सुन मेरे हमसफर 124

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     निशी काफी देर से अव्यांश का फोन ट्राई कर रही थी लेकिन अव्यांश का फोन था कि लग ही नहीं रहा था। और जब लगा तो अव्यांश ने फोन उठाया ही नहीं। निशी परेशान हो रही थी और अपने कमरे में इधर से उधर टहल रही थी।


     रेनू जी ने उसे ऐसे बेचैन देखा तो उन्हें खुशी हुई कि अब उनकी बेटी अपनी शादी में आगे बढ़ गई है। वो बोली "क्या हो गया है, तू इतनी परेशान क्यों है? तेरे चेहरे पर उदासी अच्छी नहीं लगती।"


    निशी अपना पैर पटकते हुए जाकर सोफे पर बैठ गई और बोली "मम्मी आप ही कहते हो ना मुझे कि अव्यांश का ख्याल रखो, पति है वह तुम्हारा, ये वो 50 तरह की बातें। कब से कॉल कर रही हूं मैं उसे लेकिन मजाल है जो वो मेरा फोन उठा ले! पता नहीं कहां बिजी है! होगा अपनी किसी पुरानी गर्लफ्रेंड के साथ। मेरे बारे में कौन सोचता है! इतना सा भी परवाह नहीं करता मेरी।"


    निशी ने कह तो दिया था लेकिन अपने कहे शब्दों पर उसे खुद ही पछतावा हो रहा था। वो नजरें चुराते हुए बोली "ठीक है वह मेरी केयर करता है, इनफैक्ट कुछ ज्यादा ही करता है लेकिन अभी तो नहीं कर रहा ना! इतनी देर हो गई, कमसे कम एक कॉल कर देता या कोई मैसेज ही कर देता कि कहां है, कब तक आएगा, लेकिन नहीं! कोई फिक्र ही नहीं है उसको। मैं फोन कर रही हूं तो भी कोई रिस्पांस नहीं दे रहा है।"


    रेनू जी उसे समझाते हुए बोली "तू फिक्र क्यों कर रही है? यह शहर उसका अनदेखा नहीं है, कोई नई जगह नहीं आया है वह और ना ही कहीं अकेले गया है। अभी तूने ही तो बताया था ना कि वो किसी काम से आए है? हो सकता है वहां बिजी हो। थोड़ा टाइम टू लग ही जाता है, तू बेवजह परेशान हो रही है। मित्तल साहब इतने भी लापरवाह नहीं है कि अपने परिवार के सदस्यों के सुरक्षा की फिक्र ना करें। और ना ही अव्यांश इतना लापरवाह है कि वह अपने बारे में भूल जाए। तू चिंता मत कर थोड़ी ही देर में दामाद जी आते ही होंगे। चल, तेरा पसंदीदा पास्ता बनाया है। खाएगी तू?"


    निशी खुश होकर बोली "पास्ता? जरूर!!" कहते हुए निशी बाहर की तरफ लपकी और बोल उठाकर आराम से बैठकर पास्ता में कांटा चम्मच मारते हुए उसने टीवी ऑन किया और पास्ता का एक बाइट मुंह में रखा। उसकी नजर दरवाजे पर गई। अभी भी वह अव्यांश का ही इंतजार कर रही थी।


  हालांकि उसका इंतजार पूरा भी हुआ जब अव्यांश ने घर में कदम रखा। निशी खुशी से अपनी जगह से उठने को हुई। लेकिन फिर एकदम से से खयाल आया कि अव्यांश के सामने उसे इतना एक्साइटमेंट नहीं दिखाना चाहिए, और वह वापस अपनी जगह पर बैठ गई। निशी खुद नहीं समझ रही थी कि वह अव्यांश के लिए इतना बेचैन क्यों हो रही थी। एहसास बदलने लगे थे। या कहूं, बदल चुके थे।


     यह बात अव्यांश भी महसूस कर रहा था। उसने अपने जूते रैक में रखें और जाकर मिश्रा जी और रेनू जी के पैर छुए। फिर हाथ पैर धो कर निशी के बगल में बैठ गया और निशी के हाथ से पास्ता का बोल अपने हाथ में लेकर खुद खाने लगा। निशी ने नाराजगी से अव्यांश की तरफ देखा तब तक रेनू जी ने पास्ता का दूसरा बोल निशी की तरफ बढ़ा दिया और मुस्कुरा दी। लेकिन इतने से कहानी खत्म नहीं होने वाली थी। दोनों टीवी रिमोट के लिए लड़ पड़े। मिश्रा जी अपनी बेटी दामाद के इस हरकत पर मुस्कुराए बिना ना रह पाए। पति पत्नी होकर भी दोनों किसी बच्चे की तरह एक ही चीज के लिए लड़ रहे थे। 


    तकरीबन 1 घंटे बाद मिश्रा जी के घर के दरवाजे की घंटी बजी। रेनू जी के हाथ पैर फूल गए। कुछ यही हालत मिश्रा जी की भी थी। उन दोनों को ही दरवाजा खोलने में डर लग रहा था। क्योंकि इस वक्त घर में सिर्फ बेटी ही नहीं बल्कि उनका दामाद भी मौजूद था। घर के दरवाजे की घंटी बजते देख अव्यांश बोला "कोई दरवाजा क्यों नहीं खोल रहा? आप लोग रुकिए मैं देखता हूं।"


     अव्यांश ने दरवाजा खोला तो सामने निशी के फूफा जी खड़े थे। उन्हें देखकर मिश्रा जी और रेनू जी के हाथ पैर ठंडे हो गए। निशी के सामने सारा सच बाहर आ जाएगा तो वह किस तरह उसे संभालेंगे! सारे हालात हाथ से बाहर जाते दिख रहे थे। अंशु ने पलटकर अनजान बनते हुए मिश्रा जी से पूछा "पापा! यह कौन है?"


     अव्यांश ने साफ-साफ ऐसे दिखाया जैसे वो रस्तोगी जी को पहचानता ही नहीं। रस्तोगी जी ने ही पहले हाथ जोड़कर अव्यांश से कहा "मैं निशिका फूफाजी हूं, जैसे आप घर के दामाद हैं, मैं भी हूं लेकिन पुराना वाला।" रस्तोगी जी के होठों पर मुस्कान थी लेकिन अंदर ही अंदर उनकी पैंट गीली हो रही थी।


     घर के अंदर दाखिल होते हुए रस्तोगी जी ने हाथ जोड़कर मिश्रा जी से कहा "भैया भाभी! आप दोनों से कुछ जरूरी बात करनी थी।" और बिना बोले कुर्सी पर बैठ गए।


    दोनों घबराए हुए थे। अब तो बात हाथ से निकल चुकी थी। छुपाने का कोई फायदा नहीं था। इसलिए दोनों ही जाकर चुपचाप उनके सामने बैठकर रस्तोगी जी अपने हाथ में पकड़ा फाइल मिश्रा जी की तरफ बढ़ाते हुए बोले "भैया भाभी! आपको तो पता ही है बंटी विदेश गया है पढ़ने और मेरी उम्र भी है रिटायरमेंट की उम्र हो गई है। इसी महीने में मैं रिटायरमेंट ले रहा हूं।" 


      मिश्रा जी हैरान होकर बोले "रिटायरमेंट? लेकिन आपकी रिटायरमेंट में तो 3 साल और बाकी है।"


    रस्तोगी जी ने अव्यांश की तरफ देखा जो उनके सामने ही खड़ा था, मिश्रा जी के ठीक पीछे। अव्यांश ने अपनी एक भौंह ऊपर चढ़ाई जिसका साफ मतलब था कि अब इस सिचुएशन को संभालो।


    रस्तोगी जी जबरदस्ती हंसते हुए बोले "वह क्या है ना भाई साहब, अब यहां पर मन नहीं लगता। बेटा बड़ा हो गया है तो उसकी शादी भी तो करनी होगी। कब तक यहां अकेले रहेंगे! बेटा भी अब वही सेटल होने वाला है तो हमें वहां बुला रहा था। हमने भी सोचा, बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो मां-बाप की जरूरत नहीं रहती। जब बच्चा सामने से हमें अपने पास आने को कह रहा है तो फिर अब हमें भी चले ही जाना चाहिए। इसीलिए पहले ही रिटायरमेंट ले रहा हूं और जाने से पहले यह कागजात, मैंने सोचा आप लोगों को देता चलूं।"


    मिश्रा जी और रेनू जी उनकी बातें सुनकर बहुत ज्यादा हैरान थे। रस्तोगी जी ने चोरी छुपे अंशु की तरफ देखा और आंखों ही आंखों में पूछा कि उसने जो कहा सब ठीक था ना? अंशु ने भी आंखों के इशारे में उसने समझा दिया।


    मिश्रा जी ने फाइल खोलकर देखी तो वह चौंक गए। उन्होंने पूछा "यह क्या है भाई साहब?"


     रस्तोगी जी अपना हाथ जोड़कर बोले "मना मत कीजिएगा। बिटिया की शादी में हम उसे कुछ दे नहीं पाए, तो सोचा यही दे देते हैं। अब हम यहां पर होंगे नहीं तो यह हमारे किसी काम का नहीं रहेगा। ऐसे में किसी ऐसे इंसान को देना जो इसको संभाल सके और इसकी देखभाल कर सकें, जरूरी हो जाता है। इस बार गए तो पता नहीं हम लौटेंगे भी या नहीं। तो बेहतर था कि हम इसे निशी बिटिया के नाम पर ही कर दे। इससे बड़ा तोहफा देने की औकात नहीं है हमारी। किसी और को देने से बेहतर था कि मैं ये निशी बिटिया के नाम कर दूं।"


   मिश्रा जी और रेनू जी अभी भी कुछ समझने की हालत में नहीं थे। निशी भी यह सब सुनकर वहां चली आई और पूछा "क्या हुआ पापा, सब ठीक तो है ना?"


    मिश्रा जी घबरा गए कि वह निशी से क्या ही कहेंगे! रस्तोगी जी उठे और निशी के सर पर हाथ फेर करके बोले "तुम्हारी शादी में जो कुछ भी हुआ, उसके लिए मैं अपने और तुम्हारी बुआ की तरफ से हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं। जानता हूं, बेटी की खुशियां बहुत कीमती होती है। भगवान ने हमें बेटी नहीं दी तो क्या, तुम हमारी बेटी से कम तो नहीं।"


    अपने फूफा जी के कंठ से शहद टपकते देख निशी को काफी ज्यादा हैरानी हुई। इस बात की उम्मीद उसने कभी सपने में भी नहीं की थी कि ये लोग इतने प्यार से बात करेंगे। जब उसकी अपनी बुआ उससे कभी प्यार से बात नहीं कर सकती थी तो फूफा जी के क्या ही कहना। लेकिन यह हुआ क्या था, और हो क्या रहा था? निशी अभी भी कंफ्यूज थी। उसे पूरा यकीन था कि यह सब उसके फूफा जी की कोई गहरी साजिश है। उसने वो फाइल उठाई जो मिश्रा जी के हाथ में थी और उसे पढ़ते हुए हैरानी से बोली, "आपने

 अपना फ्लैट मेरे नाम कर दिया है, लेकिन क्यों?"


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