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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ये हम आ गए कहाँ!!! (4)

      शाम के वक्त अनन्या सभी नौकरों को रात के खाने के बारे में समझा रही थी और खुद भी इन सब में शामिल थी। वह हर एक डिश को अपनी निगरानी में बनवा रही थी। घर में इतनी चहल-पहल देखकर शरण्या को थोड़ा शक हुआ तो उसने लावण्या से पूछा, "लावी दी!!! यह हो क्या रहा है घर में? आई मीन इतनी चहल-पहल? कोई आ रहा है क्या?" लावण्या बोली, "अरे कुछ नहीं? वह बहुत दिन हो गए ना, मॉम ने हीं इनवाइट किया है धनराज अंकल और शिखा आँटी को। यहां आज सब डिनर पर आ रहे हैं। बिजनेस के चक्कर में पिछले कुछ दिनों से सभी टेंशन में थे, अब फाइनली जाकर प्रोजेक्ट पूरा हुआ है तो मॉम डैड ने सोचा कि थोड़ा फैमिली टाइम हो जाए। इसलिए उनको पूरी फैमिली के साथ बुलाया है।"        धनराज अंकल के आने की खबर सुनकर शरण्या खुश तो हुई लेकिन उसे अच्छे से पता था कि उनकी फैमिली से लावण्या का मतलब क्या था! यानी रेहान और रूद्र!!! रेहान तक तो ठीक था लेकिन रूद्र का आना शरण्या का पारा गर्म कर गया, लेकिन इस बारे में वो कुछ कर भी नहीं सकती थी। आखिर खुद अनन्या ने सबको इनवाइट किया था। उसने सोच लिया कि आज रात वह अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकले

ये हम आ गए कहाँ!!! ( 3 )

     विहान जल्दी से शरण्या के कमरे से निकलकर बाहर भागा, तभी रास्ते में एक नौकर जो शरण्या के लिए कॉफी लेकर आ रहा था उसके हाथ से कॉफी लेकर भाग गया। शरण्या उसके पीछे भागी ताकि वह घर वालों को कुछ बता ना सके लेकिन उसे रोके कैसे? यह उसकी समझ में नहीं आया। विहान जल्दी से ललित के पास बैठ गया जहां अनन्या भी साथ में बैठी थी। उन दोनों को ही ऐसे भाग कर आता देख अनन्या गुस्से में बोली, "तुम लोगों को इसी घर में मैराथन करना है क्या? यह घर है कोई सड़क नहीं और यह जो भागा भागी लगा रखा है तुम लोगों ने! बड़े हो चुके हो तुम लोग, कम से कम अपनी उम्र का लिहाज करो! और तुम शरण्या!!! डिसिप्लिन नाम की कोई चीज नहीं है तुम मे, कम से कम लावण्या से ही सीख लो कुछ!"      अनन्या गुस्से में उठी और वहां से अपने कमरे में चली गई। उसके सामने विहान कुछ नहीं बोल पाया लेकिन उसके जाते ही वो ललित से बोला, "अंकल! आजकल शरण्या कुछ ज्यादा ही लेट नहीं उठ रही? मेरा मतलब देर से तो उठती ही थी लेकिन इतनी देर से भी नहीं जितना आजकल मैं उसे देख रहा हूं! कहीं ऐसा तो नहीं कि यह देर रात तक जागती है? वैसे जहां तक मुझे पता है शरण्य

ये हम आ गए कहाँ (2)

     रुद्र और विहान भागते हुए रेडियो स्टेशन पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही विहान ने रिसेप्शनिस्ट से पूछा, "वो हमें आपकी आरजे शायराना से........ !" रिसेप्शनिस्ट ने विहान को रोकते हुए कहा, "हां हां पता है! आप दोनों को आरजे शायराना से मिलना है लेकिन उससे मिलने की इजाजत किसी को नहीं है, क्योंकि वह खुद भी किसी से मिलना नहीं चाहती इसीलिए तो अपना नाम बदल कर यह शो होस्ट करती है। और वैसे भी अगर वह यहां होती तो आप लोग उससे मिल पाते ना! वह है ही नहीं तो किस से मिलवा हूं आपको?"      रूद्र छूटते ही बोला, "वैसे मिलना तो मुझे आपसे भी था लेकिन सोचा पहले आपकी आरजे से मिल लू। लेकिन अब जब वह यहां नहीं है तो क्या आप फ्री हैं? मुझे पूरा यकीन है कि यह जो आपकी आरजे शायराना है वह आपसे ज्यादा खूबसूरत तो नहीं होगी, शर्त लगा लो!" वह रिसेप्शनिस्ट शर्मा कर रह गई। रूद्र का असर ही कुछ ऐसा था कि कोई लड़की उसे ना नहीं कह पाती थी। इस दुनिया में सिर्फ एक ही लड़की ऐसी थी जो उसे बिल्कुल भी भाव नहीं देती थी और वह थी शरणया। रूद्र अनजाने में ही शरण्या की ओर खींचा जा रहा था, बिना यह जाने कि जिस आवाज के

ये हम आ गए कहाँ!!! (1)

      पूरे आठ साल बाद लौटा था वह, वापस अपने शहर, अपने देश में! फिर से उन्हीं हवाओं उन्हीं गलियों में जहां वापस ना आने की कसम खाई थी उसने। लेकिन जिंदगी हमारे हिसाब से कहां चलती है! मजबूरी में ही सही आखिर उसे लौटना ही पड़ा। एयरपोर्ट पर कदम रखते ही एक चीख रूद्र के कानों में पड़ी जो उसके अंतर्मन तक को कपा गई। शरण्या की वो दर्द भरी चीख आज भी उसके कान में गूंजती थी, उसके जेहन में आज भी ताजा थी और इस एयरपोर्ट पर अभी भी उसे महसूस हो रही थी। यही तो छोड़ कर गया था वह उसे, रोते बिलखते बेसहारा, उसका दिल तोड़ कर। एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा था उसने जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो। रूद्र ने अपनी सूनी आंखों से चारों ओर उस एयरपोर्ट को देखा मानो उसकी आंखें आज भी शरण्या को ही ढूंढ रही हो लेकिन वह जानता था कि अब उसकी शरण्या यहां हो ही नहीं सकती। ना तो वह उसका इंतजार कर रही होगी और ना ही अब उस पर उसका कोई हक होगा। उसकी शरण्या अब किसी और का हाथ थामे जिंदगी में बहुत आगे तक बढ़ चुकी थी, तभी तो यहां से जाने के बाद एक बार भी उसने रूद्र को कांटेक्ट करने की कोशिश नहीं की, यह सोचकर ही रूद्र की आंखों में आंसू आ