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सुन मेरे हमसफर 310

  310  अव्यांश बेसुध का फार्म हाउस से निकाल तो गया लेकिन उसे जाना कहां था ये वो खुद भी नहीं जानता था। बस वह कहीं जाना चाहता था। निशी की बाते और उसकी आंखें अव्यांश को बेचैन कर रही थी और वह इस मोह के जाल में फंसना नहीं चाहता था। पीछे खड़ी निशि बस उसे जाते देखती रही लेकिन रोक नहीं पाई। उसके पैर जैसे किसी ने बांध रखे हो। उसे यह तक समझ नहीं आ रहा था कि इसके आगे वह कैसे रिएक्ट करें, क्या करें किसके पास जाए।  दूसरी तरफ समर्थ अस्पताल में तन्वी के बेड के पास बैठा था। तन्वी अभी भी बेहोश थी और समर्थ उसका हाथ छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था। शिवि अपनी ड्यूटी पूरी करके जब एक बार तन्वी को देखने आई तो अपने भाई को इस तरह बैठा देख उसे बहुत तकलीफ हुई। शिवि ने जाकर समर्थ के कंधे पर हाथ रख तो समर्थ ने बिना उसकी तरफ देख कहा "मैं कहीं नहीं जा रहा। यही हूं ठीक हूं।"  शिवि ने उसके कंधे पर झुक कर बड़े प्यार से कहा "मैं आपको कहीं जाने के लिए कह भी नहीं रही। आप यहां है तो मुझे खुशी है कि इस कंडीशन में आप मेरी भाभी का साथ नहीं छोड़ रहे हो और यह बहुत बड़ी बात है। लेकिन भाई, जब भाभी को होश आएगा तो उन्हे