सुन मेरे हमसफर 197

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     पीला कुर्ता और सफेद चूड़ीदार पहने समर्थ तैयार होकर बाहर आ चुका था। श्यामा उसकी बलाए लेकर बोली "बहुत प्यारे लग रहे हो।" श्यामा ने अपनी आंखों का काजल समर्थ के कान के पीछे लगा दिया। समर्थ लजा कर बोला "क्या मॉम आप भी! छोटा बच्चा नहीं हूं मैं जो आप इस तरह.....!"


     श्याम उसके कान खींचकर बोली "अच्छा! अब मुझे बताएगा!! शादी होने वाली है तुम्हारी, पता है मुझे, बच्चे नहीं हो तुम। लेकिन कहते हैं, जब किसी का रिश्ता तय हो जाता है ना, तो उसको दुनिया की नजर बहुत जल्दी लगती है। इसलिए तन्वी से भी कहना कि वो नजर का टीका लगाकर घर से निकले। वैसे दोनों साथ में ही होते हो ना पूरा दिन?"


   समर्थ अफसोस करते हुए बोला "कहां मॉम! कल ऑफिस नहीं गया था, आज भी ऑफिस जाने का चांस नहीं है। 2 दिन से मिला नहीं उससे।"


    श्यामा हंसते हुए उसके गाल पर चपत लगाकर बोली "बदमाश! बस उसका ख्याल रखना। अब जाओ जल्दी।"


   समर्थ चारों तरफ देखते हुए बोला "मैं अकेले जाऊं? अंशु कहां है?" तभी उसे सामने से अव्यांश आता दिखा।


     अव्यांश धीमी कदमों से चलकर आ रहा था। समर्थ की नजर जब उसे पर पड़ी तो उसने जाकर अव्यांश की बांह पड़ी और बोला "कहां था तू? कब से ढूंढ रहा हूं तुझे! चल जल्दी।" 


    अव्यांश जैसे नींद से जा। "हां मैं बस आ ही रहा था।" समर्थ ने उसे ऐसे खोया हुआ देखा तो पूछा "तुझे क्या हुआ? तेरे चेहरा क्यों लटका हुआ है?"


     अव्यांश जबरदस्ती मुस्कुरा कर बोला "वह क्या है ना भाई! आज दूसरा दिन है और मैंने अपनी भाभी को नहीं देखा, एक भर भी नही।" समर्थ ने अव्यांश के पेट में एक पांच मारा और उसे कंधे से पकड़ कर कमरे में चला गया।


    कुहू तैयार होकर बैठी थी। चित्रा बस उसके मांग में फूलों का टीका लगा रही थी। समर्थ और अव्यांश ने जब कुहू को इस रूप में देखा तो दोनों एक साथ बोल पड़े "कितनी बेकार लग रही हो यार! किसने तैयार किया है ऐसे?"


    कुहू, जो अब तक बहुत खुश नजर आ रही थी, एकदम से उसका चेहरा उतर गया और उसके उतरे हुए चेहरे को देखकर चित्रा अपने दोनों हाथ कमर पर रख दोनों भाई को डांटते हुए बोली "किसने बोली यह बात? सामने आए मेरे! आगे आओ, दोनों में से किसने बोली यह बात? उसकी तो मैं अच्छे से खबर लेती हूं।"


    दोनों ही भाई की हिम्मत नहीं थी कि वह एक कदम भी आगे बढ़े। लेकिन दोनों ही भाई ने एक दूसरे की तरफ इशारा कर दिया। चित्रा गई और दोनों के कान पड़कर उन्हें कमरे में खींचते हुए बोली "खबरदार जो मेरी बच्ची को ऐसी वैसी कोई भी बात बोली तो!"


     समर्थ अपना काने छुड़ाते हुए बोले "बुआ सॉरी! हम तो बस यह कह रहे थे कि कुहू कितनी प्यारी लग रही है।"


   अंशु भी बोला, "हां! आखिर लगेगी क्यों नहीं, आपने जो तैयार किया है! और आप तो हो ही सबसे ग्रेट।"


    चित्रा ने दोनों के कान छोड़ दिए। दोनों भाई ने बारी बारी से चित्रा को मक्खन लगाने की कोशिश की तो चित्रा अपने दोनों हाथ खड़े करके बोली "तुम लोगों को यह दिख रहा है?"


   समर्थ और अव्यांश दोनों एक साथ बोले "दिख रहा है। लेकिन यह है क्या?"


    चित्रा बड़े प्यार से बोली "इसे थप्पड़ कहते हैं! अब जल्दी से अपनी बहन को लेकर जाओ और मुझे मक्खन लगाना बंद करो वरना ये दोनों तुम दोनों को पड़ेंगे।"


     समर्थ और अव्यांश दोनों बचते हुए बड़ी सावधानी से चित्रा के हाथ के नीचे से निकल गए और कुहू के पास जाकर बोले "बहुत प्यारी लग रही हो। आज तो कुणाल बाबू लट्टू हो जाएंगे।"


   अव्यांश मुंह बना कर बोला "कहां से लट्टू होंगे! वह तो हॉस्पिटल में पड़ा है। उसकी रस्म तो वही होनी है। क्या पता हो भी गई होगी।"


    कुहू ने आईने में खुद को देखते हुए कहा "हो गई होगी नहीं, हो गई है। तभी तो उसकी झूठी हल्दी यहां आई है।"


    अव्यांश गंदी सी शक्ल बनाकर बोला "छी!!! मतलब उसकी झूठी जल्दी आप लगाओगे? मतलब सच में?"


     कुहू ने अव्यांश के सिर पर थोड़ा जोर से थप्पड़ मारा और बोली "जब तू और निशी दोबारा से शादी करोगी ना, तब पता चलेगा कि कौन सी रसम होती है और कौन सी नहीं।" अंशु की सारी खुशी हवा हो गई।


  "लेकिन तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? आई मीन, समर्थ भाई! वो दोनों शैतान कहां है? और मुझे तो चित्रा मॉम लेकर जाएंगे ना?"


    निशि अपने हाथ में एक छोटा सा लकड़ी का तख्त, जिसको आम बोलचाल में पीढ़ा कहते हैं, वह लेकर आई और बोली "दी! आपको इस पर बैठकर जाना है।"


     कुहू ने देखा तो उसकी आंखें खुशी से चमक उठी। उस लकड़ी के पीढ़े पर हल्दी आटे से बड़ी खूबसूरत रंगोली जैसी बनाई गई थी, जिसको अरपण कहते हैं। कुहू उठी और जाकर उसे देखने लगी तो अव्यांश बोला संभाल के बैठना दी वरना कपड़े में लग गया ना तो पूरा ड्रेस खराब हो जाएगा।"


     समर्थ ने उसके सर पर मारा "पागल! वो सूख चुका है और वैसे भी, लग भी गया तो क्या हो गया! आज तो उसे पूरे हल्दी से नहाना है।"


     अव्यांश मासूमियत से बोला "मुझे क्या पता। मेरी शादी में थोड़ी ना यह सब हुआ था।"


    अव्यांश की मासूमियत देखकर निशि का दिल पिघल गया लेकिन फिर जल्दी ही अपने दिल को मजबूत कर वह वहां से वापस लौट गई। किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया सिवाए अव्यांश के। समर्थ बोला "जल्दी से बैठो इस पर, लेकर जाना है तुझे।"


   कुहू आराम से उस तख्ते पर बैठ गई और दोनों तरफ से उसके दोनों भाइयों ने उसे उठा लिया। सीढ़ी से नीचे आते हुए दोनों भाई थोड़ा डर रहे थे लेकिन आंखों ही आंखों में दोनों ने कुछ बातें की और बड़े ही आराम से उसे लेकर नीचे उतरने लगे। कुहू पहले कभी इस कंडीशन में नहीं फंसी थी। उसे भी डर लग था। उसने दोनों भाई के कंधे पर हाथ रख लिए।


    काया और सुहानी बड़े प्यार से ऐसा होते हुए देख रहे थे लेकिन उन्हें भी डर लग रहा था। काया बोली "मैं मेरी शादी में ऐसी रसम नहीं करवाऊंगी। अगर हुआ भी तो मैं अपना कमर नीचे शिफ्ट करवा लूंगी।"


     सुहानी भी बोली "यह बात तो बिल्कुल सच बोली तूने। पता चला शादी के मंडप में टूटी टांग लेकर गए।" दोनों बहने हंस पड़ी। 


    



    

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