ये हम आ गए कहाँ!!! (29)

      शरण्या का दिल जोरो से धड़क रहा था। दादी ने आज उसके और रुद्र के रिश्ते की बात चला कर उसके मन में हलचल सी मचा दी थी। जो बात वह हमेशा से सुनना चाहती थी आजकल वही सब कुछ क्यों हो रहा था। ऐसे अचानक से रूद्र का यों उसके करीब आना, उससे वह सब कहना और आज दादी के मुंह से अपने लिए बहू सुनना!!! यह सब कुछ अपने आप में ही खास था। शरण्या अपने कमरे में खड़ी अपने चेहरे को दोनों हाथों से ढक कर अपने दिल की धड़कनों को शांत करने की कोशिश करने में लगी थी कि तभी उसे अपने पीछे दरवाजा बंद होने की आवाज आई। "आज थोड़ा ढंग से तैयार होना तु!" 

    शरण्या ने पलट कर देखा तो पाया रूद्र उसके कमरे में खड़ा था। उसे इस तरह अचानक अपने कमरे में देख वह हड़बड़ा गई और बोली, "तु मेरे कमरे में क्या कर रहा है? आदत हो गई है क्या तुझे मेरे कमरे में घुस आने की? देख मैं बोल दे रही हूं तुझे, आइंदा मेरे कमरे में बिना मुझसे पूछे मत आना। मुझे यह बिल्कुल भी नहीं पसंद। तू निकल यहां से अभी के अभी! निकल जा यहां से वरना मैं चिल्लाऊंगी।" रूद्र उसे शांत कराते हुए बोला, "अबे यार! ऐसी भी क्या हड़बड़ी है तुझे! और ऐसा क्या है तेरे कमरे में जो मैं यहां नहीं आ सकता? तू कौन सा लड़की है? बस भगवान ने तुझे लड़की बना कर भेजा है वरना कुछ नहीं!" कहते हुए उसने शरण्या को सर से पांव तक निहारा। चेक वाली शर्ट, रफ जींस, बंधे हुए बाल! रूद्र ने आगे बढ़कर बाल में से पिन निकाल दिया जिससे शरण्या के बाल पूरी तरह से उसकी कमर तक आ गिरे। वो सारे एहसास एक बार फिर रुद्र के जेहन में ताजा हो गई। रूद्र एक बार फिर शरण्या को अपने सीने से लगा लेना चाहता था लेकिन उसे शरण्या से सारी बात उगलवानी थी। वह चाहता था कि शरण्या खुद उससे कहे कि वो उसके साथ थी। 

     'ठीक है! लेकिन पहले यह बता तु यहाँ क्या कर रहा है? और ढंग के कपड़े पहनने से क्या मतलब है तेरा? मुझे कपड़े पहनने नही आते? बेटा सिर्फ एक बार! सिर्फ एक बार और तू अपना मुंह खोल उसके बाद तु कुछ बोलने लायक नहीं रहेगा", शरण्या गुर्राइ। रूद्र बेशर्मी से हंसते हुए बोला, "मैंने यह थोड़ी कहा कि तुझे कपड़े पहनने नहीं आते। कपड़े तो तूने अभी भी पहन रखे हैं लेकिन वो क्या है ना! आज सगाई है घर में, फंक्शन है! जब भगवान ने तुझे लड़की बनाया है तो थोड़ा लड़कियों वाले कपड़े पहन लेना वह भी थोड़े ढंग के पहनना ताकि जिससे तेरी शादी तय हो रही है ना उस बेचारे को यह न लगे कि वह गे" है। वरना तेरा रिश्ता टूट जाएगा। वैसे मैं यह बताने नहीं आया था यहां। तेरे रिश्ते से मुझे कोई लेना देना नहीं है। वह लड़का तुझे पसंद करें या ना करें, तेरी शादी किसी से हो या ना हो, यह सब से मुझे क्या फर्क पड़ता है! मैं तो बस तुझे इतना बताने आया था आज के फंक्शन में रिद्धिमा आ रही है। इसलिए तुझे बोल रहा हूं थोड़े ढंग के कपड़े पहन लेना वरना उसके सामने तेरी बेज्जती हो जाएगी और तुझे तो पता ही है वो कैसी है!"

    रिद्धिमा का नाम सुनते ही शरण्या का पारा गरम हो गया। वो दांत पीसते हुए बोली, "तू उस मेकअप की दुकान को यहां लेकर आ रहा है, मेरे घर पर? तेरी हिम्मत कैसे हुई उस कुत्तिया को मेरे घर पर इनवाइट करने की? सोच ले रुद्र! अगर वो यहां आई तो मैं तेरा क्या हाल करूंगी?" रूद्र बोला, "तू रिद्धि से इतना चिढ़ती क्यों है? तुझे तो पता ही है यार! स्कूल टाइम से ही वो मुझे कितना पसंद करती है। तुझे तो हर उस इंसान से नफरत है जो मुझे पसंद करता है, सिवाय मेरे घर वालों के। बेचारी रिद्धि! इतने सालों से मुझ पर ट्राई कर रही है तो सोचा इस बार थोड़ा भाव दे ही दु उसे।" शरण्या गुस्से में पलटी और अपने बालों को समेटने लगी, "तुझे जो करना है कर! वो तेरी मेहमान है तो वह बस तेरी ही मेहमान बन कर रहे, मुझ पर हुकुम चलाया ना तो भरी महफिल में तेरी माशूका रुसवा हो जाएगी फिर मुझे मत कहना।" 

     रूद्र पीछे से उसके करीब आकर बोला, "तू घबरा मत! उसे मुझ से फुर्सत ही नहीं मिलेगी जो तुझे देखे, मैं उसे मौका ही नहीं दूंगा" रूद्र की सांसे शरण्या के कानों को छूकर गुजरी तो शरण्या वही बर्फ की तरह जम सी गई। रूद्र उसके बालों की खुशबू अपनी सांसों में भरते हुए बोला, "वैसे तुझे पता है रिद्धि कौन सी परफ्यूम लगाती है? मुझे पूरा यकीन है, कम से कम तीन परफ्यूम का मिक्स जरूर होता है क्योंकि ऐसी परफ्यूम मुझे कहीं नहीं मिली।" एक बार फिर रूद्र के मुंह से रिद्धि का नाम सुनकर शरण्या गुस्से में पलटी और उसे धक्का मारते हुए बोली, "बचपन से ही तेरी नाक कुत्तों जैसी है या फिर उस कुत्तिया के चक्कर में तु सच मे कुत्ता बन गया है? रूद्र गुस्सा होने की बजाए मुस्कुरा कर उसे करीब आया और बोला, "भाऊ भाऊ!" शरण्या से गुस्सा अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने अपने दोनों हाथो से रुद्र की गर्दन पकड़ी और धकेलते हुए कमरे से बाहर कर दरवाजा बंद कर दिया। 

     शरण्या गुस्से मे उबल रही थी लेकिन रूद्र के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी। रूद्र अच्छे से जानता था कि रिद्धि और शरण्या की कभी नही बनी। स्कूल से दोनों मे जाने की जन्म की दुश्मनी थी अब तक चली आ रही थी। दोनों ही एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नही छोड़ती थी और रूद्र ने इसी बात का फायदा उठाने का सोचा। रिद्धि के जरिये वो बस शरण्या से उसके दिल की उगलवाना चाहता था। कुछ सोचकर वो मुस्कुरा उठा और जैसे ही वहाँ से जाने को हुआ वैसे ही शरण्या ने दरवाजा खोला और उसके पिछवाडे एक किक जमा कर वापस से दरवाजा बन्द लिया। रूद्र बेचारा गिरते-गिरते बचा और अपनी कमर कहलाते हुए वापस नीचे चला गया। वहीं शरण्या को भी अब काफी बेहतर लग रहा था। इस एक किक से उसका गुस्सा थोड़ा कम तो हो ही गया था बाकी का गुस्सा शाम के लिए बचा कर रखा था। 


     दादी ने रूद्र को शरण्या के पीछे जाते देख लिया था इसलिए उन्हें समझते देर न लगी कि उन दोनों के बीच क्या चल रहा है। उन्होंने मौका पाते ही ललित और अनन्या के सामने रूद्र और शरण्या की रिश्ते की बात रखी। "मुझे लगता है अब रुद्र की भी शादी करवा ही देनी चाहिए। सच कहूं तो मेरी नजर में शरण्या से बेहतर उसके लिए कोई जीवनसाथी नजर नहीं आती। दोनों एक दूसरे को बचपन से जानते हैं, एक दूसरे को काफी बेहतर तरीके से समझते हैं। भले ही दोनों एक दूसरे से कितना भी लड़ ले लेकिन दोनों अलग नहीं होते, ना कभी एक दूसरे से नाराज होते हैं। किसी भी रिश्ते में इससे बढ़कर और कुछ हो ही नहीं सकता। क्या बोलते हो ललित? क्या अपनी बेटी का हाथ दोगे मेरे पोते को?"

      शिखा को तो लगा जैसे उनके मन की मुराद पूरी हो गई हो। दादी ने सच में उनके दिल की बात ही कह दी थी। जो बात वह खुद ललित और अनन्या के सामने रखना चाहती थी, उस रिश्ते के बारे में दादी ने खुद आगे बढ़कर पहल की। लेकिन ललित ने दादी के आगे हाथ जोड़ लिए और कहा, "माँजी! मै आपकी बहुत इज्जत करता हूं। आप रिश्ते में और उम्र में हमसे बड़ी हैं, मेरे दोस्त की मां है तो मेरी भी माँ ही है आप, इसलिए मैं आपकी बेज्जती नहीं करना चाहता और ना ही आपके किसी बात का अपमान करना चाहता हूं। इसलिए आपसे हाथ जोड़कर निवेदन है, आज के बाद कभी भी रूद्र और शरण्या के रिश्ते के बारे में आप बात नहीं करेंगी। बाप हूं मैं उसका, ऐसे ही किसी के भी हवाले नहीं कर सकता उसे। बात जहां तक रेहान की थी मैंने एक पल भी नहीं सोचा अपनी बेटी का हाथ देने से पहले। लेकिन यहां बात रूद्र की है, मैं तो क्या कोई भी बाप जो अपनी बेटी से प्यार करता है, वह कभी भी रूद्र को अपना दामाद नहीं बनाना चाहेगा। आप अपने बेटे से ही पूछिए क्या वह सच में शरण्या को रूद्र के लिए चाहता है? वह भी इस सब में ना ही कहेगा क्योंकि उसे अच्छे से पता है, उसके बेटे की हरकतें कैसी है! मैं अपनी बेटी के लिए रेहान जैसा जीवनसाथी चाहता हूं ना कि रूद्र के जैसा। मेरी बेटी बोझ नहीं है मेरे लिए इसीलिए उसका रिश्ता मैंने बहुत सोच समझकर तय किया। वह लड़का होनहार है, समझदार है, जिम्मेदार हैं, रूद्र जैसा तो बिल्कुल नहीं है। मुझे उम्मीद है यह सारी बातें मुझे दोबारा कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी।"

       ललित की बात सुन लावण्या सोच में पड़ गई। उसे अच्छे से पता था कि शरण्या रूद्र को पसंद करती है। ऐसे में किसी और से शादी शरण्या के लिए सही नहीं होगी और ऐसे में ललित का रूद्र को लेकर ऐसे ख्याल शरण्या और रूद्र के रिश्ते में बहुत बड़ी खाई थी, जिसे भरना बहुत मुश्किल लग रहा था। सबसे पहले एक बार शरण्या से इस बारे में बात करनी जरूरी थी। अगर वह दोनों ही एक दूसरे से प्यार करते हैं तो दोनों मिलकर इस खाई को भर सकते हैं। दोनों घरवालों को अपने रिश्ते के लिए मना सकते हैं, खासकर ललित को। 

     शिखा के मन की बात मन में ही दबी रह गई। एक उम्मीद थी कि उसे शरण्या अपनी बहू के रूप में देखने को मिलेगी। एक एहसास जो रूद्र के मन में पनपने लगा है कहीं आगे जाकर उन्हे किसी मुश्किल का सामना ना करना पड़ जाए। प्यार की राह मुश्किल होती है लेकिन जिन बच्चों ने सभी किसी मुश्किल का सामना नहीं किया वह क्या प्यार के इस उबड़ खाबड़ रास्ते पर चल पाएंगे? यह सोचकर ही शिखा का मन घबरा उठा। अगर दोनों बच्चे एक दूसरे से प्यार करते हैं तो आगे जाकर जाने क्या होगा! 

      दादी भी कहां किसी से कम थी। ललित को उसी की भाषा में जवाब देना उन्हें भी आता था। वह बोली, "जिसकी किस्मत में जो लिखा होता है ना ललित, वह होकर रहता है। अनन्या के मां बाप ने भी बहुत सोच समझकर उसकी शादी की थी ताकि उनकी बेटी को किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं हो। लेकिन उनके मन में जो कांटा चुभा हैं ना इसके बारे में शायद ही कोई जानता है। मां बाप के किए पुण्य कर अगर बच्चों को मिलते हैं ना ललित! तो मां बाप के किए की सजा भी बच्चों को ही भुगतनी होती है। रही बात मेरे रूद्र की तो इतना जान लो, आज जिसे तुम इंकार कर रहे हो ना, एक वक्त आएगा जब तुम खुद आगे बढ़कर अपनी बेटी के लिए रूद्र का हाथ मांगोगे। एक वह वक्त भी आएगा जब तुम्हें एहसास होगा कि तुम्हारी बेटी के लिए मेरे रूद्र से बढ़कर कोई हो ही नहीं सकता और यह जो तुम सबकी सोच है ना मेरे बच्चे को लेकर! एक दिन बहुत पछताओगे। तुमसे बड़ी हूं मैं और तुमसे ज्यादा दुनिया देखी है मैंने। एक नजर में लोगों को पहचानना सीखा है। वक्त के साथ लोगों को जानते समझते यह बाल सफेद हुए हैं मेरे। मेरे दोनों पोतों में से कौन कैसा है ये मैं बहुत अच्छे से जानती हूं। तुम्हें अपनी बेटी के लिए रेहान जैसा दमाद चाहिए ना! आगे जाकर किस की नियत कैसी होगी, आगे जाकर कौन कैसा रंग दिखाएगा यह बात हम अभी से नहीं कह सकते। मेरी यह बात का गांठ बांधकर रखना तुम। रूद्र और रेहान दोनो ही मेरे बच्चे है और मै दोनो के ही बारे मे बात कर रही हु।"

      "दादी कभी मेरी तो तारीफ नही करती! जब देखो रूद्र के नाम की माला जपती रहती है। मै क्या इतना बुरा हु?"एक बार फिर दादी के मुह से रूद्र की बढ़ाई सुन रेहान चिढ़ गया। 



क्रमश:

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही बेहतरीन भाग था मैम!! 👌👌 रुद्र का दिन नही बनता जब तक वह शरण्या से मार ना खा ले...!! 😂😂 अब तो नजाने ये रिद्धि भी आकर क्या गुल खिलाएगी? वैसे ललित जी का वैसा सोचना, आगे जाकर मुश्किल ही बढ़ाएगा!! 🙄🙄 पर दादी की बात बहुत पंसद आई...!! 😊😊

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