लेना। यहां हम सब ने थीम डिसाइड किया था और उसी के हिसाब से सबके कपड़े तैयार है। कुछ सोचने की जरूरत नहीं है आप बस हमारे साथ चलो।"


    अव्यांश पूरे हक़ से निशी के मम्मी पापा को वहां से लेकर गया। निशि एक साइड ऐसे खड़ी रही जैसे वह कोई अजनबी हो। ना मिश्रा जी ने और ना ही रेनू जी ने निशी पर ध्यान दिया।




     कुहू को हल्दी लग रही थी लेकिन उसके चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी, बस जबरदस्ती की एक मुस्कान थी। अव्यांश वापस आया और कुहू के पास चला गया। न जाने क्या सोचकर कुहू ने शरारत से अव्यांश के गाल पर हल्दी लगा दी। अव्यांश, जो कुछ लेने के लिए हाथ बढ़ा रहा था, एकदम से अपने गाल को छूकर वहां से हल्दी हटाते हुए बोला "क्या दी! आपको मैं ही मिला था?"


     कुहू हंसते हुए बोली "तेरा भी शगुन हो गया। चल, अब अगली बारी तेरी।"


     अव्यांश को उसका मजाक अच्छा नहीं लगा लेकिन अपनी बहन को वह कुछ कह नहीं सकता था। अव्यांश ने अपने हाथ में लगे हल्दी को देखा और वहां से चला गया।


     निशी चुपचाप एक साइड बैठी हुई थी। उसके हथेली में दर्द हो रहा था और हल्की चुभन महसूस हो रही थी। अव्यांश आया और एकदम से उसका हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए ले गया। निशि अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली "क्या कर रहे हो तुम, छोड़ो मेरा हाथ! मैंने कहा छोड़ मेरा हाथ!!" लेकिन अव्यांश ने जैसे सुना ही नहीं और ना ही उसने निशि का हाथ छोड़ा। वो निशी को लेकर किचन में गया और उसे एक तरफ खड़ा कर दिया।


    निशि बोली "क्या बदतमीजी है यह? क्या, करना क्या चाहते हो तुम? मुझे यहां किचन में क्यों लेकर आए हो? देखो अगर तुम्हें लगता है कि मैं यहां मैं तुम्हारे लिए कॉफी बनाऊंगी तो भूल जाओ, मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली।"


    अव्यांश ने कुछ नही कहा। उसने चुपचाप एक कटोरी में सरसों का तेल निकाला और उसे चूल्हे पर गर्म करने लगा। सरसों का तेल काफी ज्यादा गर्म हो चुका था और उसमें से धुंआ निकालने लगा था। निशी यह देखकर बोली "करना क्या चाह रहे हो तुम? इस तरह तेल को जला क्यों रहे हो तुम?"


   अव्यांश कुछ नहीं बोला जैसे उसे कुछ सुनाई ही ना दिया हो। अपने आप को इग्नोर होते देख निशि वहां से जाने को हुई लेकिन अव्यांश ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अपनी तरफ खींच लिया। निशी सीधे जाकर अव्यांश से टकराई और उसके सीने से जा लगी जिससे अव्यांश के चेहरे की हल्दी निशि को भी लग गई लेकिन अव्यांश ने एक बार भी नजर उठाकर उसकी तरफ नहीं देखा। उसका हाथ पकड़े ही अव्यांश ने माचिस की डिब्बी निकाली और उसमें से एक तीली लेकर उसकी लकड़ी के सहारे निशि की हथेली पर वह गर्म तेल रखने लगा।


     निशी को थोड़ा दर्द हुआ। वह चिल्लाई तो अव्यांश बोला "इंफेक्शन नहीं होगा और अंदरूनी घाव भी जल्दी से भर जाएगा। देसी नुस्खा है, तुम चाहो तो डॉक्टर के पास जाकर इंजेक्शन ले सकती हो।"


    निशि ने अव्यांश को बड़े ध्यान से देखा उसके चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं थे लेकिन बड़े ध्यान से निशी की हथेली पर गरम तेल थोड़ा थोड़ा लेकर डाल रहा था जहां उसे अव्यांश की घड़ी चुभी थी। उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया था इनफैक्ट इस सब में तो वह भूल ही गई थी लेकिन अव्यांश को याद था।


    अव्यांश धीरे से बोला "सॉरी! मुझे नहीं पता था मेरी घड़ी से तुम्हें चोट लग जाएगी। क्या है ना, गलतियां करने की आदत है मुझे। बहुत कोशिश करता हूं सब कुछ सही करने की लेकिन फिर भी कुछ ना कुछ गलत हो ही जाता है। हमेशा सोचता हूं कि किसी का दिल ना दुखाऊ लेकिन इंसान हूं, गलती हो हो जाती है मुझसे।" 


   निशी ने कुछ नहीं कहा। अव्यांश भी चुपचाप अपना काम करके वहां से चला गया। निशि बस सोचती रह गई।

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