सुन मेरे हमसफर 2

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    अवनी ने काव्या को कॉल लगाया। तब तक वह सुहानी के कमरे के दरवाजे के बाहर खड़ी थी। दरवाजा अंदर से बंद था सो उसने बाहर से ही आवाज लगाई "सोनू...........! सोनू क्या कर रही है बच्चा? सब पार्टी वेन्यू पर पहुंच चुके हैं और आप हो कि अभी तक तैयार नहीं हुई! देर हो रही है बच्चा। मैं तो पहले ही बोल रही थी, घर में ही पार्टी रखते हैं लेकिन मेरी सुनता कौन है! जब से अंशु गया है तब से.........……!"


     अवनी अपनी ही बात पूरी ना कर पाई। अपने बेटे को याद कर उसकी आंखें नम हो गई। फोन की दूसरी तरफ से एक काव्या की आवाज आई "खुद भेजा तूने उसे, अपने से दूर। और खुद ही उसे याद कर रो रही है?"


     काव्य की आवाज सुनकर अवनी बोली "तो और क्या करती मैं भी? सारांश के प्यार ने उसे बुरी तरह बिगाड़ कर रख दिया था। घर से दूर, अपने पैरों पर खड़ा होना भी तो जरूरी है उसके लिए। वरना जिस कारोबार को पापा ने, दादाजी ने इतने संभाल कर रखा, उसको कैसे संभाल पाएगा? समर्थ है, लेकिन अंशु को भी तो अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। मां हूं उसकी, कोई दुश्मन नहीं जो दोनों बाप बेटी मेरे से नाराज रहते हैं। पढ़ने के लिए तो खुद ही भेजा था उन्होंने दोनों बच्चों को, फिर अब क्यों..........."


      पीछे से सारांश की आवाज आई "उस वक्त दोनों बच्चे एक साथ थे। आज पहली बार ऐसा हो रहा है कि दोनों भाई बहन अपने जन्म दिन पर अलग-अलग है, और इस तरह अपना जन्मदिन मना रहे हैं। पहले कभी हमने इस तरह आज का दिन सेलिब्रेट नहीं किया, लेकिन आज कर रहे हैं।"


     अवनी नाराज होकर बोली "मैंने उसे घर आने के लिए मना तो नहीं किया था! और आपको क्या लगता है, वह अपने कमरे में अकेले बैठा होगा? किसी पब में या डिस्को में होगा आपका बेटा अभी, वह भी अपने दोस्तों के साथ। आपकी बात नहीं हुई उससे?"


    सारांश ने अवनी की बातों का कोई जवाब नही दिया। उसने सुहानी के दरवाजे पर नॉक किया और बोला "सोनू बेटा! हमें निकलना है, देर हो रही है।"


     अंदर से सोनू की आवाज आई "आई पापा! बस थोड़ी देर और।"


     अवनी को नाराज देख सारांश बोला "अवनी! तुम्हें पता है ना, दोनों बच्चे एक दूसरे से कितना अटैच्ड है! इस तरह दोनों एक दूसरे को मिस कर रहे हैं, और वही गुस्सा बनकर तुम्हारे ऊपर निकल रहा है। तुम परेशान मत हो, मैं समझता हूं तुमने ऐसा क्यों किया। लेकिन इतनी दूर भेजना भी तो सही नहीं था।"


     काव्या फोन पर चिल्लाई "तुम दोनों आराम से बातें कर लो, मैं पार्टी के लिए निकल रही हूं। बाय!"


      अवनी ने फोन रखा और सारांश से बोली "हम हमेशा बच्चों को अपने साए तले नहीं रख सकते। हमेशा आप उसकी उंगली पकड़कर नहीं चला सकते। उसे खुद की पहचान बनानी होगी। उसे खुद को साबित करना होगा। उसे एहसास होना होगा कि वह किस फैमिली से है। उसके बाद यहां उसका साथ देने के लिए आप है, सीड भैया है, समर्थ है, मां है। लेकिन चलना तो उसे अपने पैरों पर ही है। उसे अपनी ही कंपनी में जॉब देने का फैसला आपका था। इसलिए उसे यहां से बाहर भेजना जरूरी था। मैं बस चाहती हूं कि हमारा अंशु अपने पापा, बड़े पापा और भाई की तरह ही मित्तल परिवार का मान बढ़ाएं, और कुछ नहीं।"


     अवनी को हताश देख सारांश ने उसे हग कर लिया और बोला "जानता हूं, तुम गलत नहीं हो। लेकिन एक बाप का मन अपने बच्चे को अकेला महसूस करके ही कांप जाता है।"


    अवनी ने उसे अजीब सा लुक दिया तो सारांश जल्दी से बोला, "हां तुम एक मां हो और बाप से ज्यादा मां इमोशनल होती है। लेकिन, इस बार वह अकेला है। हर बार तो अपने दोस्तों के साथ होता था, और रात की पार्टी हमारे साथ मनाता था। सुबह उससे बात हुई थी मेरी, मंदिर में था उस वक्त। मैंने हीं कहा था उससे इंजॉय करने के लिए। तुम चलो मेरे साथ, सोनू आ जाएगी सभी के साथ।"


     इतने में शिवि भागती हुई आई और बोली "छोटी मां! आप चलिए, मैं आ जाऊंगी उस नकचड़ी को लेकर।" सारांश ने अवनी के कंधे से पकड़ा और वहां से ले गया।




*****




     सारे मेहमान पार्टी हॉल में पहुंच चुके थे। बस जिसका बर्थडे था, उसी का इंतजार था। इस वक्त सभी को अंश उसकी कमी खल रही थी। सिया सबके सामने मुस्कुरा तो रही थी लेकिन उनका मन उदास था। चारों बच्चे उनके लिए अनमोल थे, लेकिन किसी एक की कमी ज्यादा खलती है।


      अवनी उनके पास आई और बोली "मां! मैं जानती हूं यहां सभी अंशु को बहुत ज्यादा मिस कर रहे हैं। लेकिन उसे यहां से भेजने का मेरा फैसला गलत था क्या?"


     सिया प्यार से उसका सहलाते हुए बोली "किसने कहा तुमसे ये सब? उन दोनों बाप बेटे ने? वह दोनों क्या जाने एक मां का मन! लेकिन यहां तो सारांश ही उन दोनों की मां बन कर बैठा है। ऐसे में तुम्हें तो पिता का फर्ज निभाना ही था। इसमें गलत क्या है? किसी एक को तो स्ट्रिक्ट होना ही होगा। मुझे पूरी उम्मीद है, वह जल्दी से वापस आएगा और तुम खुद उसे कभी यहां से जाने नहीं दोगी। बस इंसान का मन ही तो है। भले ही 10 बच्चे आंखों के सामने हो लेकिन सबसे ज्यादा हमें उसी की चिंता होती है जो हमारी आंखों से दूर होता है। और कोई बात नहीं।" अवनी सिया के गले लग गई।


     सोनू शिविका के साथ पार्टी में आई। हल्के नीले रंग के क्रॉप टॉप में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी। घर पर तो किसी ने उसे तैयार होते नहीं देखा था। सिया ने जब उसे देखा तो इशारे से अपने पास बुलाया।


     सोनू भागते हुए सबसे पहले अपनी दादी के पास आई और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। सिया ने भी प्यार से उसका माथा चूम लिया और बोली, "बहुत प्यारी लग रही है मेरी राजकुमारी।"


     अवनी यह सब देख कर मुस्कुरा रही थी। सिया ने कुछ इशारा किया तो सोनू ने झुक कर अपनी मां के पैर छुए। अवनी ने भी प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और उसकी बलाएं ली।


    सोनू ने कान पकड़कर कहा "सॉरी मॉम! बस क्या ना, भाई को बहुत मिस कर रही हूं। इसीलिए थोड़ी बदतमीजी कर दी। मुझे माफ कर दीजिए!"


    अवनी ने धीरे से उसके गाल पर चपत लगाई और बोली "तुम्हारा भाई इस वक्त पब में है और बहुत इंजॉय कर रहा है। एक तुम ही यहां उसके लिए उदास बैठी हो। जानती हूं तुम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हो, लेकिन कौन सा वह हमेशा के लिए गया है! बस कुछ वक्त की बात है। एक बार वो आएगा तो मैं खुद उसे जाने नहीं दूंगी। अब जाओ और जाकर अपने दोस्तों के साथ इंजॉय करो।" सुहानी भी उठी और वहां से शिवि के पास चली गई।


    सुहानी के ज्यादा दोस्त नहीं थे क्योंकि अंशु उसका भाई और बेस्ट फ्रेंड दोनों था। इसीलिए कोई भी, खास कर लड़के उसके पास आने से भी डरते थे। लेकिन जो भी थे, इस वक्त पार्टी में मौजूद थे। सोनू जी खुश होने की कोशिश कर रही थी और बाकी सब भी उसे चीयर करने में लगे थे।


    सारांश और सिद्धार्थ अपने बिजनेस पार्टनर्स के साथ बैठे हुए थे। बाकी सब भी किसी ना किसी से बात करने में लगे थे। श्यामा सिया और अवनी के पास बैठने की बजाए सिद्धार्थ के साथ बैठी थी। क्योंकि यह उन दोनों का हमेशा का था। समर्थ और शिविका ने सुहानी के फ्रेंड्स के लिए पूल पार्टी ऑर्गेनाइज करने में अपनी जान लगा दी थी।


     अवनी ने आज पूरे दिन अपनी हिम्मत बटोरी थी ताकि अपने बेटे से बात कर सके। जब से वो गया था, अवनी उसकी हर खबर रखती थी लेकिन आज के दिन तो उससे बात करनी ही थी। अवनी एक साइड में गई और कांपते हाथों से बड़ी मुश्किल से अपने बेटे का नंबर डायल किया। लेकिन उसका फोन बिजी आ रहा था।


     अवनी का दिल बैठ गया। "क्या आज के दिन मैं मेरे बेटे से बात नहीं कर पाऊंगी? क्या आज उसकी आवाज भी सुनना नसीब नहीं होगा मुझे?" अवनी का मन भारी हो गया। इतने में सोनू ने उसके कंधे पर हाथ रखा और अपना फोन उसकी तरफ बढ़ा कर बोली "मॉम! भाई आपसे बात करना चाहते हैं। उसने सुबह भी कॉल किया था लेकिन आप बिजी थी और फिर मौका ही नहीं मिला। आप बात कर लो उससे। वरना उसका आज का दिन पूरा नहीं होगा।"


     अवनी ने जल्दी से ऐसे फोन लिया जैसे कुछ कीमती खो जाने का उसे डर हो। सोनू वहां से चली गई। अवनी ने फोन कान से लगाया। उससे कुछ कहा नहीं गया।


     दूसरी तरफ से आवाज आई "मॉम! अभी भी नाराज हो मुझसे?"


    अवनी की रुलाई फूट पड़ी। लेकिन अपनी सिसकियों को अपने अंदर ही दबा लिया। दूसरी तरफ से आवाज आई "मॉम! इस तरह रो कर आप अपने ही फैसले को गलत क्यों ठहराना चाहती हैं? मैं जानता हूं, आपने जो किया वह मेरे अच्छे के लिए किया और मैं आपके इस उम्मीद पर खरा उतरने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा हूं। आखिरकार, मैं आपका बेटा हूं। जानता हूं पापा मुझे बहुत प्यार करते हैं।  आप जताती नहीं हो तो इसका मतलब यह नहीं कि आपको मुझसे प्यार नहीं है। वैसे सच कहूं तो, मुझे यह लाइफ अच्छी लग रही है। दुनिया के सच से रूबरू हो रहा हूं। लेकिन जब घर जाता हूं तो कोई नहीं होता। अपना खाना मुझे खुद बनाना पड़ता है। लेकिन यह भी तो मेरे ट्रेनिंग का एक हिस्सा है! मैं जानता हूं, आपके कुछ लोग यहां हमेशा मेरे आस-पास होते हैं। बिना मुझे खबर किए आप तक मेरी हर खबर पहुंचती है।"


    अवनी बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को कंट्रोल कर बोली "तू घर आजा जल्दी से।"


    अंश बोला, "मैं घर वापस आना चाहता हूं मॉम! लेकिन उसके लिए मैं आपकी बात का अपमान नहीं करना चाहता। आप चिंता मत कीजिए, मैं बहुत जल्द आऊंगा वापस, आपके पास। मेरे दोस्त और बाकी सारी गर्लफ्रेंडस भी तो मेरा इंतजार कर रही होंगी! उनके लिए तो मुझे आना ही होगा।"


     अवनी हंस पड़ी और बोली "तू नहीं सुधरेगा। ठीक है, अपनी गर्लफ्रेंड के लिए सही लेकिन जल्दी से वापस आ जाना।"


 क्रमशः

 गरिमा गुप्ता 


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